एक ही चीज़ का अलग-अलग लोगों के जीवन में क्या महत्व हो सकता है बताती है चंद्रकांत देवताले की कविता.
पत्थर की बेंच
जिस पर रोता हुआ बच्चा
बिस्कुट कुतरते चुप हो रहा है
जिस पर एक थका युवक
अपने कुचले हुए सपनों को सहला रहा है
जिस पर हाथों से आंखें ढांप
एक रिटायर्ड बूढ़ा भर दोपहरी सो रहा है
जिस पर वे दोनों
ज़िंदगी के सपने बुन रहे हैं
पत्थर की बेंच
जिस पर अंकित है आंसू, थकान
विश्राम और प्रेम की स्मृतियां
इस पत्थर की बेंच के लिए भी
शुरू हो सकता है किसी दिन
हत्याओं का सिलसिला
इसे उखाड़ कर ले जाया
अथवा तोड़ा भी जा सकता है
पता नहीं सबसे पहले कौन आसीन हुआ होगा
इस पत्थर की बेंच पर!
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