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छोटी सी बात: आपको गुदगुदाएगी, हंसाएगी और लाइफ़ लेसन्स सिखा जाएगी

जयंती रंगनाथन by जयंती रंगनाथन
April 24, 2021
in ओए एंटरटेन्मेंट, रिव्यूज़
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छोटी सी बात: आपको गुदगुदाएगी, हंसाएगी और लाइफ़ लेसन्स सिखा जाएगी
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ये दिन क्या आए, लगे फूल हंसने, देखो बसंती-बसंती, होने लगे मेरे सपने… अगर आपने यह गाना सुना है, छोटी सी बात फ़िल्म देखी है, वो भी अपने बचपन या जवानी में, तो मेरी बात से इत्तफाक़ रखेंगे कि जब यह फ़िल्म देख कर आप घर लौट रहे थे, तो होंठों पर हंसी थी, दिल में करार. कमर सीधी, पैरों में बेलौस लटपट. मन में यकीं कि आप अब कुछ कर ही लेंगे, फ़िल्म के पिद्दी से हीरो अरुण प्रदीप ने कर दिखाया, तो हम क्यों नहीं? एक गुदगुदाती, गुनगुनाती फ़िल्म के साथ-साथ लाइफ़ लेसंस का बेहतरीन तड़का मिल जाए तो क्या बात है?

आज मैं बात कर रही हूं 9 जनवरी 1976 को रिलीज़ हुई फ़िल्म छोटी सी बात की. बासु चटर्जी उन दिनों बीच की राह के फ़िल्ममेकर माने जाते थे. कमर्शियल और समानांतर फ़िल्मों के बीच मिडल ऑफ़ द रोड फ़िल्में. इस वक़्त जब पूरी दुनिया, ख़ासकर हमारा देश जब कोरोना की दूसरी लहर के चपेट में है, हर कहीं बुरा हाल है. कुछ करने का मन नहीं हो रहा, लोग आपस में कहते दिख रहे हैं, मन बांटने के लिए कुछ अच्छा पढ़ो, अच्छा देखो, तो मैं आपको यह फ़िल्म देखने की सलाह दूंगी. दिमाग़ पर किसी तरह का बोझ नहीं पड़ेगा. पैंतालीस साल बाद भी यह फ़िल्म जेडेड नहीं लगेगी. पहले इस फ़िल्म की कहानी पर बात करूंगी, इसके बाद फ़िल्म से जुड़ी दिलचस्प बातों पर. अंत में कुछ अनचाही बातें भी.
हमेशा की तरह यह फ़िल्म भी हमने सपरिवार भिलाई के चित्र मंदिर थियेटर में मैटिनी शो में देखी. जनवरी का महीना था. भिलाई में गुलाबी सी सर्दी पड़ती है. यानी मौसम अच्छा रहा होगा. इंटरवेल में समोसे खाने में भी मज़ा आया होगा. इसलिए भी कि इंटरवेल बड़े मज़ेदार क्लिफ़ हैंगर पर होता है. किस्मत और ज़िंदगी से हारा बेचारा हीरो आख़िरकार कर्नल जूलियस नगेंद्रनाथ विलफ्रेड सिंह से मिलने खंडाला जा रहा है…
चलिए अब बात करते हैं शुरू से. अरुण प्रदीप (अमोल पालेकर) यह डबल नाम वाला ग़रीब सा दिखने वाला बंदा मुंबई के एक फ़र्म में क्लर्क है. उसे अपने बस स्टॉप पर रोज़ मिलने वाली कामकाज़ी लड़की प्रभा नारायण (विद्या सिन्हा) से प्यार हो जाता है. पर जनाब इतने लल्लू हैं कि लड़की का पीछा करते हैं, स्टॉक भी करते हैं, पर कभी खुल कर बात करने की हिम्मत नहीं होती. लड़की जानती है कि लड़का उससे मोहब्बत करता है, पर वह उसकी तरफ़ से बात आगे बढ़ाने का इंतज़ार कर रही है. इसी समय प्रभा की ज़िंदगी में उसका ऑफ़िस कलीग नागेश (असरानी) टपकता है. जो अरुण से ज़्यादा स्मार्ट है, उसके पास अपनी स्कूटर है, टेबल टेनिस खेलता है और वाचाल नंबर एक है. हीरो तमाम तरह के पैंतरे आजमाता है पर हर कहीं उसे हार मिलती है. हार कर उसे कहीं से लाइफ़ कोच कर्नल का पता मिलता है और वह पहुंच जाता है खंडाला. कर्नल वगैरह वगैरह (अशोक कुमार) एक शातिर, प्रोफ़ेशनल और पहुंचे हुए बंदे हैं. वो ज़िंदगी में, इश्क़ में हारे हुए लड़कों को कोचिंग देते हैं. उनकी शरण में आ कर अरुण ऐसे दांवपेंच सीख लेता है, जो उसे स्ट्रीट स्मार्ट बना देता है. कर्नल के कई डायलॉग आपके दिल ओ दिमाग़ में चिपक जाते हैं: ज़िंदगी में अगर आपके सामने बड़ी लकीर हो तो क्या करोगे? अपनी ज़िंदगी को ज़बरदस्त घुमाव दो कि तुम्हारा प्रतिद्वंद्वी नीचे तुम ऊपर हो जाओ. स्मार्ट बनने के भी छोटे-छोटे नुस्खे बेहद कारगर. बदमाशी भरे. पर हां, जब बात लड़की पटाने की हो तो सब जायज. ये सारे ट्रिक सीख कर अपना हीरो वापस लौटता है और मज़े-मज़े में हीरोइन को पटा लेता है और नागेश को चारों खाने चित्त कर देता है. कहानी बस इतनी सी ही है. लेकिन द ग्रेट व्यंग्य लेखक शरद जोशी की वजह से लगभग हर संवाद चुटीले बने हैं. यानी यहां हीरो मार-पीट से नहीं, अपनी बदमाशी और ट्रिक्स से नागेश को पटखनी देता है. और आप हंसते रहते हैं, क्योंकि फ़र्स्ट हॉफ़ में हीरो की मिट्टी पलीद हुई थी. 

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फ़िल्म छोटी सी बात से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें
विद्या सिन्हा मिसेज़ बॉम्बे बनने के बाद फ़िल्मों में आईं थी बासु चटर्जी की ही फ़िल्म रजनीगंधा से. विद्या एकदम गर्ल नेक्स्ट डोर लगती हैं. इस फ़िल्म में भी सत्तर के दशक का बाम्बे, वहां का वर्किंग क्लास, माटुंगा, सायन, समंदर, वीटी, जहांगीर आर्ट गैलरी और वहां का फेमस रेस्तरां समोवर सबकुछ है. कुछ बात जो मैं कहे बिना नहीं रह पाऊंगी, समोवर लगभग एक दशक पहले बंद हो गया.
मैं जिन दिनों मुंबई में थी, समोवर कई बार जाना हुआ. फ़िल्म में नागेश समोवर के वेटर से चिकन अलापूज बनवाने को कहता है, पीटर से कहना अच्छे से बनाए. लेकिन मज़े की बात यह कि समोवर में ऐसी कोई डिश बनती ही नहीं थी. वहां की चाय, समोसे, कटलेट, बिरयानी बहुत फ़ेमस थी. बारिश के दिनों में एक तरफ़ से ओपन रेस्तरां में देर तक बैठ कर चाय पीने का अलग ही मज़ा था. उस समय बॉम्बे के हूजहू वहां आते थे, तमाम कलाकार, पेंटर, राइटर…
इस फ़िल्म में जानेमन-जानेमन तेरे दो नयन गाने में धर्मेंद्र और हेमा मालिनी ने काम किया है. दरअसल बासु दा धर्मेंद्र को बहुत चाहते थे. जब उन्होंने धरम जी से यह गाना करने को कहा, तब सीन में कहीं हेमा नहीं थीं. धर्म और हेमा का इश्क़ उन दोनों उफान पर था और किसी बात पर हेमा धरम जी से रूठी हुई थीं. धर्मेंद्र ने बासु दा से कहा कि अगर वो गाने के लिए हेमा को खंडाला ले आएं तो वे उनके लिए फ्री में कर देंगे. तो विद्या के साथ शूट करने के बजाय धर्म और हेमा ने खंडाला में दो दिन लगा कर इस गाने की शूटिंग की. बस गाने के लास्ट सीन में विद्या आती है. इस ट्रिविया के अलावा यह बात भी दिलचस्प है कि हेमा की मां जया चक्रवर्ती ने भी फ़िल्म में पैसा लगाया था. वैसे इस फ़िल्म के प्रोड्यूसर थे बीआर चोपड़ा, जो उन दिनों अमिताभ बच्चन के साथ ज़मीर फ़िल्म बना रहे थे.
छोटी सी बात के बस स्टॉप वाले सीन में ज़मीर का पोस्टर साफ़-साफ़ दिखाई देता है. यानी चोपड़ा साहब ने अपनी एक फ़िल्म में दूसरी फ़िल्म का अच्छे से पीआर कर लिया. इस फ़िल्म में अमिताभ बच्चन ने भी छोटी-सी भूमिका निभाई थी, जिसमें वे ज़मीर के कास्ट्यूम में नज़र आए थे. वैसे आपको बता दूं कि ज़मीर भी ग़ज़ब की फ़िल्म थी: तुम भी चलो हम भी चले… बड़े दिनों में ख़ुशी का दिन आया…
छोटी सी बात उस वक़्त ख़ूब चली. इसका एक और गाना ना जाने क्यों होता है ये ज़िंदगी के साथ… बहुत मीठा है. आज भी फ़िल्म जब देखें तो शर्तिया होठों पर से मीठी-सी मुस्कान जाएगी ही नहीं. हां, आज के संदर्भों में लड़की का पीछा करना, स्टॉक करना, दूसरे लड़के को नीचा दिखाने के लिए गेम्स खेलना भद्दा लगता है. वैसे लड़की पटाने का नुस्खा जो कर्नल सिखाता है, वो भी स्त्री विरोधी है: ड्राइंगरूम टु बेडरूम तीन आसान चालों में.
उस समय आप अरुण के साथ होते हैं, चाहते हैं कि उसे प्रभा मिले, इसलिए सब सही लगता है. सच कहें तो ये विरोधी बातें तब दिमाग़ में आती ही नहीं.
एक और मज़ेदार बात, कुछ सालों पहले इस फ़िल्म का रीमेक बनने की बात हुई थी. अमोल पालेकर का रोल सलमान खान निभाने वाले थे और अशोक कुमार का रोल अनिल कपूर. लेकिन आयडिया ठंडे बक्से में चला गया. वैसे आपके मुताबिक़ अगर यह फ़िल्म आज बने तो आप किसे देखना चाहेंगे? मैं आयुष्मान खुराना को अरुण के रोल में, अपारशक्ति खुराना को नागेश के रोल में, अक्षय कुमार को कर्नल के रोल में और भूमि पेड़नेकर को प्रभा के रोल में देखना चाहूंगी.

क्यों देखें: हलकी-फुलकी मज़ेदार , ज़बरदस्त ऐक्टिंग, गाने और कुछ लाइफ़ लेसंस की सीख देनेवाली फ़िल्म.

कहां देखें: यूट्यूब, अमेज़ॉन प्राइम पर

Tags: 30 days 30 films30 दिन 30 फिल्मेंChoti si baatकल्ट क्लासिक फिल्मेंछोटी सी बातजयंती रंगनाथनपुरानी फिल्मेंफ़िल्म छोटी सी बातफिल्म रिव्यूफिल्म समीक्षाफिल्में और ज़िंदगी
जयंती रंगनाथन

जयंती रंगनाथन

वरिष्ठ पत्रकार जयंती रंगनाथन ने धर्मयुग, सोनी एंटरटेन्मेंट टेलीविज़न, वनिता और अमर उजाला जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों में काम किया है. पिछले दस वर्षों से वे दैनिक हिंदुस्तान में एग्ज़ेक्यूटिव एडिटर हैं. उनके पांच उपन्यास और तीन कहानी संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं. देश का पहला फ़ेसबुक उपन्यास भी उनकी संकल्पना थी और यह उनके संपादन में छपा. बच्चों पर लिखी उनकी 100 से अधिक कहानियां रेडियो, टीवी, पत्रिकाओं और ऑडियोबुक के रूप में प्रकाशित-प्रसारित हो चुकी हैं.

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