पढ़ने को तो यह बहुत छोटी-सी कविता है. पर इसे दो बार पढ़िए, और तब इसमें आप महसूस कर सकेंगे हर मां और पिता के प्रेम की ख़ुशबू. कवयित्री सुदर्शन शर्मा द्वारा एक बेटी के नज़रिए से मां और पिता के प्रेम पर लिखी एक बेजोड़ कविता है यह.
मां के साथ विदा हुई
मां के खाने की ख़ुशबू
फिर क्यूं आते हैं पिता
जब मुझे खड़ा
पाते हैं
चिर परिचित चूल्हे के पास
क्या तलाशते हैं?
पतीले का ढक्कन हटा
सांस भरते पिता
मैं नहीं चाहती
कभी मां जैसा पके मेरा खाना
नहीं चाहती
ख़त्म हो कमरे से रसोईघर तक का सफ़र
पिता का
मैं शिद्दत से चाहती हूं
यूं ही
एक टुकड़ा महक ढूंढ़ते
एक दिन
मां को जा मिलें
प्रेमी पिता
कवयित्री: सुदर्शन शर्मा
कविता संग्रह: तीसरी कविता की अनुमति नहीं
प्रकाशक: बोधि प्रकाशन
Illustration: Pinterest