यूं तो हर संजीदा व्यक्ति अपने आसपास के हालात पर नज़र रखता है, हवाओं में मौजूद संदेशों को पढ़ता है और देश के सियासी हाल को महसूस कर अपनी राय व्यक्त करता है. लेकिन ग़ज़ल कहने वाले उसी बात को बड़ी शाइस्तगी से ऐसे शब्द देते हैं कि वह हर ख़ास-ओ-आम को अपनी ही बात लगती है. यह ग़ज़ल पढ़कर आपको भी ऐसा ही लगेगा.
नया मंज़र दिखाया जा रहा है
हमें फिर वर्ग़लाया जा रहा है
है दोराहे पे प्यारे मुल्क अपना
नया रास्ता दिखाया जा रहा है
सितम-परवर इक अंधा बोलता है
सो गूंगों को सुनाया जा रहा है
किसी के सर पे है टोपी किसी की
किसे रहबर बताया जा रहा है
सर-ए-मक़्तल वही थे सर झुकाए
जिन्हें क़ातिल बताया जा रहा है
तलब में रौशनी की ला-मुहाला
हमारा दिल जलाया जा रहा है
ख़मोशी से क्यों ‘दानिश’ सुन रहे हैं
ये क्या क़िस्सा सुनाया जा रहा है
फ़ोटो: फ्रीपिक