अपने बच्चे होने से ज़्यादा ख़ुशी बच्चों के बच्चे होने से मिलती है. हैदराबाद की जानी-मानी एंडोक्राइनोलॉजिस्ट डॉ संगीता झा ने दादी बनने की अपनी ख़ुशी इस कविता के माध्यम से व्यक्त की है.
मुझे मिला है
एक बड़ा-सा उपहार
अमूल्य अप्रतिम अलभ्य
साथ ही ख़ुशियां अपरंपार
देने वाले हैं मेरी पायल
और मेरा…अमन
ख़ुशियों से भर गया
है मेरे दिल का चमन
परी लेके आई है
तीन चार ब्रीफ़केस
जिसमें भरे हुए हैं
मेरी यादों के बचपन के खिलौने
बचपन के कपड़े
बचपने की यादें
मुझे जीना है फिर से
एक बार
पूरा बचपन
साथ होगी ये नन्हीं परी
पुरानी यादें फिर हो
जाएंगी हरी
मैं अब एक डब्बा बनाऊंगी
उसमें बड़े प्यार से सजाऊंगी
इसकी स्वर्ण जैसी आभा
इसकी चांदी जैसी मुस्कुराहट
इसके हंसने की खनखनाहट
इन ब्रीफ़केस के साथ होंगे
छोटे बड़े कई डिब्बे
जिसमें बंद होंगी
मेरी नादानियां
मेरी खामियां
मेरा चुलबुलापन
मेरा बेबाकपन
मेरा पुराना अल्हड़पन
जिन्हें जब चाहे खोल कर
देख पाऊंगी मैं
एक बार फिर से अपने बचपन में खो जाऊंगी मैं
साथ ही होगा फिर
एक बहुत बड़ा बक्सा
जिसमें भरी होंगी
परी की ख़ुशियां
साथ ही उसके समकक्ष
रखूंगी वो पुराना बक्सा
जिसमें मैंने छुपा रखे थे
अपना दुःख
अपने ख़्वाब
अपना डर
अपने सारे राज़
अब सब उसी बक्से
में ही दफ़ना दूंगी
फिर से खोलूंगी
वो सारे बंद लिफ़ाफे
जिसमें बंद है स्मृतियां
जिसे दिया है
मेरे अम्मा बाबूजी
मुन्ना बल्ले ने
सखा-सहेलियों ने
कुछ रिश्तेदारों ने
ये परी मुझे
मुझे दिलाएगी याद
एक बार फिर
बड़े दिनों बाद
किस्से
कहानियां
और कहावतें मेरे अपने
शहर की
पायल और अमन को
ढेर सारा प्यार
देती हूं मैं बार-बार
यही तो है
जीवन का सार
हम सब लगाएंगे अब
तितली वाले वो
रंग बिरंगे पंख
आसमान में उड़ान
बजा कर शंख
बार-बार करती हूं
ईश्वर तेरा शुक्रिया
एक अजब सी ख़ुशी
ज्यों ही उसने मुझे छू लिया
लौट आया है बचपन मेरा
फिर एक बार
अब यही है मेरे
जीने का सार
शुक्रिया शुक्रिया शुक्रिया
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