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अच्छा आदमी: शिल्पा शर्मा की कहानी

शिल्पा शर्मा by शिल्पा शर्मा
January 11, 2021
in नई कहानियां, बुक क्लब
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अच्छा आदमी: शिल्पा शर्मा की कहानी
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शादी के बाद की बोरिंग हो चुकी रिचा की ज़िंदगी की वह शाम कैसे बन गई ख़ास. जानने के लिए पढ़ें, छोटी-सी कहानी अच्छा आदमी.

वो अभी नहीं उठेगी. 8 बज गए तो क्या हुआ? आज शनिवार है. ऑफ़िस की छुट्टी है और उसके पति नीलेश भी घर पर नहीं हैं. 10 दिनों के टूर पर गए नीलेश कल लौटेंगे. रिचा ने करवट बदली. थोड़ी देर और सोने की कोशिश की, पर नींद ही नहीं आई तो झक मार कर उठ बैठी. रेश्मा को चाय के लिए आवाज़ दी और फ्रेश होने चल दी.
नीलेश ने ही ज़बर्दस्ती करके रिचा को फ़ुलटाइम मेड रखने को कहा. वो तो कह भी रही थी कि दो लोगों का काम ही कितना होता है? वो कर लेगी, पर नीलेश नहीं माने. कहने लगे,‘ऑफ़िस से थककर आओगी. मैं नहीं चाहता कि तुम घर के कामों में उलझो. तुम्हें भी तो अपने ‘मी टाइम’ की ज़रूरत होगी.’ और इस तरह रेश्मा भी उनके घर की सदस्य बन गई.
माना बहुत अच्छे हैं नीलेश, पर दो बरस की इस शादी में जीवन कितना नीरस हो गया है. ज़्यादा बातचीत करने की आदत नहीं है उन्हें. कभी अच्छे से बन-संवर कर उनके सामने आती है तो भी तारीफ़ नहीं करते. उनकी आंखों में ये बात तो पढ़ी जा सकती है कि वो अच्छी लग रही है, पर मुंह से भी तो कहना चाहिए ना…कि वो अच्छी लग रही है. चाय पीते हुए रिचा सोच रही थी. मोबाइल बजा तो उसकी तंद्रा टूट गई. अक्षय का फ़ोन था.
‘‘हाय अक्षय. सुबह-सुबह फ़ोन…क्या बात है?’’
‘‘सुबह-सुबह? 10 बज रहे हैं रिचा जी.’’
‘‘आज तो शनिवार है. आज के दिन 10 बजे यानी सुबह-सुबह.’’
‘‘अच्छा…तो मैं पूछना चाहता था कि दोपहर को पांच बजे आप क्या कर रही हैं?’’
‘‘दोपहर को पांच बजे…मतलब? जब 10 बजे सुबह-सुबह है तो शाम के पांच बजे दोपहर ही होगी ना आपकी?’’
खिलखिला उठी रिचा,‘‘नीलेश नहीं हैं तो दोपहर के पांच बजे घर पर अकेली बोर हो रही होंगी. और क्या? पर पूछ क्यों रहे हो?’’
‘‘यार मेरी बीवी गई हुई है मायके. मैं भी बोर हो रहा हूं. तुम्हारे घर के पास ही मेरे परम मित्र रहते हैं, उन्होंने मुझे लंच पर बुलाया है. सोचा लौटते में तुम्हारे साथ कॉफ़ी पी लूंगा. हम दोनों की बोरियत मिट जाएगी.’’
‘‘हां क्यों नहीं? अच्छा रहेगा.’’
‘‘तुम्हारे घर के पासवाले कैफ़े कॉफ़ी डे में पांच बजे मिलते हैं.’’
‘‘श्योर!’’
‘‘बाय.’’
अक्षय से बात करने के बाद रिचा ने महसूस किया कि चलो आज की शाम का कोई मक़सद तो है. रिचा जानती है कि पिछले कुछ महीनों से वो अपनी ऑफ़िस कलीग अक्षय से थोड़ा ज़्यादा ही घुलमिल रही है. हो भी क्यों ना…? वो है भी दिलचस्प. तारीफ़ करना कोई उससे सीखे. हर किसी की जी खोलकर तारीफ़ करता है. अक्षय तो उसकी तारीफ़ों के पुल बांधते नहीं थकता. कितना अच्छा लगता है उसे. आख़िर अपनी तारीफ़ कौन-सी महिला नहीं सुनना चाहती? कभी-कभी लगता है कि उसकी बीवी कितनी ख़ुश रहती होगी. और एक नीलेश हैं…
धानी रंग की साड़ी चुनी उसने. अक्षय के साथ कॉफ़ी पीने जाते समय वो यही पहनेगी. छोटे-छोटे नीले बूटे वाली ये साड़ी नीलेश को बहुत पसंद है. कहा तो नहीं कभी उन्होंने, पर वो जब भी ये साड़ी पहनती है, उनकी आंखें बोल पड़ती हैं. हमेशा ही अपनी ओर खींच कर हौले-से गालों पर चुंबन अंकित कर देते हैं. नीली बिंदी लगाकर जब उसने ख़ुद को आइने में निहारा तो ख़ुद पर ही लट्टू हो गई.
‘‘हाय!’’ अक्षय ने उसे देखते ही हाथ हिलाया. रिचा ज्यों ही उसके क़रीब पहुंची, वो बेसाख़्ता बोल उठा,‘‘क्या बात है! कितनी सुंदर लग रही हो. ये रंग तुमपर बहुत खिल रहा है.’’
‘‘थैंक्स!’’ मुस्कुराते हुए रिचा ने पूछा,‘‘कैसा रहा तुम्हारा लंच?’’
‘‘लंच अच्छा था. अब तुम्हारे साथ कॉफ़ी पीकर और भी अच्छा हो जाएगा.’’
‘‘कहां हैं तुम्हारी बेग़म का मायका? हम ऑफ़िस में इतनी बातें करते हैं, पर कभी उनके बारे में पूछा ही नहीं…’’
‘‘अमृता मध्यप्रदेश की है. टू बी प्रिसाइज़ भोपाल.’’
‘‘क्या करती है वो?’’
‘‘टेक्निकल राइटर है. मैं तो चाहता भी नहीं था कि वो शादी के बाद काम करे.’’
‘‘क्यूं भला?’’ यह सवाल करते-करते रिचा सोचने लगी. शादी के बाद जब उसने नीलेश से काम जारी रखने की बात कही थी तो वो कितना ख़ुश हो गए थे. ‘क्यों नहीं? अपनी प्रतिभा का इस्तेमाल तो तुम्हें करना ही चाहिए. शादी हो गई…इसका मतलब जेल थोड़े ही हो गई तुम्हें?’
‘‘अच्छा भला तो कमा लेता हूं मैं. फिर क्या ज़रूरत है उसे काम करने की?’’
‘‘पर अब तो वो काम कर रही है ना?’’
‘‘हां. जब वो ज़िद पर अड़ गई तो मैंने ‘हां’ कर दी. पर फिर साफ़ कह दिया कि मैं मेड के हाथ का बना खाना नहीं खा सकता. खाना तुम्हें ही बनाना होगा.’’
‘‘पर ऑफ़िस से आकर वो थक नहीं जाती है?’’ यह जवाब देते हुए फिर रिचा को नीलेश की याद आ गई. रेश्मा को जबरन ही रखवाया है उन्होंने, ताकि वो थका हुआ महसूस न करे.
‘‘थकती तो है, पर काम करना तो उसका ही निर्णय है ना?’’
‘‘कब लौट रही है वो? आएगी तो मिलना चाहूंगी.’’
‘‘कल शाम तक आ जाएगी. अगले संडे नीलेश के साथ घर आ जाओ ना.’’
‘‘नहीं-नहीं हम नहीं आएंगे. तुम उसे लेकर हमारे घर आओ. नीलेश को भी अच्छा लगेगा,’’ रिचा ने ज़ोर देते हुए कहा. मन ही मन वो सोच रही थी कि कम से कम वीकएंड पर एक शाम अमृता को किचन के काम से बचा लेगी.
कॉफ़ी ख़त्म होने को थी कि रिचा का मोबाइल बज उठा. नीलेश थे.
‘‘कहां हो रिचा?’’
‘‘अक्षय के साथ कैफ़े कॉफ़ी डे में हूं.’’
‘‘अच्छा सुनो, मेरा काम जल्दी ख़त्म हो गया है. मैं सुबह के बजाय रात की फ़्लाइट से आ रहा हूं. 10 बजे तक घर पहुंच जाऊंगा.’’
‘‘अरे वाह. फ़्लाइट में डिनर मत करना. मैं डिनर तुम्हारे साथ ही करूंगी.’’
‘‘ओके.’’
‘‘नीलेश थे. आज ही आ रहे हैं,’’ फ़ोन रखते हुए रिचा ने अक्षय से कहा.
‘‘पल-पल की ख़बर देते रहते हैं नीलेश?’’ अक्षय ने पूछा.
‘‘हां भई, इस मामले में नीलेश का जवाब नहीं है. कहीं भी हों, चाहे ऑफ़िस में या टूर पर रात आठ बजे उनका फ़ोन आ ही जाता है. बात ज़्यादा नहीं करते, लेकिन दिनभर के अपडेट्स और कब आ रहे हैं ये ज़रूर बता देते हैं,’’ रिचा मुस्कुराते हुए बोली.
‘‘और एक मुझे देखो…अमृता को मायके गए सात दिन होने को आए. मैंने इस बीच तीन बार ही उससे बात की है और वो भी किसी फ़िक्स टाइम पर नहीं. कभी ये पूछने कि दाल कैसे बनाऊं तो कभी ये कि बेदिंग सोप कहां रखा है,’’ आत्मावलोकन करते हुए या शायद अपनी बीवी को याद करते हुए अक्षय बोला,‘‘यार, तुम्हारे पति से मिलना पड़ेगा…अच्छा पति बनने का ये गुण मैं उनसे ज़रूर सीखना चाहूंगा.’’
‘‘फिर तो अगले वीकएंड अमृता के साथ तुम हमारे घर ज़रूर आ रहे हो. है ना?’’ रिचा ने दोहराया,‘‘चलो अब चलें. सोच रही हूं आज मैं अपने हाथों से नीलेश के लिए कुछ पका दूं…बिल्कुल अमृता की तरह. ये गुण मुझे उससे सीखना चाहिए.’’ रिचा मुस्कुरा उठी.
दोनों ने एक-दूसरे को ‘बाय’ कहा और अपने-अपने घर की ओर चल पड़े.

Illustration: Pinterest

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पत्रकारिता का लंबा, सघन अनुभव, जिसमें से अधिकांशत: महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर कामकाज. उनके खाते में कविताओं से जुड़े पुरस्कार और कहानियों से जुड़ी पहचान भी शामिल है. ओए अफ़लातून की नींव का रखा जाना उनके विज्ञान में पोस्ट ग्रैजुएशन, पत्रकारिता के अनुभव, दोस्तों के साथ और संवेदनशील मन का अमैल्गमेशन है.

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