शहर हमें ज़्यादा से ज़्यादा सुख, सुविधा और आज़ादी के सपने दिखाता है, और बदले में बहुत कुछ छीन लेता है. सपनों के बदले में हम क्या दे रहे हैं, कभी किसी रात के सन्नाटे में सुनने की कोशिश करना. केदारनाथ सिंह की कविता शहर में रात यही सलाह देती है.
बिजली चमकी, पानी गिरने का डर है
वे क्यों भागे जाते हैं जिनके घर है
वे क्यों चुप हैं जिनको आती है भाषा
वह क्या है जो दिखता है धुंआ-धुआं-सा
वह क्या है हरा-हरा-सा जिसके आगे
हैं उलझ गए जीने के सारे धागे
यह शहर कि जिसमें रहती है इच्छाएं
कुत्ते भुनगे आदमी गिलहरी गाएं
यह शहर कि जिसकी ज़िद है सीधी-सादी
ज़्यादा-से-ज़्यादा सुख सुविधा आज़ादी
तुम कभी देखना इसे सुलगते क्षण में
यह अलग-अलग दिखता है हर दर्पण में
साथियों, रात आई, अब मैं जाता हूं
इस आने-जाने का वेतन पाता हूं
जब आंख लगे तो सुनना धीरे-धीरे
किस तरह रात-भर बजती हैं ज़ंजीरें
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