आम आदमी की ज़िंदगी से जुड़े सवालों पर संसद की चुप्पी को कम से कम शब्दों में बयां करती है धूमिल की यह छोटी-सी कविता ‘रोटी और संसद’.
एक आदमी
रोटी बेलता है
एक आदमी रोटी खाता है
एक तीसरा आदमी भी है
जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है
वह सिर्फ़ रोटी से खेलता है
मैं पूछता हूं
‘यह तीसरा आदमी कौन है?’
मेरे देश की संसद मौन है
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