पंकज सुबीर का लिखा उपन्यास रूदादे सफ़र अपने नाम के अनुरूप एक डॉक्टर के जीवन के सफ़र को इस तरह बयान करता चलता है कि आपको पिता-पुत्री के बीच के स्नेहभरे संवेदनशील संबंध भी नज़र आते हैं और अस्पतालों के एनॉटमी विभाग की, देहदान जैसे गूढ़ विषय की समझ का विकास भी होता है. साथ ही, जीवन में संगीत की अहमियत को महसूस करते हुए एक ख़ूबसूरत शहर से मुलाक़ात भी हो जाती है. यह उपन्यास धीमी, सुरीली, गहरी पकड़ बनाए रखने वाली ऐसी गज़ल सा लगता है, जो दर्द का एहसास तो कराती है, लेकिन उसमें इतनी कशिश है कि उसे सुनने का मोह आप छोड़ नहीं सकते हैं.
पुस्तक: रूदादे सफ़र
विधा: उपन्यास
लेखक: पंकज सुबीर
प्रकाशक: शिवना प्रकाशन
मूल्य: रु 300/-
उपलब्ध: ऐमाज़ॉन
हाल ही में आया पंकज सुबीर का लिखा उपन्यास रूदादे सफ़र (जिसका अर्थ है सफ़रनामा) पढ़ते हुए आप कई तरह की भावनाओं से दो-चार होते हैं. डॉक्टर अर्चना, जो इस उपन्यास की मुख्य किरदार हैं, उनके साथ आप जुड़ते चले जाते हैं. पूरे उपन्यास में अर्चना और उनके पिता डॉक्टर राम के संवादों में संसार के हर पिता-पुत्री के बीच के स्नेह के बंधन की गुनगुनी गर्माहट हमेशा महसूस होती रहती है. वहीं हौले से इस सवाल का जवाब भी मिल जाता है कि अरेंज्ड मैरिजेज़ में जब किसी पति-पत्नी के बीच विचारों का कोई मेल न हो, तब भी कैसे उनके बीच गहरा प्रेम पनप जाता है.
पढ़ते हुए कई बार लगता है कि यह केवल एक पठनीय उपन्यास ही नहीं है, बल्कि हमारे जीवन को समृद्ध बनाता हुआ एक सामाजिक और संग्रहणीय दस्तावेज़ भी है, क्योंकि इसमें चिकित्सा से जुड़े सबसे अहम्, लेकिन सबसे उपेक्षित विषय देहदान पर इतनी गहराई से चर्चा की गई है कि आप उसकी पूरी प्रक्रिया से रूबरू होते हैं, उसे समझते हैं. और आपकी इच्छा हो आती है कि आप भी देहदान करें, क्योंकि आने वाली मानव जाति को चिकित्सकीय समस्याओं से उबारने में देहदान महती भूमिका निभाता है. इस लिहाज़ से इस उपन्यास को समाज के हर व्यक्ति को पढ़ना चाहिए, ताकि वह समाज को कुछ वापस लौटा सके.
गीत-संगीत तो यूं भी भारतीय परिवारों का अहम् हिस्सा है. अर्चना के द्वारा सुने जा रहे गीत और ग़ज़ल आपको उसकी मन:स्थिति से हूबहू रूबरू करा देते हैं. गीत-गज़लों का उपन्यास में इस तरह किया गया इस्तेमाल उपन्यास की पठनीयता को बढ़ाने और पाठक को उसके किरदारों के भीतर गहरे उतार देने में कारगर साबित हुआ है. इस उपन्यास में आप उस शहर, जिसमें डॉक्टर अर्चना रहती हैं यानी कि भोपाल की सुंदरता, ख़ूबियों और खामियों को भी जान लेते हैं. यदि आप भोपाल में रहे हैं तो ग़ज़लों और इस शहर के ज़िक्र के साथ आप अतीत में यहां बिताए गए अपने समय में खो भी सकते हैं और यदि आप भोपाल को नहीं जानते हैं तो उसे गहराई से जानने का रुचिकर अवसर मिलता है, जिसके बाद आप एक बार तो इस शहर की गलियों में ज़रूर घूमना चाहेंगे.
इस उपन्यास का अंत आपको चौंका सकता है, कुछ ऐसा घटित होता है, जिसकी पाठक ने कल्पना भी न की हो. अत: उसका ज़िक्र यहां नहीं होगा, उसे आप उपन्यास पढ़ कर ही जानें यही सही रहेगा. पर यह ज़रूर कहना चाहूंगी कि धीमी, सुरीली और गहरी पकड़ बनाए रखने वाली दर्द भरी ग़ज़ल सा उपन्यास है रूदादे सफ़र, जहां आप इसे पढ़ते हुए यह भी महसूस करते हैं कि काश अर्चना के जीवन में प्रेम की जो हल्की सी दस्तक सुनाई देती है, वो उसके जीवन का हिस्सा बन जाए और यदि किसी उपन्यास का किरदार से पाठक से यूं जुड़ जाए कि पाठक उसके लिए दुआ करने लगे तो यह उस उपन्यास की एक बड़ी सफलता है.