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असली घर: मीनाक्षी विजयवर्गीय की लघुकथा

टीम अफ़लातून by टीम अफ़लातून
June 21, 2022
in नई कहानियां, बुक क्लब
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Meenaksh-Vijayvargiya
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घर वह जगह है, जहां हमें पूरी दुनिया जीतने के बाद लौटना है. पर कुछ ऐसे बेघर लोग भी होते हैं, जिन्हें जीवनभर अपने सच्चे और अच्छे घर की तलाश रहती है.

मेरे जन्म लेते ही मेरी मां की मृत्यु हो गई. पिता मुझे मां की मृत्यु का दोषी मानते रहे. उन्होंने मुझे नानी को सौंपकर दूसरी शादी कर ली. हमेशा से मैंने अपने आप को अनाथ ही माना. मुझे लगता था कि मेरा दु:ख कितना बड़ा है! पर आज उस लड़की की तरफ़ देखता हूं जो, आईने के सामने बैठ कर मुस्कुरा रही है. आज उसकी शादी होने वाली है. जब से वो थोड़ा बहुत समझने लगी थी, तब से कई बातें सुनी पर उन सब बातों का एक ही सार समझ में आया, लड़कियों का जन्म जिस घर में होता है, वह उसका अपना घर होता ही नहीं. जब कभी अपनी बहन के कमरे में जाती तो बहन कहती थी, तुम क्यों आई? मुझे तो भाई चाहिए था. बुआ दादी की बातें सुनी कई बार. उनकी गोद में जाकर बैठती तो वे गोद से उतार देते. आपस में बात करते, इसे हमारा ही घर मिला था आने को. छोटे भाई के जन्म से पहले कई बार उसने माता-पिता को बात करते सुना कि अब यह ग़लती हो गई दोबारा नहीं होने देंगे. इस बार दूसरा डॉक्टर चुनेंगे, चाहे ज़्यादा रुपए देने पड़े. यह सारी बातें उसके बारे में थी, जो उसे सोचने पर मजबूर करती कि इस घर को उसकी ज़रूरत नहीं, वह ग़लती है, उसका जन्म ही ग़लत घर में हो गया. किसी को उसके जन्म की ख़ुशी ही नहीं थी. बड़ी बहन की विदाई के समय सुना मां कह रही थी कि शादी के बाद ही लड़की को अपना सही घर मिलता है. तब से उसे इंतज़ार था आज का. अपने सही घर का, सही पते का. वह परिवार में जन्म लेनेवाली दूसरी लड़की थी, जिसकी चाहत किसी को ना थी. पूरे परिवार के होते हुए भी वह अनाथ ही रही.
मुझे लगा मेरा दु:ख तो कुछ भी नहीं. दु:खी तो वह लड़की है, जो वास्तव मे अनाथ है. जो पूरे परिवार के होते हुए भी अकेली थी. उसे तो कभी प्यार मिला ही नहीं. परिवार में जन्म लेने वाला अनचाहा बच्चा परिवार के होते हुए भी उपेक्षा का शिकार बनता है ओर आजीवन अनाथ की ज़िंदगी जीता है. काश, दुनिया के हर अनाथ बच्चे को उसका सच्चा और अच्छा घर मिले!

Illustration: Pinterest

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