अपने भूखे पेट को भरने की जुगत करते-करते एक समय आता है जब इंसान भगवान के अस्तित्व पर सवाल खड़े करने लगता है. रमाशंकर यादव विद्रोही की यह छोटी-सी कविता उसी विद्रोह की एक बानगी है.
मैं किसान हूं
आसमान में धान बो रहा हूं
कुछ लोग कह रहे हैं
कि पगले! आसमान में धान नहीं जमा करता
मैं कहता हूं पगले!
अगर ज़मीन पर भगवान जम सकता है
तो आसमान में धान भी जम सकता है
और अब तो दोनों में से कोई एक होकर रहेगा
या तो ज़मीन से भगवान उखड़ेगा
या आसमान में धान जमेगा
Illustration: Pinterest