भले ही समाज आधुनिक और शिक्षित हो गया है, लेकिन स्त्रियों के जीवन में संघर्ष आज भी हैं. स्त्रियों के जीवन की अलग-अलग परिस्थितियां इस कहानी संग्रह में लेखिका ने प्रस्तुत किए हैं. वरिष्ठ पत्रकार सर्जना चर्तुर्वेदी बता रही हैं, क्यों यह किताब पढ़ी जानी चाहिए.
पुस्तक: संगतराश
लेखिका: नीतू मुकुल
प्रकाशक: भारतीय ज्ञानपीठ
मूल्य: 220 रुपए
पृष्ठ संख्या: 110
रेटिंग: 3.5/5 स्टार
नीतू मुकुल का यह कहानी संग्रह आधुनिक महिलाओं की उस ज़िंदगी को दर्शाता है, जिसके बारे में हम सभी जानते हैं, पर उस ओर देखते नहीं. अगर देखते हैं तो कुछ बोलते नहीं. मसलन-आज भी ऐसा माहौल कई घरों में दिखाई देता है, जहां बहू भले शिक्षित हो लेकिन बेटा पर्याप्त कमाता है तो कहते हैं कि बहू को नौकरी करने की क्या ज़रूरत है? लड़की को न ही मायके और न ही ससुराल में अपनी इच्छा की ज़िंदगी जीने को मिलती है. यह ‘हम ख़ुद अपने ही राम हैं’ कहानी की मुख्य किरदार जानकी के जीवन में दिखाई देती है. ऐसा ही कुछ ‘तिहत्तरवा चांद जुपिटर का’ कहानी में दिखता है. पर यहां की नायिका समस्या का समाधान तलाशती है. नायिका टुम्पा तीन बच्चों की मां है, लेकिन जब वह अपने जीवनसाथी को पिता और पति दोनों भूमिकाओं को निभाने में असफल और ग़ैरज़िम्मेदार रूप में देखती है तब वह उससे अलग होने का निर्णय कर लेती है.
कहानी ‘संगतराश’ हमारे समाज में आज भी मौजूद जाति के ऊंच और नीच के भेदभाव की कड़वी हक़ीक़त को बड़ी ख़ूबसूरती से एक छोटे बच्चे के इर्द-गिर्द बुनी कहानी के माध्यम से बयां करती है. पुजारी से बच्चा सवाल भी करता है कि ‘‘मेरे छूने से भला भगवान कैसे अपवित्र हो जाएंगे? आपकी तरह उन्होंने मुझे भी बनाया है.’’ ‘‘आपकी प्रार्थना वह मंदिर के अंदर से सुनते हैं हमारी बाहर से. फिर फर्क़ किस बात का?’’ वहीं कहानी ‘मंगते का दिल’ देश में होनेवाले उन हादसों की हक़ीक़त को बयां करती है, जिनमें छोटी उम्र में ज़िद करके बच्चे गाड़ी लेते हैं और सड़क दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं. माता-पिता तब उनके अंगों को किसी ज़रूरतमंद को दान कर देते हैं. ‘आठवां फेरा नो हुक-अप प्लीज़’ कहानी आधुनिक समाज के उन रिश्तों को बयां करती है, जिसमें लोग रिश्ते जीना तो चाहते हैं पर निभाना नहीं. नई पीढ़ी रिश्तों का आनंद लेना चाहती है मगर उनसे मिलने वाले दर्द से दूर रहना चाहती है. ‘बस एक लफ्ज और’ नामक कहानी वर्तमान समय में धर्म के नाम पर होने वाले दंगे और उसकी वजह से आम इंसान को जो पीड़ा होती है वह दिखाती है. ‘अंधेरों की परतें’ इस कहानी में एक मां और बेटे के मिलाप की कहानी दिखाई गई है.
लॉकडाउन के दौर में रचे गए इस कहानी संग्रह में कुल 7 कहानियां हैं. लॉकडाउन की परिस्थितियां और संघर्ष को भी दिखाने का प्रयास कुछ कहानियों के माध्यम से किया गया है. सरल हिंदी भाषा में लिखी गई यह कहानियां हर वर्ग विशेष को प्रभावित करती हैं और भौतिक युग में मानवीय संवेदना के संग तालमेल बैठाती-सी प्रतीत होती हैं. लेखिका नीतू मुकुल का इससे पूर्व एक कहानी संग्रह ‘ऐसा प्यार कहां’ प्रकाशित हो चुका है और कई कहानियां विभिन्न पत्रिकाओं एवं समाचार पत्रों में प्रकाशित हो चुकी हैं. बहरहाल कहानी संग्रह ‘संगतराश’ की कहानियां पढ़ने जैसी हैं. वे एहसासों और रिश्तों के क़िस्से सुनाती हैं.