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कहां जा रहे हैं ‘दो मिनट’?: मीनाक्षी विजयवर्गीय की कहानी

टीम अफ़लातून by टीम अफ़लातून
April 13, 2022
in नई कहानियां, बुक क्लब
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कहां जा रहे हैं ‘दो मिनट’?: मीनाक्षी विजयवर्गीय की कहानी
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अपना नेटवर्क हासिल करने के लिए धरती से हज़ारों किलोमीटर दूर घूम रहे सैटेलाइट्स से जुड़ने वाला मोबाइल फ़ोन, कैसे हम धरती से चिपके रहनेवालों (बेशक ग्रैविटी की वजह से) का सबसे क़रीब दोस्त और रिश्तेदार बन गया है. हमारी ज़िंदगी से छोटे-छोटे 2 मिनट चुरा रहा है. मीनाक्षी विजयवर्गीय की मज़ेदार रचना पढ़ें.

कोई पुकारे और जवाब मिले,‘जी कहिए.’ यह बात पुरानी हो गई है. किसी ने पुकारा,‘ज़रा आना इधर.’ जवाब आएगा,‘2 मिनट.’ पापा ने मम्मी को चाय लाने को कहा तो मम्मी ने कहा,‘2 मिनट आ रही हूं, साथ में यह भी कहा कि 2 मिनट चैन से नहीं बैठ सकते!’ मुझे मेरे नाम से बुलाया, तो मैंने भी सुनकर बिना गर्दन उठाए कहा, आई-2 मिनट. फिर अचानक लगा तुरंत क्यों नहीं 2 मिनट क्यों? आसपास कहीं भी देखूं तो यह 2 मिनट की मोहलत हर तरफ़ से, लगभग यही जवाब. किसके लिए 2 मिनट, कहां जा रहे हैं 2 मिनट?
अगर आप सोच रहे हैं कि किसके लिए? तो बताती हूं, यह आपके हाथों में जो जादुई चीज़ है बस उसी के लिए. जो आपके बेहद क़रीब है, अजीज है, मजाल हाथों से छूट जाए, कहीं गिर जाए तो आह निकल जाती है. जी हां आपका अपना मोबाइल. अगर आप भी पढ़ते हुए थोड़ा-सा सकुचाते हुए मुस्कुरा रहे हैं तो यह आपकी भी कहानी है, या यूं कहे कि आपकी ज़िंदगी में घुला हुआ धीमा मीठा ज़हर.
मोबाइल और उस पर छाया सोशल मीडिया का खुमार… एक अलग ही रंगीन जहान, जो हमारा सुकून बन गया है, रातों की नींद और चैन उड़ा कर. इतना क्यों लगाव मोबाइल से? ऐसा क्या है इसमें… इसमें हैं यार दोस्त, रिश्तेदार, ज्ञान-विज्ञान, मनोरंजन, किस्से-कहानी, जानकारी… पर इन सबमें सबसे ख़ास वजह है सोशल मीडिया और उसका प्यार.
कोई नहीं जो अछूता हो, आधी सच्ची, आधी काल्पनिक दुनिया से. यहां हर कोई लाइक कमेंट के लिए भाग रहा है. कोई ज्ञान गुरु है तो कोई लव गुरु, कोई गॉडफ़ादर तो, कोई जगत जननी. यहां आपको इंस्टा ब्रो भी मिल जाएंगे और इंस्टा सिस्टर भी. सब रिश्ते हैं, रिश्तों की अजीब माला, एक मोती टूटा नया स्वत: जुड़ जाता है. दिल लगाना नई महीने में होने वाली शुरुआती घटनाओं की तरह हो गया है. और दिल टूटना महीने के अंत में हाथ तंग होने जैसा. फिर नया महीना नई प्रेम कहानी कुछ अपवादों को छोड़कर लगभग हर तरफ़ ऐसा देख सकते हैं. असल में ना कोई ख़ून का रिश्ता ना मानसिक जुड़ाव. बस हर तरफ़ फ़ॉलोअर्स ही फ़ॉलोअर्स का खेल. वही भेड़ चाल, जिसमें हम भी चल रहे हैं. यहां लंबी कतारें हैं, हंसते खिलखिलाते चेहरों की, दान का प्रचार करते लोग, हर छोटे पल को खास बताते लोग, हर छोटी चीज़ को स्टोरी-स्टेटस पर अपलोड करते लोग. दुनिया का सबसे भाग्यशाली व्यक्ति बताते हुए लोग,‘टू हैव यू’ कहते टैग करते लोग, अपनी मां के तीसरे की फ़ोटो अपलोड करते लोग, अपनी ही भावनाओं, मानसिक संवेदना को लाइक्स कमेंट के तराजू में तौलते लोग. यहां सब कुछ है. लोग आपको नहीं जानते, आप जो रील दिखा रहे हैं, वही रियल मान रहे हैं. अगर आप स्टार बक्स की काफ़ी मग का फ़ोटो अपलोड कर दें तो तुरंत ही 200 लाइक्स 50 कमेंट आ जाएंगे, पर आप अगर आपके माता-पिता की फ़ोटो अपलोड करें तो मुश्क़िल से इन गिन लोग हाथ जोड़ते नज़र आएंगे.
फिर भी सुकून है! सुकून किस बात का? इस बात का कि जवाब नहीं देना पड़ रहा है. नकली लोग नकली चेहरे, हम क्या करते हैं, क्यों, कैसे करते हैं, किसी का जवाब नहीं देना होता है. आप हंसते हुए चेहरे को देखकर ख़ुश हो रहे हैं. ख़ुद के मां-बाबा को छोड़ सड़क खड़े बाबा की वीडियो वायरल होती चैरेटी शेयरिंग में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं. आज का व्यक्ति मोबाइल में सुकून ढूंढ़ रहा है. मैं ख़ुद भले ही,‘सब मोह माया है’ जैसा ऊंचा विचार अपने स्टेटस में डाल दूं , कितने लोगों ने देखा, क्या प्रतिक्रिया आई, जैसी बीमारी से तो ख़ुद को भी नहीं बचा पा रही हूं.
भक्तों से लेकर भगवान तक सब यहां हैं. क्या करें सोशल मीडिया ने इतना नेक काम किया कि फ़ोटोग्राफ़ी के नाम पर ही परिवार को एक कर दिया, पर कितने अनजान लोगों को जोड़ दिया. धन्यवाद कहूं या कैसे इससे पीछा छुड़ाऊं, जिसने अपनों को अपनों से ही दूर कर दिया.

Illustration: Pinterest

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हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.

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