ज्ञान प्राप्ति के लिए रात के अंधेरे में घर-परिवार त्याग देनेवाले युवराज सिद्धार्थ की शोकाकुल पत्नी यशोधरा अपने मन की व्यथा अपनी सखि से व्यक्त करती हैं. उन्हें इस बात का दुख है कि पति सिद्धार्थ उन्हें बिना बताए चुपचाप घर छोड़कर निकल गए.
सखि, वे मुझसे कहकर जाते,
कह, तो क्या मुझको वे अपनी पथ-बाधा ही पाते?
मुझको बहुत उन्होंने माना
फिर भी क्या पूरा पहचाना?
मैंने मुख्य उसी को जाना
जो वे मन में लाते
सखि, वे मुझसे कहकर जाते
स्वयं सुसज्जित करके क्षण में,
प्रियतम को, प्राणों के पण में,
हमीं भेज देती हैं रण में
क्षात्र-धर्म के नाते
सखि, वे मुझसे कहकर जाते
हुआ न यह भी भाग्य अभागा,
किसपर विफल गर्व अब जागा?
जिसने अपनाया था, त्यागा
रहे स्मरण ही आते!
सखि, वे मुझसे कहकर जाते
नयन उन्हें हैं निष्ठुर कहते
पर इनसे जो आंसू बहते
सदय हृदय वे कैसे सहते?
गए तरस ही खाते!
सखि, वे मुझसे कहकर जाते
जाएं, सिद्धि पावें वे सुख से,
दुखी न हों इस जन के दुख से,
उपालम्भ दूं मैं किस मुख से?
आज अधिक वे भाते!
सखि, वे मुझसे कहकर जाते
गए, लौट भी वे आवेंगे
कुछ अपूर्व-अनुपम लावेंगे
रोते प्राण उन्हें पावेंगे
पर क्या गाते-गाते?
सखि, वे मुझसे कहकर जाते
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