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मन की ग्रंथियों को खोल, जीवन को उज्जवल बनाना ही देवी महागौरी की आराधना का गूढ़ार्थ है

भावना प्रकाश by भावना प्रकाश
April 9, 2022
in धर्म, लाइफ़स्टाइल
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मन की ग्रंथियों को खोल, जीवन को उज्जवल बनाना ही देवी महागौरी की आराधना का गूढ़ार्थ है
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जगत मिथ्या और ब्रह्म सत्य है या ब्रह्म मिथ्या और जगत सत्य. ये विवाद सदैव से चलता आया है और चलता रहेगा. किंतु इसका उत्तर जानने के लिए अगर हम पुराणों की ओर जाएं और उनका सिर्फ़ पठन ही नहीं मनन भी करें तो पाएंगे कि हमारे व्रत, उपवासों में कोई तो वैज्ञानिक आधार छिपा है, जिन्हें यदि हम समझ लें तो इन्हें बनाने के उद्देश्य से परिचित हो सकेंगे. हो सकता है हमारे द्वंद्वग्रस्त मन को पूजा की सही विधि भी मिल जाए और अपने स्तर पर कुछ सार्थक करने का संतोष भी. यहां नवरात्र के आठवें दिन की अधिष्ठात्री देवी महागौरी की पूजा की प्रासंगिकता पर चर्चा कर रही हैं भावना प्रकाश.

 

 

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महागौरी देवी का सबसे प्रचलित रूप है. ये देवी पार्वती के सामान्य गृहणी या पत्नी रूप का प्रतिनिधित्व करती हैं. शिवलिंग के साथ पूजाघरों में तथा शिवजी के साथ मंदिरों और धार्मिक चित्रों में ये ही अवस्थित रहती हैं. महागौरी या गौरी की भी पौराणिक कथा इस प्रकार है कि शिव जी को पाने के लिए मां पार्वती ने विकट तपस्या की. जिससे उनका वर्ण काला पड़ गया. जब शिव जी उनपर प्रसन्न हुए तो उन्हें गंगाजल से स्नान कराया, जिससे वो अत्यंत गौर वर्ण वाली हो गईं और उनका नाम महागौरी पड़ा.
अब इनकी प्रतीकात्मक प्रासंगिकता की ओर चलते हैं. पौराणिक धारावाहिकों में कुछ दृश्यों पर गौर करें, जो हमें बहुत प्यारे लगते हैं: शिव जी और मां पार्वती अपने हिमासन पर बैठे कुछ विचार विमर्श कर रहे हैं. उनकी चिंताएं गूढ़ हैं, किंतु होंठों पर मोहक मुस्कान है. कंस के अत्याचारों के प्रतिकार के प्रति जागरूक, गांव की समस्याओं पर मनन करते, उनका समाधान ढूंढ़ते किशोर चिंतक श्रीकृष्ण तल्लीन होकर बांसुरी बजा रहे हैं. वन में लक्ष्मण और सीता परिहास कर रहे हैं और राम उसका आनंद लेते हुए मंद-मंद मुस्कुरा रहे हैं.

कभी हमने सोचा कि इतनी विकट परिस्थितियों में ये लोग मुस्कुराकर सहजता से कैसे जी रहे होते हैं? कितना कठिन होता होगा ऐसे में ख़ुश रह पाना, जब पता हो कि किसी भी आकस्मिक आपदा के लिए ख़ुद को संघर्ष के लिए तैयार भी रखना है. बड़ी आपदा के लिए अपने व्यक्तित्व को एक अलग ‘अवतार’ में तराशकर युद्ध के लिए प्रस्तुत भी हो जाना है. लेकिन जैसा कि कहा जाता है, अवतार ग्रहण ही किए गए थे हमें जीना सिखाने के लिए. तो उन्होंने या कहिए कि जिन साहित्यकारों ने ये चरित्र रचे उन साहित्यकारों ने जन सामान्य को ये सिखाना भी आवश्यक समझा कि ‘अवतार’ या अतिशय कठिन जीवनचर्या अर्थात तपश्चर्या की आवश्यकता समाप्त होने पर स्वयं को सहज करना भी उतना ही आवश्यक है.

इसे आज के युग के उदाहरण के माध्यम से समझें तो अक्सर घर परिवार के लिए हमें मन से कुछ अधिक त्याग करने आवश्यक हो जाते हैं. कभी विकट परिस्थितियों से निपटने के लिए सामर्थ्य से अधिक श्रम करना पड़ता है, तनाव लेना पड़ता है. कभी प्रियजनो से हमें ऐसी मानसिक चोट भी मिलती है जो सहन करना मुश्क़िल होता है. ये सारी ‘तपश्चर्याएं’ इन्सान क्यों करता है? अपना दायित्व समझकर, परिवार की ख़ुशी के लिए, उसका स्नेह पाने के लिए तो कभी आपसी रिश्तों को टूटने से बचाने के लिए ही तो. तो ‘तपस्या’ के फलस्वरूप मिली कुंठा ही वो मानसिक कालापन है, जो संघर्ष के उपरांत स्वाभाविक रूप से प्राप्त होता है. ऐसे में जीवनसाथी का दायित्व है कि वो आपसी बातचीत करके, अपने स्नेह से संगी या संगिनी के मन की ग्रंथियों को खोलकर उसके मन को उज्ज्वल बनाए. दाम्पत्य जीवन में इसकी महत्ता समझना और इसके क्रियांवयन के लिए ऐसे पलों को ढूंढ़ना और एक दूसरे के मन के कालेपन को धोने के लिए तत्पर रहना ही महागौरी की असली पूजा है.

प्रसिद्ध कवि हरवंशराय ‘बच्चन’ जी की एक सुंदर पंक्ति है. “सीधा जीवन जीना, होती टेढ़ी खीर; बहुत कठिन है खींचना, सीधी सरल लकीर” हम आध्यात्म पर रोज़ाना छपने वाले लेखों पर ग़ौर करें तो पाएंगे, ओशो से लेकर हर महान धर्मगुरु तक सब जीवन में सहज, कुंठामुक्त और आनंदित रहने का महत्त्व और तरीक़ा बताते नज़र आते हैं. अपनी कुंठाओं और त्याग के फलस्वरूप जन्मे अहंकार और दुखद यादों से मुक्त होकर सहज और आनंदित जीव जीने के लिए किए गए सतत प्रयास ही हमें महागौरी की कृपा का पात्र बना सकते हैं.

फ़ोटो: गूगल

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भावना प्रकाश

भावना प्रकाश

भावना, हिंदी साहित्य में पोस्ट ग्रैजुएट हैं. उन्होंने 10 वर्षों तक अध्यापन का कार्य किया है. उन्हें बचपन से ही लेखन, थिएटर और नृत्य का शौक़ रहा है. उन्होंने कई नृत्यनाटिकाओं, नुक्कड़ नाटकों और नाटकों में न सिर्फ़ ख़ुद भाग लिया है, बल्कि अध्यापन के दौरान बच्चों को भी इनमें शामिल किया, प्रोत्साहित किया. उनकी कहानियां और आलेख नामचीन पत्र-पत्रिकाओं में न सिर्फ़ प्रकाशित, बल्कि पुरस्कृत भी होते रहे हैं. लेखन और शिक्षा दोनों ही क्षेत्रों में प्राप्त कई पुरस्कारों में उनके दिल क़रीब है शिक्षा के क्षेत्र में नवीन प्रयोगों को लागू करने पर छात्रों में आए उल्लेखनीय सकारात्मक बदलावों के लिए मिला पुरस्कार. फ़िलहाल वे स्वतंत्र लेखन कर रही हैं और उन्होंने बच्चों को हिंदी सिखाने के लिए अपना यूट्यूब चैनल भी बनाया है.

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हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.

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