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सामने वाली खिड़की: डॉ संगीता झा की कहानी

डॉ संगीता झा by डॉ संगीता झा
April 3, 2021
in ज़रूर पढ़ें, नई कहानियां, बुक क्लब
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सामने वाली खिड़की: डॉ संगीता झा की कहानी
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यह कहानी है उस दौर की, जब कोरोना के शुरुआती दिनों में लॉकडाउन लगा था. हम घरों में क़ैद तो हो गए थे, पर हमारे मन को भला कौन रोक सकता था? लॉकडाउन के दौरान एक महिला का मन भटककर सामनेवाले घर की खिड़की पर चला गया. और वहां उसने जो देखा, उससे बुन डाली एक कहानी. और आपके लिए वह कहानी लाई हैं पेशे से डॉक्टर और शौक़ से कहानीकार डॉ संगीता झा.

कोरोना ने तो बड़ी मुसीबत कर रखी है और उधर क़िस्मत भी बड़े-बड़े इम्तिहान ले रही है. क्या करूं कुछ समझ ही नहीं आ रहा? लॉकडाउन के चार दिन पहले ही हम इस नए शहर में ट्रान्स्फ़र हो कर आए हैं. वो तो भगवान का शुक्र है कि पढ़ने वाले छोटे बच्चे नहीं हैं वरना डबल मुसीबत. पुराने शहर में घर पर दो नौकर होने से पति को भी किसी काम की आदत नहीं के बराबर थी. अब करूं तो भी क्या? घर भी अच्छा पर डुप्लेक्स, नीचे ड्रॉइंग, डाइनिंग, किचन, स्टोर और गेस्ट रूम और ऊपर तीन बेड रूम्स, लिविंग रूम और पेंट्री. दो लोगों के लिए तो विशालकाय पर स्टेटस का भी मसला है पतिश्री सीनियर पदाधिकारी. पति मेरे पति नहीं घर पर भी अधिकारी ही बने रहते हैं. पुराने शहर में कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता था क्योंकि घर पर नौकर थे और बाहर ढेर सारी सहेलियां तो पति श्री की सिवाय पार्टियों के कहीं ज़रूरत ही महसूस नहीं होती थी. लेकिन यहां तो केवल एक मैं और एक तू ही थे. मैं जहां रात -घर को सलीके से ज़माने में लगी थी वहीं पति ने मेरी ढेर सारी सौतने ढूंढ़ रखी थी. मेरी सौतनो में अख़बार, टेलीविज़न, उनका स्मार्ट फ़ोन और सामने वाले घर की खिड़की थी. पति के ऑफ़िस का जो स्टाफ़ इस घर को साफ़ कराने आया था, उसने मुझे बताया कि सामने वाले घर में एक बूढ़ा एक जवान लड़की को लेकर रहता है. मैं तो अपनी हालत से इस कदर परेशान थी कि मुझे किसी बात में कोई दिलचस्पी नहीं थी. हो सकता है माधव (ऑफ़िस वाला स्टाफ़) ने भी पतिश्री को बुड्ढे और कमसीन कन्या वाली बात बताई हो तो पतिश्री अक्सर हमारी बालकनी से उस बालकनी में झांकते मिलते कभी बुड्ढा तो कभी वो लड़की वहां से हाथ हिलाते दिखते.
दिन पर दिन बीतते जा रहे थे और कोरोना के लॉकडाउन की वजह से मेरा और पति देव का अबोला था, साथ ही उनका वर्क फ्रॉम होम भी चल रहा था, बाक़ी का समय लैपटॉप फ़ोन और बालकनी. मैं जब भी कम्प्लेन करती तो ये जवाब देते,“अरे पड़े रहने दो घर को गंदा,कौन देखता है?”
वो तो मेरे ही अंदर कीड़ा घुसा हुआ था कि घर साफ़ होना चाहिए. घर के साथ सेरवेंट क्वॉर्टर भी था लेकिन लॉकडाउन की वजह से रखने में डर भी लग रहा था कि किसे रखा जाए? आने को तो बहुत सारे तैयार थे पर पुराने शहर की सहेलियां फ़ोन पे डराती रहती थी कि फ़लां की कोरोना से डेथ हो गई और बाद में पता पड़ा कि उनकी नौकरानी का पति कोरोना पॉज़िटिव था. ज़िंदगी पता नहीं किस मोड़ पर आ खड़ी थी जहां नेगेटिव नहीं पॉज़िटिव लोगों से डर लगता था. घर पर हम दो लोग ही थे लेकिन एक दूसरे से सोशल डिस्टेनसिंग किए हुए थे. मैं तो घर पर भी मास्क और दस्ताने पहने हुए रहती थी. मैंने माइक्रोबायोलॉजी में एमएससी की थी तो मेरा ज्ञान कहता था कि बीमारी दीवारों से भी
आ जाती है, हर जगह एसी लगा हुआ था. एसी डक्ट सबसे बड़ा हाथ था बीमारी फैलाने में. रात को दोनों बेटे विडियो कॉल पर आते और मेरी जमकर खिल्ली उड़ाते. छोटे थे तो मॉम मॉम, अब सारी ऐश डैड के पैसों से थी, तो अब डैड यू आर ग्रेट के नारे. मैं चुप हो जाती. कल रात तापसी पन्नु की थप्पड़ पिक्चर ऐमज़ान प्राइम में देखी. पूरे समय तापसी में अपने को पाया. ठीक उसी तरह अपनी पसंद के ऑफ़ वाइट को फेंक नीला रंग अपनी ज़िंदगी में भर लिया. मुझे सफ़ेद रंग सफ़ेद फूल, सफ़ेद चादर बहुत पसंद थी. पति और स्वर्गीय सासू मां ने बड़े ताने मारे. पति उन दिनों प्यार का प्रदर्शन बड़ा करते थे लेकिन अपनी शर्तों पर. पता ही नहीं चला कब उनकी पसंद मेरी ज़रूरत बन गई. परदे, चादर और यहां तक की मेरी सारी वॉर्डरोब भी नीले कपड़ों से भरी हुई थी. शायद ये थप्पड़ मेरे गाल पर था पर अब कुछ हो नहीं सकता था. मेरे अंदर की मैं का तो मैंने ख़ुद कब का क़त्ल कर दिया था. अतीत एक चल चित्र की तरह आंखों के सामने घूमने लगा और मेरे साथ अब और किरदार भी मेरे ज़ेहन में घूमने लगी. वो थी, सामने वाली बालकनी से कभी कभी झांकती वो लड़की जो एक बूढ़े के साथ रहती थी. घर भी कुछ हद तक संभल गया था लेकिन पता नहीं क्यों थप्पड़ देख ये तो ठान ही लिया था कि पतिश्री से थोड़े दिन बात ना कर ख़ुद को वापस पाने की भरपूर कोशिश करूंगी. घर पर चौदह दिन क्वॉरंटीन में रखने के बाद एक हेल्पर भी मिल गया था.
अब मेरा दोस्त साथी और चलो बहन चुग़ली करने का साथी वही हेल्पर गया राम था. मैं वापस अपने यूथ में पहुंच गई थी. वो मुझे दी कहता और मैं उसे ‘गे’कह पुकारती थी. वो तो मुझे मेमसाब कहना चाहता था. मैंने ही उम्र का लबादा उतारने के लिए उसे ‘दी’कहने के लिए मजबूर किया. वो बेचारा…. तो जानता ही नहीं था कि गे का क्या मतलब होता है. मैं ट्रेंड कथक डान्सर थी, वापस घुंघरू पैर में बांध लिए. मैं यूट्यूब में गाने लगा कर नाचती गया से वीडियो रिकॉर्ड करने कहती. मैंने अपने ये वीडियो सहेलियों, कज़िनस और दोनों बेटों को भेजे. सभी ने मुझे ऑनलाइन क्लास लेने के लिए कहा. मैं और गया मिल एक घंटे में खाना बना लेते और बाक़ी काम भी वो झटपट कर देता. मैं रोज़ अब न्यूज़ देखती, डान्स करती, पेंटिंग करती और सामने वाली खिड़की पर नज़र भी रखती.
मैंने अपने दोनों बेटों की एक फ़ोटो को जस का तस केनवास पर उतार दिया उन्हें जब मेरी पेंटिंग की फ़ोटो भेजी तो दोनों ही ख़ुशी से झूमने लगे. दोनों को खाना बनाती, कपड़े प्रेस करती बेचारी मां से ज़्यादा ये चुलबुली, वर्ल्ड पॉलिटिक्स डिस्कस करती, नाचती मां बहुत पसंद आ रही थी.
बच्चों के सामान में मुझे एक दूरबीन मिली, जिसे वो लड़कियों को ताड़ने में इस्तेमाल करते थे. बस फिर क्या था सोचा इस प्यारी-सी लड़की को बूढ़े की क़ैद से छुड़ाया ही जाए. उनकी बालकनी के सामने वाली बालकनी पतिश्री का अड्डा थी. उपर हमारे मास्टर बेड रूम से उनका किचन दिखता था क्योंकि दोनों ही घर वास्तु से बने थे. मास्टर बेडरूम साउथवेस्ट और किचन साउथईस्ट में बनाया जाता है. मैं तो अपनी जवानी में पहुंच चुकी थी, सो मास्टर बेड रूम की खिड़की के परदे को हल्का सा खिसका कर उसके किचन में दूरबीन से देखने की कोशिश करती. वो बड़ी ही प्यारी हंसमुख लड़की मालूम पड़ती. देखने पर पाया वो कभी पास्ता कभी फलाफल तो कभी ग्रिल आइटम बनाने में लगी रहती. मैंने अब मान लिया कि बूढ़ा उसका बाप है और वो पिता के लिए नई-नई डिशेज़ ट्राई करती है. मन में एक प्यारे से ख़याल ने अंगड़ाई ली, अच्छी बहू मटीरीयल है. दिखने में बहुत प्यारी बिलकुल अमृता राव (फ़िल्म ऐक्ट्रेस) की तरह. दूरबीन के मुंह के पास फ़ोन से तस्वीर ली, बड़ी प्यारी बालों में मैदा लगा, बॉबी के डिम्पल की याद दिला दी, शायद कुछ बेक कर रही थी. उम्र भी बड़े बेटे के उम्र के ही आसपास लग रही थी. बेटे को फ़ोटो भेजी, उसका भी दिल मचलने लगा. उसने फ़ोन किया,“ मम्मा ये कौन है? बड़ी प्यारी है.”
मैं,“कौन है छोड़! तुझे पसंद आ रही है.”
बेटा,“मैं शायर तो नहीं मम्मी जब से देख. इसे मुझे शायरी आ गई.’’
मैं,“ठीक है, ठीक है ज़्यादा रोमैंटिक होने की ज़रूरत नहीं.’’
बेटा,“मेरी प्यारी मां मम्मा बात चलाओ ना.’’
उसके बाद उसने अपने छोटे भाई से भी बात कराई जो अभी पढ़ाई ही कर रहा था और बड़े भाई के पास लॉकडाउन की वजह से हॉस्टल से आ गया था. छोटा भी बड़ा ख़ुश फ़ोटो देख कर, कहता है,“वाह मॉम आपमें इतना चेंज भाई ना बोले तो मैं हूं ना.”
मैं,“तुम लोग भी ना बड़े बदमाश हो. अरे अभी तो इसे जानती हूं भी नहीं. हमारे घर के सामने वाली खिड़की पर देखा है. अपने बूढ़े बाप के साथ रहती है. मेरे और गे के पास जब ख़ाली समय रहता है, ताका झांकी करते हैं. उसी में अपनी दूरबीन से ये तस्वीर ली.’’
मेरी बात भी अभी पूरी नहीं हुई थी कि दोनों भाई एक साथ कोरस में चिल्लाए.“ये तेरी! पागल हो क्या?’’
बड़ा बेटे ने बोलना शुरू किया,“मॉम यू आर एजुकेटेड ,इतना तो मालूम होगा किसी की प्राइवेसी में दख़ल देना क्राइम है. हाउ कुड यू डू इट? बाई द वे हू इज़ दिस गे?”
मैंने भी चिल्लाते हुए कहा,“अरे तुम लोग भी ना! बात को कहां से कहां ले जाते हो? तुम्हारी पुरानी चीज़ों को मैंने सहेज कर रखा है. कोरोना की वजह से ना कोई फ़्रेंड, पापा अभी भी साहेब बने बैठे रहते हैं. नया हेल्पर गया राम ही मेरे सुख दुःख का साथी है. सामान में तुम्हारी पुरानी दूरबीन मिली तो मैं उसे देखना सिखा रही थी, उसी में वो लड़की दिखी तो तस्वीर ले ली बस. गया राम को अपना मन बहलाने के लिए गे बुलाती हूं.’’
मेरा दुखड़ा सुन दोनों बेटे पिघल गए और बक़ायदा कान पकड़ वीडियो कॉल में माफ़ी मांगी. मैं भी बूढ़ा, लड़की और हमारी जासूसी की बातें छिपा गई.
मैं और गे अपनी दुनिया में मस्त थे और साथ ही हमारी जासूसी भी जारी थी. मैंने अपने पुराने अल्बम और पूरा अतीत गे के साथ डिस्कस किया था. ये तो कोरोना का बदलाव था वरना मैं ही थी जो लोगों को भाषण दिया करती थी कि नौकरों को उनकी जगह पर ही रखना चाहिए. सचमुच अगर मुझमें में इतना बदलाव है तो बाक़ी दुनिया में तो होगा ही. कोरोना ने सिखा दिया कि “राजा रंक सभी का अंत एक सा होय.’’ हमारी दूरबीन जासूसी में एक ज़बरदस्त मोड़ आया. मेरे और पति की बीच की कड़ी गे ही था. पति के अंदर के साहब के लिए गया राम से बात करना बिलो डिगनिटी था. तभी उन्हें हाथ हिलाने के लिए सामने वाला बूढ़ा मिल गया. एक शाम गे दौड़ता हुआ मेरे पास आया और हांफते हुए कहने लगा,“दी साहेब लॉकडाउन में भी कहीं जा रहे हैं. हमसे पैंट प्रेस करने कहा, हमने कर दी. जूता भी पॉलिश किया.” मैंने सोचा बड़े साहेब हैं ज़रूर कोई दफ़्तर की इमर्जेन्सी होगी. उनके जाते ही मैं और गे अपनी दूरबीन निकाल कर बैठ गए. उस दिन का दूरबीन का माजरा तो मेरे दिल को दहला देने वाला था. देखा तो पाया कि मेरे पतिश्री बूढ़े की बालकनी में हैं और उनके घुसते ही वो लड़की पतिश्री के गले लिपट गई. मुझे तो जैसे काटो तो ख़ून नहीं, मैं चिल्लाने लगी,“साला, कमीना, खूसट, कुत्ता कीड़े पड़े इस बूढ़े के कोई अपनी बेटी को किसी पराए मर्द से क्या इस तरह मिलाता है? और इन्हें क्या हुआ है? ऐसा तो पब्लिक्ली इन्होंने मुझे भी गले नहीं लगाया है. कमसिन जवान लड़की देखी और टूट पड़े. कहां तो इसकी फ़ोटो बेटों को दिखा रही थी पर ये तो पूरी कुलटा निकली. ये मर्द जात ना…” मैंने अपना वाक्य भी पूरा नहीं किया और मेरा गे शुरू हो गया,“ऐसा ना कहें दी एक दो लोगों के लिए पूरी मर्द जात को गाली ना दें. हमको देखिए सालों से घर से दूर हैं, साल में सिर्फ़ महीने भर के लिए घर जाते हैं. क्या मजाल कभी आंख उठा किसी और स्त्री को देखें. आप तो देख ही रही हैं हमारी नज़र…”
इस बार बात काटने की बारी मेरी थी,“गया राम नीचे जाओ. क्या समझ रखा है अपने आप को? जाओ काम करो.’’
साला कमीना साहेब से बराबरी करने चला है. ख़ैर ग़लती तो मेरी ही थी जो गया राम को अपना सखा बना लिया था. रही मेरे साहेब की बात तो जब अपना ही सिक्का खोटा हो तो उस लड़की को क्या दोष दूं. फिर दूरबीन से देखने के बाद वही हंसी ठिठोली. लड़की कभी बूढ़े तो कभी इनके कंधे पे हाथ रखती. बात करते करते उसने बूढ़े को गाल में चूम भी लिया. ज़माना बदल गया है, हम लोग तो अपने बाप के साथ बैठ सिनेमा भी नहीं देखते थे और यहां बाप और एक अनजान बाप बराबर पड़ोसी से चूमाचाटी. पति श्री दो घंटे बाद आए और गया राम से उनके लिए कुछ भी बनाने से मना किया, वहां से ठूंस कर जो आए थे. मेरी दुनिया ही बदल गई थी. चुपचाप दूरबीन ले सामने वाले घर में देखती. रोज़ शाम वही पति वहीं डेरा रहता. ज़ोर-ज़ोर के ठहाके लगाए जाते, कुछ खाया जाता. एक दिन देखा ये तीनों ग्लास टकरा चियर्स कर शराब भी पी रहे थे. कमीनी शराब भी पीती है वो भी बाप और बाप बराबर आदमी के साथ.
घबराकर आसमान की ओर देखती जो ख़ुदा का केनवास है, जिसमें तरह तरह के रंग हैं. कभी काले, कभी सफ़ेद तो कभी मटमैले बादल. कभी-कभी उसमें सुंदर सतरंग. इंद्रधनुष तो कभी साफ़ नीला आकाश. आजकल लॉकडाउन की वजह से ना वाहनों की आवाजाही ना कारख़ाने का धुआं, सारे समय प्रभु का केनवास नीला. काश… मैं अपनी ज़िंदगी का केनवास भी नए रंगों से भर पाती. उम्र की इस दहलीज में काश ये सम्भव हो पाता! बच्चों की हंसती नाचती मां भी कहीं गुम हो गई थी. वो दोनों मुझे देख वीडियो में हंसाने के लिए गाते,“इक मम्मा जो हमारी मम्मा है कहीं गुम है.” मैं फीकी हंसी हंसती तो कहते,“व्हेयर इज़ योर गे मॉम.’’
मेरा पति मुझे भले गले ना लगाता हो लेकिन किसी और का भी तो ना हो. गयाराम दी से मालकिन पर आ गया था और शायद मुझ पर तरस भी खाता हो. कभी ये तीनों बालकनी में ना बैठ अंदर भी बैठते तो मेरी दूरबीन ख़ाली और दोनों कान ठहाकों से भर जाते. एक दिन दोपहर को दूरबीन ने जो नज़ारा दिखाया वो तो पैरे तले ज़मीन खिसकने से भी ज़्यादा था. लड़की किचन में खड़ी खाना बना रही थी. बूढ़ा दौड़ कर आया और उसने लड़की को कस कर बांहों में बांध लिया और उसके कपड़ों की अंदर हाथ डालने लगा. लड़की भी पलट कर उसके उपर छिपकली की तरह चढ़ गई. दोनों होंठों को होंठों से लगा एक दूसरे को बेतहाशा चूमने लगे. मैंने तो ज़िंदगी में ब्लू फ़िल्म भी नहीं देखी थी. मैं इसके आगे देख भी नहीं पाई और चक्कर खा ज़मीन पर गिर पड़ी. फ़र्श में गिरने से मेरे साथ कई चीज़ें गिरीं मसलन मेरी लोहे और कांच से बनी दूरबीन, पास रखी कुर्सी. बम ब्लास्ट जैसी आवाज़ सुन पतिश्री और गया राम दौड़े-दौड़े ऊपर आए. मुझे ज़मीन पर गिरे देख दोनों के तो जैसे होश उड़ गए. मुझे जब होश आया तो ख़ुद को पति की बांहों में पाया. इतनी तक़लीफ़ में भी पति के डोले शोले पास से देखे, पति सपनों के राजकुमार से लगे. वो विभत्स सीन याद आते ही घिग्घी सी बंध गई और मैंने उल्टी कर दी. पति श्री ने ज़रा भी धैर्य नहीं खोया, मेरा खाया पिया सब उनके कपड़ों पर गिर गया. उसी हालत में वे मुझे वाशरूम ले गए. गया राम को बाहर जाने कह मेरे सारे कपड़े उतार अच्छी तरह से साफ़ कर नए कपड़े पहनाए यहां तक की अंडर गारमेंट्स भी. पतिश्री से सेवा कराने का ये सारी ज़िंदगी में पहला अवसर था. मेरे दोनों बच्चे मायके में हुए थे और उसके बाद मैं कभी बीमार पड़ी ही नहीं. मेरी उलटियां रुकने का नाम ही नहीं ले रही थीं. पति ने पलंग के पास एक बकेट रख दी और बार-बार मेरा मुंह पोंछ रहे थे लेकिन चेहरे पर एक शिकन भी नहीं थी. इतनी ख़ुशी ज़िंदगी में पहली बार मिली थी.
मेरी उलटियां देख पति डर गये और उनका पुराना स्कूल मेट इसी शहर में डॉक्टर था. उसे फ़ोन करते ही वो आ गया. मैं तो अधमरी बेहोश पड़ी थी. पहले उसने उलटियां बंद करने का इंजेक्शन लगाया. बार-बार पूछ रहा था,“क्या खाया था?” काश पूछता कि क्या देखा था. मेरा ब्लड प्रेशर काफ़ी कम हो गया था, इससे उसने हॉस्पिटल ले जा सलाइन चढ़वाने का मशवरा दिया. पति और मैं दोनों हॉस्पिटल जाने में डर रहे थे, कोरोना का डर जो था. डॉक्टर ने गयाराम से सारी चीज़ें मंगाकर घर पर ही मुझे सलाइन चढ़ा दिया और मुझे नींद का इंजेक्शन लगा सुला दिया. जब नींद खुली तो भी पति को अपने सिरहाने पर मेरा सर सहलाते पाया. जैसे मैंने आंखें खोली पति ने झुक प्यार से मेरे माथे पर चुम्बन जड़ दिया. इतनी कमज़ोरी में भी मैं शर्मा कर लाल हो गई. डॉक्टर साहेब कहने लगे,“मोहतरमा बड़ी भाग्यवान हैं आप! अशोक (मेरे पति) जैसे आदमी को पहली बार बच्चों की तरह रोते देखा. आपके सिरहाने में वही आपकी उल्टी से कपड़े पहने बैठे थे. मेरे ज़ोर देने पर अभी पांच मिनट पहले बदल कर आए हैं. ऐसा प्यार सभी को नहीं मिलता मैडम.”
मैं भी ख़ुशी के मारे रोने लगी. अब ठीक गई तो फिर साला कमीना ठरकी बूढ़ा दिमाग़ में आ गया. वो लड़की शायद उसकी रखैल है, धंधा करवाता है शायद साला. बड़ा ऑफ़िसर सामने देख इनको भी परोसने में लगा था. धीरे से समय देख इनको समझा दूंगी, पूरे नारियल की तरह है ये ऊपर से कड़े अंदर नरम. डॉक्टर साहेब चले गए और पहली बार ज़िंदगी में पति ने मुझसे प्यार का इज़हार किया. कभी मेरा सर सहलाते कभी माथा चूमते और कहते,“तुम्हें कुछ हो जाता तो मैं तो मर ही जाता.” उसके बाद तो हद ही हो गई, पतिश्री ने बेटों को वीडियो कॉल लगाया और कहा,“ मेरे जिगर के टुकड़ों तुम्हारी जो मां है ना इसने तो आज मेरी वाट ही लगा दी थी. एक तो एक महीने से मुझसे बात भी नहीं कर रही थी और आज तो बस लगा कि ये गई ….मुझे रंडवा बनाने पर तुली थी. सोचो आज अगर इसे कुछ हो जाता तो इस उम्र में तुम्हारे लिए दूसरी मम्मा कहां से लाता?”
मैंने मन ही मन सोचा संगत का अच्छा असर है, ज़रूर रंडवा वाट ये सारे शब्द उस शराबी गंजेड़ी बूढ़े ने ही सिखाए हैं नहीं तो इनकी भाषा बड़ी शिष्ट है. ख़ैर वो तो मैं बाद में प्यार से समझा दूंगी. उधर बच्चे भी पापा का ऐसा इमोशनल रूप देख परेशान थे. बातें करते करते वीडियो कॉल में ही ये फफक फफक कर रोने लगे. उसके बाद बच्चों के सामने ही मेरा माथा चूम कहा,“तुम तीनों के सिवाय मेरा कौन है? बोलता नहीं हूं इसका ये मतलब तो नहीं कि मुझे तुम लोगों की परवाह नहीं है.” बच्चे भी रोने लगे. सबका ख़ुद के लिए इतना प्यार देख मैं रोने लगी. अभी हम थोड़ा संभल ही रहे थी कि कॉल बेल बजी, गया राम ने इनसे कहा कि सामने वाले मिलने आए हैं. मेरे तो ग़ुस्से से नथुने फड़कने लगे लेकिन इतने सालों में पहली बार पति का प्यार मिला था. इससे मैं चुप ही रही, वो दोनों यानी खड़ूस बूढ़ा और उसकी रखैल सीधे मेरे कमरे में आ गए और लड़की फ़र्राटे से मेरे पास बैठ बोलने लगी,“हाई आंटी आपने तो हम सबको डरा दिया. अंकल का तो बुरा हाल था, वो तो बस रोए ही जा रहे थे. वो तो अच्छा हुआ डॉक्टर अंकल का नम्बर मेरे पास था. अब कैसी हैं आप?”
मेरे मन से आवाज़ आई वाह रे बड़ी अंकल आंटी वाली कुत्ती कमीनी तेरा कल्याण तो बाद में करूंगी. कमीना बूढ़ा बेटी की उम्र की रखैल रखा है शराबी गंजेड़ी, मेरे सीधे पति को अपने जाल में फंसा रहे ह . लेकिन ऊपर से जवाब दिया,“ठीक हूं’’
मेरा उतरा मुंह और चेहरे पर आई घृणा को देख पति बोले,‘‘हंस दे तू हंस दे ज़रा.’’
लड़की बोली,“अंकल वाउ आप तो बड़े रोमैंटिक हैं.”
बूढ़ा कहता है,“अंकल किसके हैं?”
मेरा चेहरा ग़ुस्से से लाल हो गया. पतिश्री समझ गए कि दाल में कुछ काला है. उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर कहा,“पहचाना नहीं इसे ये आहना है मेरे दोस्त परिहार की बेटी. बचपन में चाची-चाची कह तुमसे लिपट जाती थी. इसी ने मुझे पहचाना जब मैं बालकनी में बैठा था.’’
लड़की,“ओह माई गॉड अंकल आई विल किल यू. आपने चाची को अब तक मेरे बारे में नहीं बताया. हम तो रोज़ मिलते थे, जब भी आपके बारे में पूछा एक ही जवाब मिला घर सजाने में लगी है. लॉकडाउन की वजह से हम भी घर से नहीं निकले. सारा दिन घर के काम में निकल जाता है. सॉरी चाची माफ़ कर दो.’’
बाप रे अच्छा हुआ मैंने कुछ नहीं कहा ये तो उज्जैन में हमारे पड़ोसी की बेटी आहना है.
बचपन में मुझसे ही अपने सारे काम करवाती थी. पर बेचारी… इस कमीने बूढ़े के साथ कहां फंस गई. परिहार साहेब की एक ही बेटी, बड़े जतनों के बाद हुई थी. वाह री क़िस्मत…
तभी आहना ने बूढ़े का हाथ पकड़ कहा,“चाची और ये रहे आपके दामाद श्रीमान अजय चौबे. मैं समझ गई आप सोच रही होंगी बेटी ने बूढ़ा कहां से पकड़ लिया. इन्फ़ैक्ट अजय मुझसे सात महीने छोटा है. हम दोनों आईआईएम में क्लास मेट थे और मैं यहां एचडीएफ़सी और अजय ऐक्सिस बैंक में वेस्टर्न ज़ोन इनचार्ज हैं. ख़ाली पति के बाल जल्दी सफ़ेद हो गए हैं. मेरे ससुर और जेठ के बाल भी पूरे सफ़ेद हैं.”
अब शर्मसार होने की बारी मेरी थी. मैं तो बच गई, क्योंकि सामने वाली खिड़की और मेरी दूरबीन का राज़ मुझ तक ही रहा. ग़नीमत पतिश्री को इसकी भनक भी नहीं पड़ी. ये भी बहुत अच्छा हुआ कि मैंने अपने जासूसी मिशन से अपने गे यानी गया राम को बहुत पहले ही निकाल दिया. छी करोना हाय करोना पता नहीं इस लॉकडाउन में मेरे जितने कितने जासूस पैदा किए होंगे.

Illustration: Ewa Geruzel/Pinterest

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डॉ संगीता झा

डॉ संगीता झा

डॉ संगीता झा हिंदी साहित्य में एक नया नाम हैं. पेशे से एंडोक्राइन सर्जन की तीन पुस्तकें रिले रेस, मिट्टी की गुल्लक और लम्हे प्रकाशित हो चुकी हैं. रायपुर में जन्मी, पली-पढ़ी डॉ संगीता लगभग तीन दशक से हैदराबाद की जानीमानी कंसल्टेंट एंडोक्राइन सर्जन हैं. संपर्क: 98480 27414/ [email protected]

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