थोड़ी धरती पाऊं: सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता
प्रकृति का सहचर्य क्यों ज़रूरी है और हम कैसे यह सहचर्य पा सकते हैं, बता रही है सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ...
प्रकृति का सहचर्य क्यों ज़रूरी है और हम कैसे यह सहचर्य पा सकते हैं, बता रही है सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ...
जाड़े की शाम के प्राकृतिक दृश्य की तुलना सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने एक किसान से की है. रूपकों के इस्तेमाल ...
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना अपनी बाल कविताओं के लिए जाने जाते थे. कविता मेघ आए में उन्होंने आसमान में घिर आए ...
हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.
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