बेहद मशहूर व लोकप्रिय पाकिस्तानी शायर अहमद फ़राज़ के सृजन में सच्चाई और बेबाकी इस क़दर मौजूद थी कि उन्होंने हमेशा ही सत्ता के ख़िलाफ़ आवाज़ बुलंद की. जिसके नतीजे में उन्हें देश से निर्वासित भी होना पड़ा. यहां पेश की जा रही गज़ल, उनकी रूमानी ग़ज़लों में से एक बेहद सराही जाने वाली ग़ज़ल है.
तेरी बातें ही सुनाने आए
दोस्त भी दिल ही दुखाने आए
फूल खिलते हैं तो हम सोचते हैं
तेरे आने के ज़माने आए
ऐसी कुछ चुप सी लगी है जैसे
हम तुझे हाल सुनाने आए
इश्क़ तन्हा है सर-ए-मंज़िल-ए-ग़म
कौन ये बोझ उठाने आए
अजनबी दोस्त हमें देख कि हम
कुछ तुझे याद दिलाने आए
दिल धड़कता है सफ़र के हंगाम
काश फिर कोई बुलाने आए
अब तो रोने से भी दिल दुखता है
शायद अब होश ठिकाने आए
क्या कहीं फिर कोई बस्ती उजड़ी
लोग क्यूं जश्न मनाने आए
सो रहो मौत के पहलू में ‘फ़राज़’
नींद किस वक़्त न जाने आए
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट