• होम पेज
  • टीम अफ़लातून
No Result
View All Result
डोनेट
ओए अफ़लातून
  • सुर्ख़ियों में
    • ख़बरें
    • चेहरे
    • नज़रिया
  • हेल्थ
    • डायट
    • फ़िटनेस
    • मेंटल हेल्थ
  • रिलेशनशिप
    • पैरेंटिंग
    • प्यार-परिवार
    • एक्सपर्ट सलाह
  • बुक क्लब
    • क्लासिक कहानियां
    • नई कहानियां
    • कविताएं
    • समीक्षा
  • लाइफ़स्टाइल
    • करियर-मनी
    • ट्रैवल
    • होम डेकोर-अप्लाएंसेस
    • धर्म
  • ज़ायका
    • रेसिपी
    • फ़ूड प्लस
    • न्यूज़-रिव्यूज़
  • ओए हीरो
    • मुलाक़ात
    • शख़्सियत
    • मेरी डायरी
  • ब्यूटी
    • हेयर-स्किन
    • मेकअप मंत्र
    • ब्यूटी न्यूज़
  • फ़ैशन
    • न्यू ट्रेंड्स
    • स्टाइल टिप्स
    • फ़ैशन न्यूज़
  • ओए एंटरटेन्मेंट
    • न्यूज़
    • रिव्यूज़
    • इंटरव्यूज़
    • फ़ीचर
  • वीडियो-पॉडकास्ट
  • लेखक
ओए अफ़लातून
Home बुक क्लब क्लासिक कहानियां

चेरी के पेड़: कहानी ख़ुशी और उदासी की (लेखक: रामकुमार वर्मा)

टीम अफ़लातून by टीम अफ़लातून
May 15, 2023
in क्लासिक कहानियां, बुक क्लब
A A
Ramkumar-Verma_Kahani
Share on FacebookShare on Twitter

पहली बार चेरी के पेड़ों को देखने की बच्चों की ख़ुशी और चेरी न खा पाने की उदासी के बीच झूलती रामकुमार वर्मा की यह कहानी दिल को छू जाती है.

फाटक पार करते ही जिस ओर सबसे पहले हमारा ध्यान गया, वे थे पेड़ों पर लटकते हुए अलूचों से मिलते-जुलते किसी फल के गुच्छे. मकान के भीतर घुसने के बदले हम उस ओर दौड़े. कई पेड़ थे जिन पर वे लटक रहे थे. परंतु उछल-उछल कर कूदने पर भी किसी के हाथ में एक भी दाना नहीं आ सका. मैं सबसे लंबा था, लेकिन मेरा हाथ भी उन्‍हें छूते-छूते रह जाता. हमारा शोर सुन कर बड़ी बहन भीतर से आईं.
‘यह तोड़ दीजिए, न जाने कौन-सा फल है! शायद अलूचे या आलूबुखारा या खूबानी…’ हम सब चिल्लाने लगे.
बहन धीमी चाल से हमारी ओर आने लगीं. हमें क्रोध आया कि वे ऐसे मौके पर भाग कर क्यों नहीं आतीं. लेकिन भय था कि कहीं उनसे जल्दी आने के लिए कहें तो वे वापस न लौट जाएं.
‘क्या हैं ये….’ उन्‍होंने ऊपर पेड़ की ओर देखते हुए कहा.
‘शायद अलूचे ही हैं. तोड़ दीजिए जल्दी.’
‘कोई जंगली फल है शायद?’ वे बोलीं.
‘नहीं-नहीं जंगली नहीं है,’ हम चिल्लाए, ‘एक तोड़ कर मुझे दीजिए…’
हमारी ओर बिना ध्यान दिए वे ऊपर लटकते गुच्छों को देख रही थीं, फिर एक दाना तोड़ा और उसे घुमा-फिरा कर देखती रहीं. ‘पता नहीं क्या है? ऐसा फल तो कभी किसी पहाड़ पर देखा नहीं.’
हम उनके आस-पास एक दायरा बना कर खड़े हो गए थे और अब उस एक दाने को लेने के लिए छीना-झपटी करने लगे.
‘नहीं, यह खाना नहीं होगा. कौन जानता है, इसमें जहर हो! पहले माली से पूछेंगे.’ फिर मेरी ओर देख कर बोलीं, ‘सुनो, कोई नहीं तोड़ेगा इन्हें!’ यह कह कर वे फिर धीमी चाल से मकान की ओर चली गईं.
उनके आदेश का कोई विरोध नहीं कर सकता, यह सोच कर सब मन मसोस कर रह गए. लेकिन उस शाम सारे बाग में घूम-घूम कर हमने उन पेड़ों को गिना. दूसरे पेड़ भी थे लेकिन उनका महत्व नहीं के बराबर ही था. यह पहला मौका था कि किसी पहाड़ में अपने ही बाग में किसी फल के इतने पेड़ मिले हों. कभी एक-आध अलूचे, खूबानी या सेब का पेड़ मिल जाता था, या फिर करीब ही किसी दूसरे मकान में इन पेड़ों को देख कर चुपके से कभी कुछ तोड़ लेते, लेकिन इस बार अपने ही बाग में इतने पेड़… हमारे उत्साह की सीमा नहीं थी.
अंदर बहन ने वह दाना पिता के सामने रख कर कहा, ‘पता नहीं कौन-सा फल है? बाग में लगा है.’
पिता उसे देखते ही बोले, ‘यह तो चेरी है, अभी पकी नहीं.’
चेरी का नाम सुनते ही हमारा उत्साह और भी बढ़ गया. हमने आज तक चेरी का पेड़ नहीं देखा था और अब अपने ही बाग में पंद्रह-बीस चेरी के पेड़ है, जिन्हें तोड़ने से कोई नहीं रोकेगा, जिन पर पूर्ण रूप से हमारा अधिकार होगा.
हम उस एक विषय में इतने मग्न थे कि उस साल कमरों को ले कर झगड़ा नहीं हुआ. हर साल पहले दिन यह समस्या जब सामने आती – कौन-सा कमरा किसका होगा, तो हम आपस में झगड़ते थे, हाथापाई भी होती थी और गुस्से में पिता भी एक-आध को पीट देते थे. लेकिन इस बार बहन ने जहां जिसका सामान रख दिया, उसका विरोध किसी ने नहीं किया.
रात को बहन हमारे कमरे में आईं, मैं एक किताब में तस्वीरें देख रहा था.
‘सोया नहीं?’
‘नींद नहीं आई.’ मैं बोला. छोटे भाई-बहन सो गए थे.
‘मुझे भी नए घर में पहली रात को नींद नहीं आती.’
वे खिड़की के पास जा कर खड़ी हो गईं. खिड़की बंद थी लेकिन एक शीशा टूटा हुआ था जिसमें से वे बाहर झांकने लगीं. दो महीने पूर्व जब से उनकी सगाई हुई वे बहुत चुप-चुप-सी रहने लगी थीं. अगले जाड़ों मे उनका विवाह हो जाएगा, उनके विवाह की कल्पना से ही हमारा उत्साह बढ़ जाता. लेकिन विवाह के बाद वे इस घर में नहीं रहेंगी, सोच दुख भी होता.
‘यह देखो.’ उन्होंने धीमे स्वर में कहा.
‘क्या है?’
‘इधर आओ?’ खिड़की के दूसरे शीशे से बाहर देखा, लेकिन अंधेरे में सामनेवाले पहाड़ के अतिरिक्त और कुछ दिखाई नहीं दिया.
उन्‍होंने धीरे से खिड़की की चिटखनी खोली और अपना सिर बाहर निकाल लिया.
मैंने फिर आकाश की ओर दे, मुझे भी लगा जैसे तारे बहुत नीचे उतर आए हों.
‘पहाड़ों पर तारे नजदीक दिखाई देते हैं. हम ऊंचाई पर आ जाते हैं न, इसीलिए.’
‘नहीं, यह बात नहीं है. पिछले साल मसूरी में वे इतने पास कभी दिखाई नहीं दिए, नैनीताल में…’
मुझे इस विषय में अधिक दिलचस्पी नहीं थी.
‘मैंने कहीं पढ़ा था कि यहां तारे बहुत पास दिखाई देते हैं.’ वे बोलीं.
खुली खिड़की से ठंडी हवा भीतर आ रही थी. मैं अपनी चारपाई पर आ गया और लिहाफ से अपना शरीर ढंक लिया. वे कुछ देर तक खिड़की पर झुकी रहीं, फिर अपने कमरे में चली गईं. मैं फिर तस्वीरें देखने लगा.
अगले दिन प्रातः उठते ही हम चेरी के पेड़ों के पास पहुंच गए. कोई किसी पेड़ के पास जा कर दूसरों को आवाज लगाता, ‘देखो, ऊपर की डाल पर चेरी कितनी पीली हो गई है.’ किस पेड़ की चेरी सबसे बड़ी हैं, किसकी छोटी इन सबकी जांच-पड़ताल हमने तुरंत कर डाली. एक पेड़ की कुछ टहनियां नीचे की ओर झुकी हुई थीं, लेकिन बहुत उछलने के बावजूद हाथ उन तक नहीं पहुंचा. फिर छोटा भाई घुटनों के बल बैठा और मैं उसकी पीठ पर चढ़ कर चेरी तोड़ने लगा. केवल चार दाने ही हाथ में आए. एक-एक सबको दिया, लेकिन छोटी बहन के लिए नहीं बची. वह रोने लगी, मैंने उसे अपनी आधी चेरी देने का वायदा किया, लेकिन उसने इनकार कर दिया. वह बहन से शिकायत करेगी, यह धमकी दे कर वह रोती-रोती घर की ओर भागी.
कुछ देर बाद बहन हमारे पास आईं, ‘ये कच्ची चेरी क्यों तोड़ी? इन्हें खा कर क्या बीमार पड़ना है?’ फिर मेरी ओर देख कर बोलीं, ‘अगर किसी ने अब एक भी चेरी खाई, तो उसे कड़ी सजा मिलेगी. कच्चा फल तोड़ने में पाप चढ़ता है.’
वे लौट गईं. अब बहन के मना कर देने पर किसी को फिर चेरी खाने का साहस नहीं होगा. यदि छिप कर ऐसा किया भी और बहन को पता चल गया, तो उसका क्या परिणाम निकलेगा-इसकी कल्पना से ही डर लगने लगा. वे कभी किसी को पीटती नहीं थीं, अधिक क्रोध आने पर डांटतीं भी नहीं, उनकी सजा होती थी-कसूरवार से बोलचाल बंद. यह सजा असहनीय बन जाती थी, मार-पीट और डांट से भी अधिक, जिससे हम सब घबराते थे.
खाते समय जब साथ बैठते तो हम इसी एक विषय पर बातें करते थे.
‘अब तो गुलाबी होने लगी हैं.’
‘ऊपर की डालियों पर तो लाल हो गई हैं.’
‘अब दो हफ्तों तक तैयार हो जाएंगी, फिर जी भर कर खाना.’ पिता कहते.
बहन कहतीं, ‘इनका बस चले तो ये कच्ची ही खा जाएं. इस बार तो ये घर से बाहर ही नहीं निकलते. बस, चेरी-चेरी औार कोई बात ही नहीं.’
मां को बहन के विवाह की चिंता लगी हुई थी. जब घर का काम न रहता तो पिता के साथ वे इस विषय पर कितनी ही बातें किया करती थीं. पिता एक कापी में मां की बतलाई हुई लिस्टें लिखा करते थे-क्या सामान मंगवाना होगा, कितना गहना बनेगा, कितनी साड़ियां, बारात कहां ठहरेगी?
इस चर्चा से बहन का चेहरा और भी गंभीर हो आता.
हर चेरी के पेड़ के तने पर मैंने चाकू की नोक से सबके नाम लिख दिए थे. पेड़ पर जिसका नाम होगा, वही उसकी चेरी तोड़ेगा और खाएगा. सब अपने-अपने पेड़ों के नीचे खड़े हो कर अपनी चेरी की प्रशंसा करते और दूसरे पेड़ों की निंदा. हर एक का दावा रहता कि उसके पेड़ों की चेरी बहुत तेजी से पक रही है.
उस दिन एक व्यक्ति हमारे बाग में आया और चेरी के पेड़ों के चक्कर लगाने लगा. हर पेड़ के पास जाता और शाखाओं को इधर-उधर हटा कर ऊपरी सिरे तक देखता, कभी एक पेड़ की चेरी तोड़ कर खाता, कभी दूसरे पेड़ की. इतना बेधड़क हो कर वह बाग में घूम रहा था जैसे यह उसी का घर हो. हम झुंड बना कर उसकी ओर देखते रहे, उसके व्यवहार पर क्रोध आ रहा था, परंतु उससे कुछ भी कहने का साहस हममें से किसी में नहीं था. अपना काम खत्म करके उसकी नजर हमारी ओर गई और वह मुस्कराने लगा जिसमें हमें उसके ऊपर के दो बड़े-बड़े पीले-से दांत दिखाई दिए.
‘आप लोग इस बंगले में रहते हैं?’
‘हां, यह हमारा मकान है.’ मैंने साहस से कहा.
पिता से मिलने की इच्छा प्रकट करने पर हम उसे पितावाले कमरे में ले गए. हमें उसके चेहरे से घृणा हो रही थी और यह जानने का कौतूहल भी था कि वह कौन है. उसके जाने के बाद हम पिता के पास गए.
‘यह ठेकेदार था जिसने चेरी के पेड़ मकान-मालिक से ख़रीद लिए हैं. कल से उसका आदमी इन पेड़ों की रखवाली करेगा.’ पिता बोले.
हम में से कोई उस ठेके की बात समझा, कोई समझ नहीं सका.
‘हम तो समझ रहे थे कि ये हमारे पेड़ हैं, हमारे बाग के अंदर हैं, कोई दूसरा उन्हें कैसे खरीद सकता है.’ मैं बोला.
पिता हंसने लगे, ‘हमने मकान किराए पर लिया है. पेड़ों पर मकान-मालिक का ही हक रहता है.’
‘अब हम चेरी नहीं तोड़ सकते हैं?’
‘चेरी ठेकेदार की हैं, हम कैसे तोड़ सकते हैं?’
उस रात को हममें से किसी ने भी चेरी के विषय मे एक भी शब्द नहीं कहा. किसी ने भूले से कुछ कहा तो सबको चुप देख कर उसे अपनी ग़लती का तुरंत अहसास हो गया. मुझे बहुत देर तक नींद नहीं आई. खिड़की से बाहर बाग की ओर देखा, चेरी के छोटे-छोटे पेड़ भार से झुके हुए सोए जान पड़े. जिन पर कल हम अपना अधिकार समझते थे, वे अब अपने नहीं जान पड़े. मैं बहन से इस विषय में और भी कई बातें पूछना चाहता था, परंतु वे उस रात हमारे कमरे में नहीं आर्इं.
अगले दिन सुबह ठेकेदार के साथ एक बूढ़ा भी आया. वे अपने साथ रस्सियों के ढेर, टूटे हुए पुराने कनस्तर और बांस की चटाइयां लाए. बाग के दूसरे सिरे पर चटाइयों से उन दोनों ने एक झोंपड़ी के भीतर ए‍क दरी बिछाई, एक कोने में बूढ़े ने हुक्का रख दिया. हम थोड़ी दूर से सब कुछ देखते रहे. दो चटाइयों को मिला कर झोंपड़ी जितनी जल्दी तैयार हो गई, उससे हमें बहुत आश्चर्य हुआ. वे दोनों कभी-कभी हमारी ओर देख कर मुस्कराने लगते लेकिन हमने उनका कोई जवाब नहीं दिया. छोटे भाई ने कहा कि हमारे शत्रु हैं और हमारी ही जमीन पर अपने खेमे गाड़ रहे हैं.
कनस्तरों में छोटे-छोटे पत्थर भरे गए और रस्सियों की सहायता से उन्हें कुछ पेड़ों पर बांध दिया गया. उन रस्सियों के सिरे झोंपड़ी के पास एक खूंटे में बांध दिए गए. बूढ़ा रस्सी के सिरे को झटके के साथ हिलाता तो कनस्तर में पड़े पत्थर बजने लगते और एक कर्कश-सी आवाज़ सारे बाग में गूंज उठती. हमारा कौतूहल बढ़ता जा रहा था.
कुछ देर बाद सारा प्रबंध करके ठेकेदार चला गया. रह गया वह बूढ़ा जो झोंपड़ी के पास एक पत्थर पर बैठा हुक्का गुड़गुड़ाने लगा. ठेकेदार की अपेक्षा उस बूढ़े के चेहरे पर हमें मैत्री भाव दिखाई दिया. हम धीरे-धीरे उसके पास पहुंच गए. उसने बड़े प्यार से हमें अपने पास बिठाया. हमारे पूछने पर उसने बतलाया कि ये कनस्तर परिंदों को भगाने के लिए बांधे गए हैं, बहुत-से परिंदे-विशेषकर बुलबुल-चेरी पर चोंचें मारते हैं जिससे वह सड़ जाती है. अगर उन्हें न भगाया जाए तो पेड़-के-पेड़ खत्म हो सकते हैं.
‘लेकिन कनस्तर सब चेरी के पेड़ों पर क्यों नहीं बांधे गए?’
‘चार-पांच पेड़ों के लिए एक कनस्तर की आवाज़ काफ़ी है.’ वह बोला.
‘क्या तुम रात को भी यहीं सोओगे?’
‘हां, रात को भी डर रहता है कि कोई आदमी चेरी न तोड़ ले.’
सबसे छोटी बहन का ध्यान हुक्के की ओर था. उसने पूछा, ‘यह क्या है?’
हम हंस पड़े. ‘यह इनकी सिगरेट है,’ छोटा भाई बोला.
धीरे-धीरे बूढ़े की उपस्थिति से सब अभ्यस्त हो गए. रस्सी खींच कर कनस्तरों को बजाना, ‘हा-हू,हा-हू’ या सीटी बजा कर परिंदों को उड़ाना -इन सब आवाज़ों को सुनने की आदत पड़ गई. चेरी के भार से डालियां इतनी झुक गई थीं कि उछल कर आसानी से मैं दो-चार दाने तोड़ सकता था, परंतु बूढ़े की नज़रें हर समय चौकन्नी हो कर चारों ओर घूमती रहतीं, इसलिए साहस नहीं होता था.
मां दूसरे-तीसरे दिन बूढ़े को चाय का गिलास भिजवा देतीं. वह भी कभी-कभी कुछ पकी हुई चेरी तोड़ कर हमें दे देता. लेकिन पेड़ पर चढ़ कर तोड़ना, फिर खाना-जिसकी हमने शुरू में कल्पना की थी, वह साध मन में ही रह गई. जब कभी कोई चिड़िया रेत पर चेरी खा रही होती और बूढ़े को पता न चलता तो हमें बहुत प्रसन्‍नता होती. हमारा वश चलता तो सारे पेड़ परिंदों का खिला देते. लेकिन चिड़ियां चुपचाप चेरी नहीं खातीं, एक-दो दाने खा कर जब वे दूसरी डाल पर उड़तीं तो बूढ़े को पता चल जाता और वह रस्सी खींच कर कनस्तर बजा देता.
बहन दिन-भर किसी पेड़ के नीचे कुरसी बिछा कर हम में से किसी का पुलोवर बुनती रहतीं. इस साल गरमियों की छुटि्टयों में उन्होंने किसी किताब को हाथ तक नहीं लगाया, नहीं तो हर बार वे अपने कोर्स की कोई किताब पढ़ती रहती थीं. कुछ दिन पूर्व उनका इंटरमीडिएट का परिणाम निकला था और वे फर्स्ट डिवीज़न में पास हुई थीं. वे और पढ़ना चाहती थीं परंतु मां को उनके विवाह की जल्दी थी.
हमारे घर से थोड़ी दूर एक चश्मा बहता था जहां हम दूसरे-तीसरे दिन नहाने चले जाते थे. कभी बाजार, कभी सिनेमा, कभी पार्क-धीरे-धीरे हमारी दिनचर्या में दूसरे आकर्षण आते गए. यह शायद पहला अवसर था कि बड़ी बहन ने किसी में भाग नहीं लिया. पहाड़ों में वे हमारे बहुत क़रीब आ जाती थीं. रात को खाने के बाद चारपाइयों में दुबके हम उनसे कहानियां सुना करते थे, शाम को सबको अपने साथ घुमाने ले जाती थीं और पि‍कनिकों की तो कोई गिनती ही नहीं होती थी. इस बार वे बहुत कम घर से निकलीं और जब बाहर जातीं भी तो अकेली ही जातीं. मां की किसी बात का असर उन पर नहीं हुआ.
एक दिन सुबह आंख खुलते ही बाहर बाग़ में कई लोगों की आवाज़ें सुनाई दीं. मैं चारपाई पर लेटा-लेटा कुछ दूर तक आश्चर्य से इस शोरगुल के बारे में ही सोचता रहा. खिड़की से झांक कर बाहर देखने ही वाला था जब बहन किसी काम से कमरे में आई.
‘यह शोर कैसा है?’ मैंने पूछा.
‘वे लोग आ गए.’
‘कौन लोग?’ मैंने आश्चर्य से पूछा.
‘वही, ठेकेदार के आदमी, चेरी तोड़ने के लिए,’ वे बोलीं.
मैं झट से बाहर दौड़ा. पेड़ों पर टोकरियां लिए ठेकेदार के आदमी चढ़े हुए थे. दोनों हाथों से ऊपर-नीचे की शाखाओं से चेरी तोड़ कर टोकरियों में भरते जा रहे थे. किसी दूर की शाखा को पकड़ कर अपने पास घसीटने पर ‘चर्र-चर्र’ की आवाजें गूंजने लगतीं. सारे बाग में शोरगुल था.
हम धीरे-धीरे बाग के चक्कर लगाने लगे. हर पेड़ के पास कुछ देर तक खड़े रह कर ऊपर चढ़े आदमी को देखते. लग रहा था जैसे आज हमारी पराजय का अंतिम दिन हो.
हर पेड़ के नीचे काफ़ी चेरी गिरी हुई थीं. छोटी बहन ने लपक कर एक गुच्छा उठा लिया तो भाई ने उसके हाथ से छीन कर फेंक दिया, ‘जानती नहीं कि बहन ने क्या कहा है?’
‘कोई एक भी चेरी मुंह में नहीं रखेगा.’
झोंपड़ी के पास ठेकेदार अन्य चार-पांच व्यक्तियों के साथ चुन-चुन कर चेरी एक पेटी में रख रहा था. उसके पास ही कई ख़ाली पेटियां पड़ी थीं और दरी पर दिखाई दिया तोड़ी हुई चेरियों का ढेर. वे सब बहुत तेजी से काम कर रहे थे. हमें खड़े देख कर ठेकेदार ने एक-एक मुट्ठी चेरी हम सबको देनी चाही, लेकिन हमने इन्कार कर दिया.
हम लोग बाग में ही घूमते रहे. घर से कहीं बाहर जाने की इच्छा नहीं हुई. चेरी के पेड़ धीरे-धीरे ख़ाली हुए जा रहे थे. उस दिन कनस्तर बजाने की ज़रूरत नहीं पड़ी. बुलबुल और दूसरे पक्षी पेड़ों के ऊपर ही चक्कर लगाते रहे, किसी पेड़ पर बैठने का साहस नहीं था.
‘यह देखो, उस पेड़ के नीचे क्या पड़ा है?’ छोटी बहन ने एक पेड़ की ओर संकेत करके कहा.
हमने उस ओर देखा, परंतु जान नहीं सके कि वह क्या है? पास जाने पर पेड़ के नीचे एक मरी हुई बुलबुल दिखाई दी. उसकी गर्दन पर ख़ून जमा हुआ था. हम कुछ देर तक चुपचाप देखते रहे. मैंने उसका पांव पकड़ कर हिलाया, लेकिन उसमें जान बाक़ी नहीं बची थी.
‘यह कैसे मर गई?’
‘किसी ने इसकी गर्दन पर पत्थर मारा है.’
‘इन्हीं लोगों ने मारा होगा.’
‘तभी कोई बुलबुल पेड़ पर नहीं बैठ रही.’
हमने ठेकेदार और उसके आदमियों को जी भर कर गालियां दीं. उन लोगों पर पहले ही बहुत क्रोध आ रहा था, अब बुलबुल की हत्या देख कर तो उनसे बदला लेने की भावना बहुत तीव्र हो उठी. कितनी ही योजनाएं बनाईं, परंतु हर बार कोई कमी उसमें नजर आ जाती जिससे उसे अधूरा ही छोड़ देना पड़ता. फिर यह सोच कर कि यदि यह बुलबुल यहीं पड़ी रही तो कोई बिल्ली या कुत्ता इसे खा जाएगा, हमने पास ही एक गड्ढा खोदा और उसमें बुलबुल को लिटा कर ऊपर से मिट्टी डाल दी.
उस दिन बड़ी बहन ने बाग में पैर तक नहीं रखा. उन्‍होंने न मरी हुई बुलबुल देखी, न पेड़ों से चेरी का टूटना. उन्‍हें पेड़ों से फल तोड़ना अच्छा नहीं लगता.
‘फूल, पौधों और फलों में भी जान होती है. उन्हें तोड़ना भी उतना ही बुरा है जितना किसी जानवर को मारना.’ वे हमसे कहा करती थीं.
वे लोग शाम को बहुत देर तक चेरी तोड़ते रहे. फिर एक लारी रुकी जिसमें सब पेटियां लाद दी गईं और वे सब चले गए. बाग में अचानक सन्नाटा हो गया, रह गए केवल चेरी के नंगे पेड़, जिन पर एक भी चेरी दिखाई नहीं देती थी. हवा तेज थी और रह-रह कर पेड़ों की शाखाएं हिल उठती थीं जैसे आखिरी सांसें ले रही हों. नीचे बिखरी हुई थीं अनगिनत पत्तियां और कुछ डालियां जो चेरी तोड़ते वक़्त नीचे गिर गई थीं. शाम हमें बहुत सूनी-सूनी-सी लगी और पेड़ों से डर-सा लगने लगा.
खाते वक़्त हम दिन भर की घटनाओं की चर्चा करते रहे, मरी हुई बुलबुल का कि़स्सा भी सुनाया. लेकिन बड़ी बहन ने ज़रा भी दिलचस्पी नहीं ली, उनके मुंह से एक भी शब्द नहीं निकला. लगा जैसे वे हमारी बातें न सुन रही हों. खाना भी उन्होंने बहुत कम खाया.
रात को देर तक नींद नहीं आई, न कोई किताब पढ़ने में ही मन लगा. छोटे भाई-बहन दिन भर की थकान से चारपाई पर लेटते ही सो गए. थकान से मेरा शरीर भी टूट रहा था, लेकिन बहुत कोशिश करने पर भी नींद नहीं आ सकी.
कुछ देर बाद मैं खिड़की के पास जा कर खड़ा हो गया. अचानक आकाश में बहुत-से तारे एक साथ चमक उठे. तारे यहां सचमुच बहुत क़रीब दिखाई देते हैं. क्यों? केवल छह हज़ार फुट ही तो ऊंचा यह स्थान है और तारे तो मीलों दूर हैं. फिर इतने पास कैसे दिखाई देते हैं? मैं सोचने लगा. तभी बाग में पेड़ों के नीचे किसी की परछाईं दिखाई दी. मुझे डर-सा लगा. लेकिन कुछ देर बाद पता लगा कि वे बहन हैं. वे अभी तक सोईं नहीं…
मैं भी दबे पांव बाहर आया. वे चेरी के पेड़ों के नीचे टहल रही थीं, उनका आंचल नीचे तक झूल रहा था.
‘अभी तक सोए नहीं?’ बिना मेरी ओर देखे उन्होंने पूछा.
उनकी आवाज़ सुन कर मैं चौंक पड़ा. मेरा अनुमान था कि उन्हें मेरे बाहर आने का पता नहीं चला. मैंने धीमे स्वर में कहा, ‘नहीं, अभी नींद नहीं आई.’
उनके पैरों के नीचे पत्ते दबते तो सर्र-सर्र जैसी आवाज़ रात के सन्नाटे में गूंज जाती. हवा और तेज़ हो गई थी.
‘आज बहुत अंधेरा है.’ मैं बोला.
‘आजकल अंधेरी रातें हैं.’
कभी-कभी अपनी नज़र ऊपर उठा कर वे किसी पेड़ को देखतीं जिसकी शाखाओं के बीच से आकाश में चमकते तारे दिखाई देते.
‘आज तारे बहुत क़रीब दिखाई दे रहे हैं.’ मैंने कहा.
उन्होंने कोई उत्तर नहीं दिया.

Illustration: Pinterest

इन्हें भीपढ़ें

फटी एड़ियों वाली स्त्री का सौंदर्य: अरुण चन्द्र रॉय की कविता

फटी एड़ियों वाली स्त्री का सौंदर्य: अरुण चन्द्र रॉय की कविता

January 1, 2025
democratic-king

कहावत में छुपी आज के लोकतंत्र की कहानी

October 14, 2024
त्रास: दुर्घटना के बाद का त्रास (लेखक: भीष्म साहनी)

त्रास: दुर्घटना के बाद का त्रास (लेखक: भीष्म साहनी)

October 2, 2024
पढ़ना-लिखना सीखो ओ मेहनत करने वालों: सफ़दर हाशमी की कविता

पढ़ना-लिखना सीखो ओ मेहनत करने वालों: सफ़दर हाशमी की कविता

September 24, 2024
Tags: Cherry ke pedCherry ke ped by Ramkumar Verma in HindiFamous Indian WriterFamous writers’ storyHindi KahaniHindi StoryHindi writersIndian WritersKahaniKahani Cherry ke pedRamkumar VermaRamkumar Verma ki kahaniRamkumar Verma ki kahani Cherry ke pedRamkumar Verma storiesकहानीचेरी के पेड़मशहूर लेखकों की कहानीरामकुमार वर्मारामकुमार वर्मा की कहानियांरामकुमार वर्मा की कहानीरामकुमार वर्मा की कहानी चेरी के पेड़हिंदी कहानीहिंदी के लेखकहिंदी स्टोरी
टीम अफ़लातून

टीम अफ़लातून

हिंदी में स्तरीय और सामयिक आलेखों को हम आपके लिए संजो रहे हैं, ताकि आप अपनी भाषा में लाइफ़स्टाइल से जुड़ी नई बातों को नए नज़रिए से जान और समझ सकें. इस काम में हमें सहयोग करने के लिए डोनेट करें.

Related Posts

ग्लैमर, नशे और भटकाव की युवा दास्तां है ज़ायरा
बुक क्लब

ग्लैमर, नशे और भटकाव की युवा दास्तां है ज़ायरा

September 9, 2024
लोकतंत्र की एक सुबह: कमल जीत चौधरी की कविता
कविताएं

लोकतंत्र की एक सुबह: कमल जीत चौधरी की कविता

August 14, 2024
बहुत नहीं सिर्फ़ चार कौए थे काले: भवानी प्रसाद मिश्र की कविता
कविताएं

बहुत नहीं सिर्फ़ चार कौए थे काले: भवानी प्रसाद मिश्र की कविता

August 12, 2024
Facebook Twitter Instagram Youtube
Oye Aflatoon Logo

हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.

संपर्क

ईमेल: [email protected]
फ़ोन: +91 9967974469
+91 9967638520
  • About
  • Privacy Policy
  • Terms

© 2022 Oyeaflatoon - Managed & Powered by Zwantum.

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • सुर्ख़ियों में
    • ख़बरें
    • चेहरे
    • नज़रिया
  • हेल्थ
    • डायट
    • फ़िटनेस
    • मेंटल हेल्थ
  • रिलेशनशिप
    • पैरेंटिंग
    • प्यार-परिवार
    • एक्सपर्ट सलाह
  • बुक क्लब
    • क्लासिक कहानियां
    • नई कहानियां
    • कविताएं
    • समीक्षा
  • लाइफ़स्टाइल
    • करियर-मनी
    • ट्रैवल
    • होम डेकोर-अप्लाएंसेस
    • धर्म
  • ज़ायका
    • रेसिपी
    • फ़ूड प्लस
    • न्यूज़-रिव्यूज़
  • ओए हीरो
    • मुलाक़ात
    • शख़्सियत
    • मेरी डायरी
  • ब्यूटी
    • हेयर-स्किन
    • मेकअप मंत्र
    • ब्यूटी न्यूज़
  • फ़ैशन
    • न्यू ट्रेंड्स
    • स्टाइल टिप्स
    • फ़ैशन न्यूज़
  • ओए एंटरटेन्मेंट
    • न्यूज़
    • रिव्यूज़
    • इंटरव्यूज़
    • फ़ीचर
  • वीडियो-पॉडकास्ट
  • लेखक

© 2022 Oyeaflatoon - Managed & Powered by Zwantum.