शब्दों से खींची और कविता में ढली वरिष्ठ कवि लीलाधर जगूड़ी की रचना ‘सुबह का फोटू’ आपके सामने एक सजीव दृश्य खड़ा कर देती है. उन दृश्यों और ध्वनियों के तारों को जोड़कर आप क्या समझते हैं, यह आपके ऊपर है.
जामा मस्जिद के पास एक औरत चीख रही है
एक मर्द की गद्दारी पर
मर्द लाचार सा मगर साफ़-साफ़ दुराचार सा
दिखता चुप है
वह जब-जब कुछ कहता है चीख पड़ती है औरत
सुनती है जामा मस्जिद एक औरत की चीख
दूर से आती हुई अजान की तरह
(औरतें अजान नहीं देती)
अंधेरा मिटाती, किवाड़ सी चरमराती
जामा मस्जिद से एक अजान आती है
(पर्दों की ज़िद्दी और हठीली आवाज़)
जिसे वह सुनती है चीखती है अजान के वक़्त
आंसू पीकर तोड़ती है रोजा
जामा मस्जिद की सीढ़ियों पर लेटी है वह
मीनारों से भी ऊंची और गुंबदों से भी भारी
चीख की तरह
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