एक बिगड़े रईसज़ादे सलाहो का बॉडीगार्ड है दूदा पहलवान. वक़्त के साथ रईसज़ादा और बिगड़ता गया और दूदा की वफ़ादारी बढ़ती ही गई. पढ़ें, वफ़ादारी की अनूठी मिसाल पेश करती मंटो की कहानी ‘दूदा पहलवान’.
स्कूल में पढ़ता था तो सुन्दरतम लड़का माना जाता था. उस पर बड़े-बड़े अमर्दपरस्तों के बीच बड़ी खूंखार लड़ाइयां हुईं. एक दो इसी सिलसिले में मारे भी गए.
वह वाक़ई सुन्दर था. बड़े मालदार घराने की आंखों का नूर था. इसलिए उसको किसी चीज़ की कमी नहीं थी. मगर जिस मैदान में वह कूद पड़ा था उसको एक संरक्षक की ज़रूरत थी जो वक़्त पर उसके काम आ सके. शहर में यूं तो सैकड़ों बदमाश और गुण्डे मौजूद थे-जो सुन्दर और ख़ूबसूरत सलाहो के एक इशारे पर मरने को तैयार थे. मगर दूदा पहलवान में एक निराली बात थी. वह बहुत ग़रीब था. बहुत बदमिज़ाज और अक्खड़ तबीयत का था. मगर इसके बावजूद उसमें ऐसा बाकांपन था कि सलाहो ने इसे देखते ही पसन्द कर लिया और उनकी दोस्ती हो गई.
सलाहो को दूदा पहलवान की दोस्ती से बहुत फ़ायदे हुए. शहर के दूसरे गुण्डे जो सलाहो के रास्ते में रुकावटें पैदा करने का कारण बन सकते थे दूदा की वजह से खामोश रहे. स्कूल से निकलकर सलाहो कॉलेज में दाखिल हुआ तो उसने और पर पुर्जे निकाले और थोड़े ही समय में उसकी सरगर्मियों ने नया रुख़ अपना लिया. इसके बाद ख़ुदा का करना ऐसा हुआ कि सलाहो का बाप मर गया. अब वह अपनी तमाम जायदाद का अकेला मालिक था. पहले तो उसने नकदी पर ही हाथ साफ़ किया फिर मकान गिरवी रखने शुरू कर दिए. फिर वे मकान बिक गए. हीरा मण्डी की तमाम वेश्याएं सलाहो के नाम से परिचित थीं. मालूम नहीं इसमें कहां तक सच्चाई है लेकिन लोग कहते हैं कि हीरा मण्डी में बूढ़ी नायिकाएं अपनी जवान बेटियों को सलाहो की निगाहों से छुपा-छुपाकर रखती थीं कि कहीं ऐसा न हो कि वह उनके दुश्मन के चक्कर में फंस जाएं. लेकिन इन सावधानियों के बावजूद जैसा कि सुनने में आया है कई कुंवारी वेश्या-कन्याएं उसके इश्क़ में गिरफ़्तार हुईं और उलटे रास्ते पर चलकर अपनी ज़िन्दगी के सुनहरे दिन उसकी वासना की नज़र कर बैठीं.
सलाहो खुल खेल रहा था. दूदा को मालूम था कि यह खेल देर तक जारी नहीं रहेगा. वह उम्र में सलाहो से दुगुना बड़ा था. उसने हीरा मण्डी में बड़े-बड़े सेठों की खाक उड़ती देखी थी. वह जानता था कि हीरा मण्डी एक ऐसा अंधा कुआं है जिसको दुनियाभर के सेठ मिलकर भी अपनी दौलत से नहीं भर सकते. मगर वह उसको कोई नसीहत नहीं देता था. शायद इसलिए कि वह संसार का जानने वाला होने के कारण अच्छी तरह समझता था कि जो भूत उसके हसीन व जमील बाबू के सिर पर सवार है उसे कोई टोना-टोटका उतार नहीं सकता.
दूदा पहलवान हर वक़्त सलाहो के साथ होता था. शुरू-शुरू में जब सलाहो ने हीरा मण्डी का रुख़ किया तो उसका ख़्याल था कि दूदा भी उसके ऐश में शामिल होगा. मगर आहिस्ता-आहिस्ता उसे मालूम हुआ, उसको इस क़िस्म के ऐश से कोई दिलचस्पी नहीं थी, जिसमें वह दिन-रात डूबा रहता था. वह गाना सुनता था, शराब पीता था. वेश्याओं से अश्लील मज़ाक भी करता था. मगर उससे आगे कभी नहीं गया था. उसका बाबू रात-भर अन्दर किसी माशूक को बगल में दबाए पड़ा रहता था और वह बाहर किसी पहरेदार की तरह जागता रहता.
लोग समझते थे दूदा ने अपना घर भर लिया है. दौलत की जो लूट मची है उसमें यक़ीनन उसने अपने हाथ रंगे हैं. इसमें कोई शक़ नहीं कि जब सलाहो इश्क़ की दाद देने निकलता था तो हज़ारों के नोट दूदा के ही पास होते थे. मगर यह सिर्फ़ उसी को मालूम था कि पहलवान ने इसमें से एक पाई भी कभी इधर-उधर नहीं की. उसको सिर्फ़ सलाहो से दिलचस्पी थी जिसको वह अपना मालिक समझता था और यह लोग भी जानते थे कि दूदा किस हद तक उसका ग़ुलाम हैं. सलाहो उसे डांट-डपट लेता था. कभी-कभी शराब पीकर उसे नशे में मारपीट भी लेता था. मगर वह खामोश रहता. हसीन व जमील सलाहो उसका देवता था. वह उसके हजूर में कोई गुस्ताखी नहीं कर सकता था.
एक दिन संयोग से दूदा बीमार था. सलाहो जो रात को सामान्य रूप से ऐश करने के लिए हीरा मण्डी पहुंचा, वहां किसी वेश्या के कोठे पर गाना सुनने के दौरान उसकी झड़प एक तमाशबीन से हो गई और हाथापाई में उसके माथे पर हल्की-सी खराश आ गई. दूदा को जब इसका पता चला तो उसने दीवार के साथ टक्करें मार-मारकर अपना सारा सिर ज़ख्मी कर लिया. ख़ुदा को अनगिनत गालियां दीं. बहुत भला-बुरा कहा. उसको इतना अफ़सोस हुआ कि दस-पन्द्रह दिन तक सलाहो के सामने उसका सिर झुका रहा. एक शब्द भी उसके मुंह से नहीं निकला. उसको यह महसूस होता था कि उससे कोई बहुत बड़ा पाप हो गया है. चुनांचे लोगों का कहना है कि वह बहुत देर तक नमाज़ पढ़-पढ़कर अपने दिल का बोझ हल्का करता रहा.
सलाहो की वह इस तरह खिदमत करता था जिस तरह पुराने क़िस्से-कहानियों के वफ़ादार नौकर करते हैं. वह उसके जूते पालिश करता था. उसके हर आराम और ऐश का ख़्याल रखता था जैसे वह उसके पेट से पैदा हुआ हो.
कभी-कभी सलाहो नाराज़ हो जाता. यह वक़्त दूदा पहलवान के लिए बड़ी परीक्षा का वक़्त होता था. दुनिया से बेज़ार हो जाता. फ़कीरों के पास जाकर गण्डे-तावीज़ लेता. ख़ुद को तरह-तरह के शारीरिक कष्ट पहुंचाता. आख़िर जब सलाहो मौज में आकर उसे बुलाता तो उसे महसूस होता जैसे उसे दोनों जहान मिल गए. दूदा को अपनी ताक़त पर नाज़ नहीं था. उसे यह भी घमण्ड नहीं था कि वह छुरी मारने की कला में बेजोड़ है. उसे अपनी ईमानदारी और भलमनसाहत पर भी कोई गर्व नहीं था. लेकिन वह अपनी इस बात पर बहुत मान करता था कि लंगोट का पक्का है. वह अपने दोस्तों-यारों को बड़े गर्व से सुनाया करता था कि उसकी जवानी में सैकड़ों मर्द और औरतें आईं. चलित्तरों के बड़े-बड़े मन्त्र उस पर फूंके, मगर वह… शाबाश है उसके उस्ताद को, लंगोट का पक्का रहा.
उन लोगों को जो दूदा पहलवान के लंगोटिए थे, अच्छी तरह मालूम था कि उसका दामन औरत की तमाम वासनाओं से पाक है. कई बार कोशिश की गई कि वह गुमराह हो जाए मगर नाकामी हुई. वह अपनी बात पर दृढ़ रहा. ख़ुद सलाहो ने कई बार इम्तहान लिया. अजमेर के उर्स पर आने के लिए मेरठ की एक बदनाम वेश्या अनवरी को इस बात पर तैयार किया कि वह दूदा पहलवान पर डोरे डाले. उसने अपने तमाम गुर इस्तेमाल कर डाले मगर दूदा पर कोई असर न हुआ. उर्स ख़त्म होने पर जब वह लाहौर रवाना हुए तो उसने गाड़ी में सलाहो से कहा,“बाऊ, बस अब मेरा कोई और इम्तहान न लेना. यह साली अनवरी बहुत आगे बढ़ गई थी. तुम्हारा ख़्याल था वरना गला घोंट देता हरामज़ादी का.’’
उसके बाद सलाहो ने उसका कोई इम्तहान न लिया. दूदा के ये धमकी-भरे शब्द ही काफ़ी थे जो उसने बड़े गम्भीर लहजे में कहे थे.
सलाहो ऐश-व-इशरत में पहले की तरह गर्क था. इसलिए कि अभी तीन-चार मकान बाक़ी थे. हीरा मण्डी की तमाम वेश्याएं एक-एक करके उसके पहलू में आ चुकी थीं. अब उसने छोटे जामों का दौर शुरू कर दिया था. इस दौरान जाने कहां से एक वेश्या अल्मास पैदा हुई जो सारी हीरा मण्डी पर छा गई. देखा किसी ने भी नहीं था मगर इसके बावजूद उसके हुस्न के चर्चे आम थे: हाथ लगाए मैली होती है. पानी पीती है तो उसके गोरे हलक में साफ़ नज़र आता है. हिरनी की-सी आंखें जिनमें ख़ुदा ने अपने हाथ से सुरमा लगाया है. बदन ऐसा मुलायम है कि निगाहें फिसल-फिसल जाती हैं. सलाहो जहां भी जाता था इस परी चेहरा हूर के हुस्न व तेज़ की बातें सुनता था.
दूदा पहलवान ने फ़ौरन पता लगा लिया और अपने बाबू को बताया कि वह अल्मास कश्मीर से आई है. वाक़ई ख़ूबसूरत है. अधेड़ उम्र की मां उसके साथ है जो उस पर कड़ी निगरानी रखती है. इसलिए कि वह लाखों के ख़्वाब देखती है.
जब अल्मास का मुजरा शुरू हुआ तो उसके कोठे पर वही महानुभाव जाते थे जिन का लाखों का कारोबार था. सलाहो के पास अब इतनी दौलत नहीं थी कि वह इतने तगड़े दौलतमंद ऐयाशों का मुक़ाबला खम ठोककर कर सके. आठ-दस मुजरों में ही उसकी हजामत हो जाती. चुनांचे वह इस ख़्याल के मुताबिक ख़ामोश रहा और पेच-व-ताब खाता रहा. दूदा पहलवान अपने बाबू की यह बेचारगी देखता तो बहुत दुःख होता. मगर वह क्या कर सकता था? उसके पास था ही क्या. एक सिर्फ़ उसकी जान थी मगर वह इस मामले में क्या काम दे सकती थी. बहुत सोच-विचार के बाद आख़िर दूदा ने एक तरक़ीब सोची जो यह थी कि सलाहो अल्मास की मां इक़बाल से सम्बन्ध पैदा करे और उस पर ज़ाहिर करे कि वह उसके इश्क़ में गिरफ़्तार हो गया है. इस तरह जब मौक़ा मिले तो अल्मास को अपने कब्ज़े में कर ले.
सलाहो को यह तरक़ीब पसन्द आई. चुनांचे उस पर अमल करना शुरू हो गया. इक़बाल बहुत ख़ुश हुई कि इस ढलती उम्र में उसे सलाहो जैसा जवान चाहने वाला मिल गया. यह सिलसिला देर तक जारी रहा. इस दौरान सैकड़ों बार अल्मास सलाहो के सामने आई. कभी-कभी उसके पास बैठकर बात भी करती रही और उसके से काफ़ी प्रभावित हुई. उसकी हैरत थी कि वह उसकी मां में क्यों दिलचस्पी ले रहा है. जबकि वह उसकी आंखों के सामने मौजूद है. लेकिन उसकी यह हैरत बहुत देर तक कायम न रही जब उसको सलाहो की हरक़तों से मालूम हो गया कि वह चाल चल रहा है. यह बात साफ़ होते ही उसे ख़ुशी हुई. अन्दरूनी तौर पर उसके जवानी के अहसास को ठेस पहुंच रही थी.
बातों-बातों में एक दिन सलाहो का ज़िक्र आया तो अल्मास ने उसकी ख़ूबसूरती की तारीफ़ ज़रा चटखारे के साथ बयान की जो उसकी मां को बहुत नागवार मालूम हुई. चुनांचे उन दोनों में ख़ूब खच हुई. अल्मास ने अपनी मां को साफ़ कह दिया कि सलाहो उसे बेवकूफ़ बना रहा है. इक़बाल को बहुत दुख. यहां अब बेटी का सवाल नहीं था बल्कि रकीब और मौत का चुनाव था. दूसरे दिन जब सलाहो आया तो उसने सबसे पहले उससे पूछा,“आप किसे पसन्द करते हैं? मुझे या मेरी बेटी अल्मास को?’’
सलाहो अजब परेशानी में फंस गया. सवाल बड़ा टेढ़ा था. थोड़ी देर सोचने के बाद अन्त में उसे यही कहना पड़ा,“तुम्हें, मैं तो सिर्फ़ तुम्हें पसन्द करता हूं.’’ और फिर उसे इक़बाल को और भी यकीन दिलाने के लिए और बहुत-सी बातें गढ़नी पड़ीं. इक़बाल यूं तो बड़ी चालाक थी मगर उसको किसी हद तक यक़ीन आ ही गया. शायद इसलिए कि वह अपनी उम्र के एक ऐसे मोड़ पर पहुंच चुकी थी जहां से उसे कुछ छोटी बातों को भी सच्चा समझना ही पड़ता था.
जब यह बात अल्मास तक पहुंची तो वह बहुत जिजबिज हुई. ज्यों ही उसे मौक़ा मिला उसने सलाहो को पकड़ लिया और उससे सच उगलवाने की कोशिश की. सलाहो ज़्यादा देर तक अपनी जिरह बरदाश्त न कर सका. आख़िर उसे मानना ही पड़ा कि उसे इक़बाल में कोई दिलचस्पी नहीं. असल में तो अल्मास का हसूल ही उसकी नज़र के सामने था.
यह कबूलवाने पर अल्मास की तसल्ली हो गई. मगर वह आत्मीयता, वह लगाव जो उसके दिल-व-दिमाग़ में सलाहो के बारे में पैदा हुआ था ग़ायब हो गया. और उसने ठेठ वेश्या बनकर अपनी मां को समझाया कि बचपना छोड़ दो और उससे मेरे दाम
वसूल करो. तुम्हें वह क्या देगा. अपनी लड़की की अक्ल वाली बात इक़बाल की समझ आ गई और वह सलाहो को दूसरी नज़र से देखने लगी.
सलाहो भी समझ गया कि उसका वार ख़ाली गया है. अब इसके सिवाय और कोई चारा नहीं था कि वह नीलाम में अल्मास की सबसे बढ़कर बोली दे. दूदा पहलवान ने इधर-उधर से कुरेद कर मालूम किया कि अल्मास की नथनी उतर सकती है, अगर सलाहो 25 हज़ार रुपए उसकी मां के क़दमों में ढेर कर दे.
सलाहो अब पूरी तरह जकड़ा जा चुका था. ‘जान जाए पर वचन न जाए वाला मामला था. उसने दो मकान बेचे और 25 हज़ार रुपए लेकर इक़बाल के पास पहुंचा. उसका ख़्याल था कि वह इतनी रकम पैदा नहीं कर सकेगा. जब वह ले आया तो वह बौखला-सी गई. अल्मास से सलाह की तो उसने कहा,‘‘इतनी जल्दी कोई फ़ैसला नहीं करना चाहिए. पहले उससे कहो कि हमारे साथ कलियर शरीफ़ के उर्स पर चले.’’
सलाहो को जाना पड़ा. नतीजा यह हुआ कि पूरे पन्द्रह हज़ार रुपए मुजरों में लुट गए. उसकी उन तमाशबीनों पर जो उर्स में शामिल हुए थे, धाक तो बैठ गई मगर उसके पच्चीस हज़ार रुपयों को दीमक लग गई. वापस आए तो बाक़ी का रुपया आहिस्ता-आहिस्ता अल्मास की फ़रमाइशों की नज़र हो गया. दूदा अन्दर ही अन्दर से उबल रहा था. उसका जी चाहता था कि इक़बाल और अल्मास दोनों के सिर उड़ा दे. मगर उसे अपने बाबू का ख़्याल था. उसके दिल में बहुत-सी बातें थीं जो वह सलाहो को बताना चाहता था. मगर बता नहीं सकता था. इससे उसे और भी झुंझलाहट होती थी. सलाहो बहुत बुरी तरह अल्मास पर लटू था. पच्चीस हज़ार रुपए ठिकाने लग चुके थे. अब दस हज़ार रुपए उस मकान को गिरवी रखकर उजाड़ रहा था जिसमें उसकी नेकचलन मां रहती थी. यह रुपया कब तक उसका साथ देता. इक़बाल और अल्मास दोनों जोंक की तरह चिमटी हुई थीं. आख़िर वह दिन भी आ गया जब उस पर नालिश हुई और अदालत ने कुर्की का हुक़्म दे दिया.
सलाहो बहुत परेशान हुआ. उसे कोई सूरत नज़र नहीं आती थी. कोई ऐसा आदमी नहीं था जो उसे क़र्ज़ देता. ले-देकर एक मकान था सो वह गिरवी था और कुर्की आई हुई थी. और बेलिफ सिर्फ़ दूदा पहलवान की वजह से रुके थे जिसने उनको यक़ीन दिलाया था कि वह बहुत जल्द रुपए का बन्दोबस्त कर देगा.
सलाहो बहुत हंसा था कि दूदा कहां से रुपए का बन्दोबस्त करेगा. सौ-दो सौ रुपए की बात होती तो उसे यक़ीन आ जाता. मगर सवाल पूरे दस हज़ार रुपए का था. चुनांचे उसने पहलवान का खूब मज़ाक उड़ाया कि वह उसे बचकानी तसल्लियां दे रहा है. पहलवान ने यह लान-तान ख़ामोशी से बरदाश्त की और चला गया. दूसरे दिन आया तो उसका सिंगरफ जैसा चेहरा ज़र्द था. ऐसा मालूम होता था कि वह रोगी शय्या से उठकर आया है. सिर न्योढ़ाकर उसने अपने डब में से रूमाल निकाला जिसमें सौ-सौ के कई नोट थे और सलाहो से कहा,‘‘ले लो…ले आया हूं.’’
सलाहो ने नोट गिने पूरे दस हज़ार थे. टुकुर-टुकुर पहलवान का मुंह देखने लगा. ‘‘ये रुपया कहां से पैदा किया तुमने?’’
दूदा ने उदास लहजे में जवाब दिया,“हो गया, पैदा कहीं से…’’
सलाहो कुर्की को भूल गया. इतने सारे नोट देखे तो उसके क़दम फिर अल्मास के कोठे की तरफ़ उठने लगे. मगर पहलवान ने उसे रोका.
‘‘नहीं बाऊ… अल्मास के पास न जाओ. यह रुपया कुर्की वालों को दे दो.’’
सलाहो ने बिगड़े हुए बच्चे की तरह कहा,‘‘क्यूं ?.. मैं जाऊंगा अल्मास के पास.’’
दूदा ने कड़े लहजे में कहा,‘‘तू नहीं जाएगा…’’
सलाहो तैश में आ गया,‘‘तू कौन होता है मुझे रोकने वाला?’’
दूदा की आवाज़ नर्म हो गई,“मैं तेरा गुलाम हूं, बाऊ…पर अब अल्मास के पास जाने का कोई फ़ायदा नहीं.’’
‘‘क्यों?’’
दूदा की आवाज़ में लर्जिश-सी पैदा हो गई,“न पूछो, बाऊ, यह रुपया मुझे उसी ने दिया है.’’
सलाहो क़रीब-क़रीब चीख उठा,“यह रुपया अल्मास ने दिया है… तुम्हें दिया है.’’
‘‘हां, बाऊ! उसी ने दिया है. मुझ पर बहुत देर से मरती थी साली, पर मैं उसके हाथ नहीं आता था. तुझ पर तक़लीफ़ का वक़्त आ गया तो मेरे मन ने कहा, दूदा छोड़ अपनी कसम को. तेरा बाऊ तुझसे क़ुर्बानी मांगता है. सो मैं कल रात उसके पास गया और और उससे सौदा कर लिया.’’
दूदा की आंखों से टप-टप आंसू गिरने लगे.
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