पंगा एक ऐसी फ़िल्म है, जिसका निर्देशन और एडिटिंग दोनों ही बहुत कसे हुए हैं, संवाद बेहद संजीदा हैं. इसके क़िरदारों की आदाकारी और केमिस्ट्री दोनों ही कमाल की है. हमारे लिए इस फ़िल्म की समीक्षा करते हुए भारती पंडित कहती हैं- सस फ़िल्म को देखने के बाद आपको भी यह लगेगा कि ज़िंदगी में एक बार ऐसा पंगा लेना तो बनता है!
फ़िल्म: पंगा
सितारे: कंगना रनौत, जस्सी गिल, नीना गुप्ता, रिचा चड्ढा, मेघना बर्मन, यज्ञ भसीन
स्टोरी: निखिल महरोत्रा, अश्विनी अय्यर तिवारी
डायलॉग्स, स्क्रीनप्ले: नीतेश तिवारी
डायरेक्टर: अश्विनी अय्यर तिवारी
रन टाइम: 131 मिनट
रेटिंग: 4/5 स्टार
क्या ख़ूबसूरत इत्तफ़ाक है न, आजकल जो भी फ़िल्म देखो, हरेक में कुछ न कुछ ऐसा दिखाई दे रहा है कि उसे देखना सही निर्णय लिया हुआ सा महसूस होता है. पंगा भी ऐसी ही फ़िल्म है. हालांकि 29 करोड़ की लागत में बनी फ़िल्म को यूं तो कम बजट की नहीं कहा जा सकता, मगर आजकल बन रही 100-200 करोड़ के बजट की फ़िल्मों के सामने यह कम बजट की ही फ़िल्म है. कम लागत में, कंगना के अलावा बाक़ी नए/बिना स्टारडम वाले कलाकारों के साथ बनी यह फ़िल्म हमारे शहर भोपाल की ख़ूबसूरत लोकेशंस पर शूट की गई है. ट्रेलर देखकर आपको कहानी का अंदाज़ तो हो ही गया होगा कि यह कहानी है एक मां के कमबैक की. हमारे समाज की विडंबना ही यह है कि शादी के बाद और बच्चे होने के बाद केवल स्त्री को ही सारे सामंजस्य बिठाने होते हैं, स्त्री को ही कम्प्रोमाइज़ करना होता है. पुरुष के ऊपर ऐसा कोई दबाव नहीं होता. उससे भी बढ़कर यह कि स्त्री पति और बच्चों के प्रति समर्पण को लेकर ख़ुद इतनी कंडिशन्ड हो जाती है कि यह सब न करने या अपने ऊपर ध्यान देने से वह ख़ुद को अपराधी महसूस करने लगती है यानी शादी दोनों की मगर समझौते सारे स्त्री के ही हिस्से.
एक तो मां का कमबैक वैसे ही आसान नहीं, उस पर यदि यह कमबैक शो बिजनेस या स्पोर्ट्स में होना हो तो मुश्क़िलें हज़ार गुनी हो जाती है, क्योंकि वापस उसी काया को, उसी स्टेमिना को हासिल करना बड़ी चुनौती होती है. इस फ़िल्म में कंगना यानी जया निगम, जो कबड्डी की राष्ट्रीय चैम्पियन रही हैं, वह सात साल बाद कबड्डी में वापसी करना चाहती है. उसे किन-किन मुश्क़िलों से जूझना पड़ता है, यही सब बताती है यह कहानी.
इस फ़िल्म में सबसे शानदार बात है पति-पत्नी की केमिस्ट्री. जया निगम शादी करती है, प्रशांत श्रीवास्तव से मगर उसका नाम या उपनाम बदलने का कोई दबाव नहीं. वह जया निगम ही है अपनी पुरानी पहचान के साथ. प्रशांत जैसा पति यदि हर महिला को मिले तो उसका जीवन संवर जाए. आज जब लगातार ब्रेकअप और तलाक़ या लड़ाई-झगड़े के क़िस्से सुनने में आते हैं, ऐसे में इस फ़िल्म में दोनों के बीच के रिश्ते को इतने सुन्दर तरीक़े से गढ़ा गया है कि देखकर मन में सुख की लहर-सी दौड़ जाती है. पत्नी ने घर के लिए और पति के लिए क्या-क्या किया है, केवल इस बात का एहसास ही पति को हो तो उससे सुखद कुछ नहीं. ऐसे ही एक फ्रेम में प्रशांत अपने बेटे से कहता है,‘मां क्या करती है यह तुमने देखा है, मैंने मां क्या करती थी उसे देखा है. उसने अपना सब कुछ हमारे लिए छोड़ दिया. अब हमारा कुछ तो करना बनता है न!’ तो ऐसा ही पति है प्रशांत श्रीवास्तव यानी जस्सी गिल और उनका प्यारा और हाज़िरजवाब बेटा, जो मां को उकसाता है यह सब करने को.
हां, जया की मां के रूप में नीना गुप्ता भी हैं परदे पर और बिंदास रिचा चड्ढा हैं जया की सहेली और कबड्डी कोच मीनू की भूमिका में. कंगना ने बहुत मेहनत की है इस फ़िल्म के लिए, दो महीने कबड्डी का प्रशिक्षण लिया और वह मेहनत दिखाई देती है दृश्यों में. कंगना के अभिनय में भी ख़ासा निखार आया है. विशेषकर भावुक दृश्यों में अच्छी लगी हैं वह. जस्सी गिल बेहतरीन हैं हर फ्रेम में. और इन दोनों से कमाल और एकदम रियल लगा है उनका बेटा आदि यानी यज्ञ भसीन. कमाल का एक्टर है जी, अभी से ये हाल तो आगे तो सबको बेहाल करेंगे ये छोटे मियां. रिचा चड्ढा तो उम्दा ही हैं, नीना गुप्ता भी छोटे रोल में अच्छी लगी हैं.
अश्विनी अय्यर तिवारी का निर्देशन बेहद शानदार है. हर फ्रेम कसा हुआ है, फ़िल्म कहीं भी बोझिल नहीं होने दी गई है. अपना शहर फ़िल्म में देखकर अच्छा लगता है. बड़ा तालाब बेहतरीन ढंग से शूट किया गया है. दो गीत बेहद शानदार बन पड़े हैं, पहला जुगनू और दूसरा दिल ने कहा. दिल ने कहा को जस्सी ने ख़ुद गया है और शानदार गाया है. पंगा शीर्षक गीत के बोल ख़ूबसूरत है. संवाद भी बेहतर, चुटीले बन पड़े हैं.
तो लब्बोलुआब यही कि यदि आपने अब तक नहीं देखी तो देखिएगा ज़रूर इस दिल के क़रीब-सी लगनेवाली फ़िल्म को, ज़िन्दगी से पंगा लेने की दास्तान को.
फ़ोटो: गूगल