समकालीन आदिवासी साहित्य का जाना-माना चेहरा वंदना टेटे की यह कविता सबसे असल सौंदर्य और बनावटी सौंदर्य के भेद को सीधे-सपाट शब्दों में बता जाती है.
टांगी,
हंसिया,
दाब,
दरांती
ये सब हमारी सुन्दरता के
प्रसाधन हैं
जिन्हें हाथ में पकड़ते ही
मैं दुनिया की
सबसे सुन्दर स्त्री हो जाती हूं
तब कहीं दूर रैम्प पर
लड़खड़ाती हुई टांगों वाली
तुम्हारी सारी विश्वसुन्दरी पुतलियां
पछ़ाड़ खाकर गिर जाती हैं
प्रायोजक भाग उठते हैं
टीवी डिसकनेक्ट हो जाता है
मोबाइल के टॉवर
ठप्प हो जाते हैं
जब मैं हाथ में ले लेती हूं
टांगी, हंसिया, दाब, दरांती
या इन जैसा कुछ भी…
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