कुछ कविताएं दिल में इस तरह उतर जाती हैं कि किसी संघर्ष का एंथम बन जाती हैं. वर्ष 2012 के निर्भया कांड के दौरान लिखी एक नए कवि पुष्यमित्र उपाध्याय की कविता ‘सुनो द्रौपदी! शस्त्र उठा लो अब गोविंद ना आएंगे’ महिलाओं को अपनी रक्षा की ज़िम्मेदारी ख़ुद लेने का आह्वान करती है.
सुनो द्रौपदी! शस्त्र उठा लो अब गोविंद ना आएंगे
छोड़ो मेहंदी खड्ग संभालो
ख़ुद ही अपना चीर बचा लो
द्यूत बिछाए बैठे शकुनि
मस्तक सब बिक जाएंगे
सुनो द्रौपदी! शस्त्र उठा लो अब गोविंद ना आएंगे
कब तक आस लगाओगी तुम, बिक़े हुए अख़बारों से
कैसी रक्षा मांग रही हो दुःशासन दरबारों से
स्वयं जो लज्जाहीन पड़े हैं
वे क्या लाज बचाएंगे
सुनो द्रौपदी! शस्त्र उठा लो अब गोविंद ना आएंगे
कल तक केवल अंधा राजा, अब गूंगा-बहरा भी है
होंठ सिल दिए हैं जनता के, कानों पर पहरा भी है
तुम ही कहो ये अश्रु तुम्हारे,
किसको क्या समझाएंगे?
सुनो द्रौपदी! शस्त्र उठा लो अब गोविंद ना आएंगे
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