बिना लाग लपेट के कविताएं करनेवाले बाबा नागार्जुन की यह कविता गांधी जी के तीनों बंदरों की उपमा के साथ कथित गांधीवादियों और बाबू के नाम पर राजनीति करनेवालों पर सीधा कटाक्ष है.
बापू के भी ताऊ निकले तीनों बंदर बापू के!
सरल सूत्र उलझाऊ निकले तीनों बंदर बापू के!
सचमुच जीवनदानी निकले तीनों बंदर बापू के!
ग्यानी निकले, ध्यानी निकले तीनों बंदर बापू के!
जल-थल-गगन-बिहारी निकले तीनों बंदर बापू के!
लीला के गिरधारी निकले तीनों बंदर बापू के!
सर्वोदय के नटवरलाल
फैला दुनिया भर में जाल
अभी जियेंगे ये सौ साल
ढाई घर घोड़े की चाल
मत पूछो तुम इनका हाल
सर्वोदय के नटवरलाल
लम्बी उमर मिली है, ख़ुश हैं तीनों बंदर बापू के!
दिल की कली खिली है, ख़ुश हैं तीनों बंदर बापू के!
बूढ़े हैं फिर भी जवान हैं ख़ुश हैं तीनों बंदर बापू के!
परम चतुर हैं, अति सुजान हैं ख़ुश हैं तीनों बंदर बापू के!
सौवीं बरसी मना रहे हैं ख़ुश हैं तीनों बंदर बापू के!
बापू को ही बना रहे हैं ख़ुश हैं तीनों बंदर बापू के!
बच्चे होंगे मालामाल
ख़ूब गलेगी उनकी दाल
औरों की टपकेगी राल
इनकी मगर तनेगी पाल
मत पूछो तुम इनका हाल
सर्वोदय के नटवरलाल
सेठों का हित साध रहे हैं तीनों बंदर बापू के!
युग पर प्रवचन लाद रहे हैं तीनों बंदर बापू के!
सत्य अहिंसा फांक रहे हैं तीनों बंदर बापू के!
पूंछों से छबि आंक रहे हैं तीनों बंदर बापू के!
दल से ऊपर, दल के नीचे तीनों बंदर बापू के!
मुस्काते हैं आंखें मीचे तीनों बंदर बापू के!
छील रहे गीता की खाल
उपनिषदें हैं इनकी ढाल
उधर सजे मोती के थाल
इधर जमे सतजुगी दलाल
मत पूछो तुम इनका हाल
सर्वोदय के नटवरलाल
मूंड रहे दुनिया-जहान को तीनों बंदर बापू के!
चिढ़ा रहे हैं आसमान को तीनों बंदर बापू के!
करें रात-दिन टूर हवाई तीनों बंदर बापू के!
बदल-बदल कर चखें मलाई तीनों बंदर बापू के!
गांधी-छाप झूल डाले हैं तीनों बंदर बापू के!
असली हैं, सर्कस वाले हैं तीनों बंदर बापू के!
दिल चटकीला, उजले बाल
नाप चुके हैं गगन विशाल
फूल गए हैं कैसे गाल
मत पूछो तुम इनका हाल
सर्वोदय के नटवरलाल
हमें अंगूठा दिखा रहे हैं तीनों बंदर बापू के!
कैसी हिकमत सिखा रहे हैं तीनों बंदर बापू के!
प्रेम-पगे हैं, शहद-सने हैं तीनों बंदर बापू के!
गुरुओं के भी गुरु बने हैं तीनों बंदर बापू के!
सौवीं बरसी मना रहे हैं तीनों बंदर बापू के!
बापू को ही बना रहे हैं तीनों बंदर बापू के!
Illustration: Sahana Murthy/Pinterest