बौड़म: कहानी एक पागल की (लेखक: मुंशी प्रेमचंद)
क्या दुनिया जिसे बौड़म यानी पागल कहती है, वह सचमुच पागल होता है? मुझे देवीपुर गए पांच दिन हो चुके ...
क्या दुनिया जिसे बौड़म यानी पागल कहती है, वह सचमुच पागल होता है? मुझे देवीपुर गए पांच दिन हो चुके ...
भारत-पाकिस्तान विभाजन ने भारतीय उपमहाद्वीप के नक्शे पर दो नए मुल्क रख दिए, पर इस बंटवारे ने हज़ारों-लाखों लड़कियों का ...
कुछ लोग आज़ादी मिलने के पहले भी आज़ाद थे और कुछ लोग कभी आज़ाद नहीं हो सकते. इसी सच्चाई का ...
गांवों में बिजली पहुंचने से पहले पेट्रोमेक्स लैम्प से वहां की रातें रौशन होती थी. पेट्रोमेक्स लैम्प को देहातों में ...
ग़रीबी और ख़ूबसूरती में अगर मुक़ाबला कराया जाए तो एक शुरुआती उठा-पटक के बाद ख़ूबसूरती हार जाएगी. ग़रीबी इच्छाओं पर ...
हम सब भगवान की शक्तियां चाहते हैं, पर भगवान की तक़लीफ़ साझा करने को लेकर उदासीन क्यों हो जाते हैं? ...
चन्द्रनाथ पड़ोस के घर की कुंती को रोज़ देखता था. उसे नहाते, कपड़े बदलते. वह चाहता था, एक दिन वह ...
एक लड़का अपनी बीमार मां के कहे अनुसार एक पुरानी आल्मारी खोलता है. आल्मारी खोलने के बाद उसके हाथ जो ...
हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.
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