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Home ओए हीरो

पुण्यतिथि विशेष: आज भी जीवित हैं गांधी…

सर्जना चतुर्वेदी by सर्जना चतुर्वेदी
January 30, 2023
in ओए हीरो, ज़रूर पढ़ें, शख़्सियत
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Mahatma-Gandhi
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‘मेरा जीवन ही मेरा संदेश है’ महात्मा गांधी का यह कथन उनके पूरे जीवन पर बिलकुल सटीक बैठता है. जो बापू के बारे में जितना अधिक जानता है उसकी उनके प्रति श्रद्धा और निष्ठा निश्चित ही उतनी बढ़ती जाती है. इस वर्ष 30 जनवरी को राष्ट्रपिता की 75वीं पुण्यतिथि थी. इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार सर्जना चतुर्वेदी ने गांधी जी, जिन्हें प्यार से बापू कहा जाता है, के अंतिम दिनों के की कुछ घटनाओं पर नज़र डाली. साथ ही गांधी नामक व्यक्ति नहीं, विचार की पड़ताल करने की कोशिश की.

गुजरात के पोरबंदर में 2 अक्टूबर 1869 को जन्मे बापू ने लंदन में पढ़ाई, अफ्रीका में वकालत और रंगभेद के खिलाफ आंदोलन के बाद वह अपने वतन वापस लौट आए. यहां उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ अहिंसात्मक आंदोलन चलाया और देश की आजादी में योगदान दिया. 15 अगस्त 1947 को देश को अंग्रेजों की ग़ुलामी से आज़ादी तो मिली लेकिन इसके साथ ही विभाजन की भी त्रासदी का सामना पूरे देश को करना पड़ा. देश के विभाजन के लिए महात्मा गांधी को ज़िम्मेदार मानने वाली कुछ अतिवादी शक्तियों ने बापू को देश का दुश्मन समझा. उनकी जान लेने के लिए षडयंत्र रचे जाने लगे. 20 जनवरी, 1948 को मदन लाल पाहवा नामक शख्स ने भी गांधी को चोट पहुंचाने के उद्देश्य से ही दिल्ली के बिड़ला हाउस में एक हथगोले से हमला किया गया था. इस बम फेंकने की घटना के 10 दिन बाद 30 जनवरी 1948 के दिन गांधीजी बिड़ला पार्क के मैदान में प्रार्थना सभा के लिए जा रहे थे. वे कुछ मिनट देरी से पहुंचे. समय से पांच-दस मिनट देरी से पहुंचने के कारण वे मन-ही-मन में बड़बड़ाने लगे. ‘मुझे ठीक पांच बजे यहां पर पहुंचना था.’ गांधीजी ने वहां पहुंचते ही अपना हाथ हिलाया, भीड़ ने भी अपने हाथों को हिलाकर उनका अभिवादन किया. कई लोग उनके पांव छूकर आशीर्वाद लेने के लिए आगे बढ़े. उन्हें ऐसा करने से रोका गया, क्योंकि गांधीजी को पहले ही देरी हो चुकी थी. लेकिन पुणे के एक हिंदू युवक नाथूराम गोडसे ने भीड़ को चीरते हुए अपने लिए जगह बनाई. गांधीजी के नज़दीक पहुंचते ही उसने अपनी ऑटोमेटिक पिस्तोल से गांधीजी के सीने पर तीन गोलियां दाग दी. गांधीजी गिर पड़े, उनके होंठों से ईश्वर का नाम निकला,’हे राम’. इस तरह अहिंसा के पुजारी और इस देश के राष्ट्रपिता बापू का शरीर नष्ट हो गया लेकिन उनके विचार देश-दुनिया के करोड़ों लोगों में जीवंत हैं. उनके अहिंसात्मक विचारों में ही लोगों को विश्व में शांति और समृद्धि का रास्ता नज़र आता है. गांधी की स्मृतियों का वह केन्द्र जहां बापू ने अपने जीवन के अंतिम 144 दिन बिताए थे, वह बिड़ला हाउस आज पूरे विश्व में गांधी स्मृति के नाम से पहचाना जाता है, जो महात्मा गांधी पर केन्द्रित एक संग्रहालय है. बापू के बारे में और अधिक जानने की इच्छा लिए देश-विदेश से लोग यहां आते हैं.

जहां 77 साल के गांधी चार महीने नंगे पैर चले
महात्मा गांधी की जीवनी में दी गई जानकारी के अनुसार 12 अगस्त 1946 को वाइसराय लॉर्ड वेवेल ने जवाहर लाल नेहरू को वार्ता के लिए बुलाया. उसके बाद देश में दंगों की स्थिति उत्पन्न होने लगी. इसी बीच पूर्वी बंगाल के नोआखली जिला जो वर्तमान में बांग्लादेश में है. वहां कई निर्दोष नागरिक सांप्रदायिक दंगे में मारे गए. ऐसी स्थिति में गांधीजी के लिए शांत बैठे रहना असंभव था. उन्होंने निश्चय किया कि दोनों धर्म के बीच गहराती जा रही खाईं को वे अवश्य पाटेंगे, भले ही उसके लिए उन्हें अपने प्राणों का बलिदान देना पड़े. बापू कहते थे कि, यदि भारत को आजादी मिल भी गई और उसमें हिंसा होती रही तो वह आजादी गुलामी से भी बदतर होगी. गांधीजी ने वहां पदयात्रा करने का निर्णय लिया. जब वे कलकत्ता में थे तो उन्हें समाचार मिला कि नोआखली का बदला लेने के लिए बिहार में भी हिंसा का घिनौना कार्य किया गया. गांधीजी का दिल रोने लगा. यह वही स्थल था जहां से इस महात्मा ने भारत में अपना पहला सत्याग्रह शुरू किया था. गांधीजी ने चेतावनी देते हुए कहा कि,‘यदि हिंसक कार्रवाई जल्द नहीं रोकी गई तो वे तब तक उपवास रखेंगे जब तक उनकी मृत्यु नहीं हो जाती.’ गांधीजी के इस प्रण को सुनते ही तुरंत बिहार में हिंसा रोक दी गई. यह बापू के शब्दों की ताकत थी. इसके बाद बापू नोआखली के लिए रवाना हो गए. वहां के हालात ने उन्हें विचलित कर दिया. जिस क्षेत्र में वे प्रेम व भाईचारे का मंत्र ले गए थे. वहां तो एक समुदाय दूसरे समुदाय के ख़ून का प्यासा हुआ था. कई लोगों की हत्याएं हुई. महिलाओं से बलात्कार हुए और ज़बरन धर्म परिवर्तन कराया गया. पुलिस सुरक्षा को इंकार करते हुए, केवल एक बंगाली स्टेनोग्राफ़र को साथ लिए 77 वर्ष के महात्मा गांव-से-गांव तक, घर-से-घर तक की पदयात्रा कर रहे थे. गांधीजी दोनों धर्मों के बीच प्रेम का सेतु (पुल) बनाना चाहते थे. वे फलाहार ही करते और हिंदू-मुस्लिम के दिलों को एक करने के लिए दिन-रात एक कर रहे थे. नोआखली में 7 नवंबर 1946 से 2 मार्च 1947 तक गांधीजी रहे. चार महीनों की अपनी यात्रा के दौरान बापू यहां नंगे पांव रहे. उनका मानना था कि नोआखाली एक श्मशान भूमि है, जहां हज़ारों बेक़सूर लोगों की समाधियां हैं. ऐसी जगहों पर चप्पल पहनना मृत आत्माओं के प्रति अपमान है.
नोआखाली के पुलिस अधीक्षक श्री अब्दुल्ला ने बापू से वादा किया ‘आपके रहते दंगे नहीं होंगे.’ बापू ने कहा,‘तब ठीक है, अगर अब दंगे हुए तो गांधी तुम्हारे दरवाज़े पर मर जाएगा.’ अब्दुल्ला गांधी जी का मनतव्य समझ गए और कहा,‘मेरे जीते जी दंगे नहीं होंगे.’’ गांधी जी अब संतुष्ट थे. इसके बाद वे बिहार चले गए. यहां भी उन्होंने वही किया, जो नोआखली में किया था. गांव-से-गांव तक की पदयात्रा की. लोगों को उनकी ग़लती का अहसास कराने के साथ ज़िम्मेदारियों से भी परिचित कराया. घायलों के इलाज के लिए उन्होंने रुपए इकट्ठे करने शुरू किए. यह गांधीजी का ही प्रभाव था कि एक धर्म की महिलाएं दूसरे धर्म के लोगों के इलाज के लिए अपने गहने तक उतारकर दे रही थीं.

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विश्व की इन शख्सियतों ने अपनाए बापू के सिद्धांत
अफ्रीकी गांधी नेल्सन मंडेला, महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टाइन, अफ्रीकी-अमेरिकी नागरिक अधिकारों के संघर्ष के प्रमुख नेता मार्टिन लूथर किंग जूनियर समेत पूरे विश्व में बदलाव लाने वाली कई शख्सियतें ऐसी हैं, जो गांधी के विचारों से प्रभावित रही हैं और उन्होंने अपने जीवन को बेहतर बनाने में गांधी के विचारों और जीवन से प्रेरणा ली है.
स्टीव जॉब्स भी गांधी के नजरिए से प्रभावित थे. एप्पल के संस्थापक स्टीव जॉब्स युवा उम्र में भारत आए थे. वह महात्मा गांधी के जीवन और आध्यात्म से प्रभावित थे. स्टीव जॉब्स ने 1980 के दशक में जब अपनी कंपनी बनाई और एप्पल कंप्यूटर बेचना शुरू किया तो उन्होंने विज्ञापनों में चरखे के साथ बापू की तस्वीर लगाई. विज्ञापन का नारा था,‘अलग सोचो.’ बापू के विचारों से प्रभावित स्टीव हमेशा उनकी तरह ही गोल चश्मा पहनते थे. स्टीव ने एक बार कहा था कि गांधी उनके हीरो और आदर्श थे और वह उनके सिद्धांतों में अटूट विश्वास रखते थे.
भले ही बापू का संघर्ष अंग्रेजों के ख़िलाफ़ था लेकिन यह गांधी की अहिंसा की शक्ति ही थी, कि आज ब्रिटेश के लोग भी बापू में निष्ठा रखते हैं. संगीत की दुनिया के सबसे बड़े नामों में शामिल बीटल्स बैंड के ब्रिटिश संगीतकार जॉन लेनन भी महात्मा गांधी से प्रभावित थे. बापू के जैसा गोल चश्मा लेनन भी पहनते थे. लेनन ने कई अहिंसात्मक आंदोलनों में भी हिस्सा लिया. लेनन महात्मा गांधी के इस विचार से सबसे ज़्यादा प्रभावित थे कि ‘वो बदलाव ख़ुद बनो, जो तुम दुनिया में देखना चाहते हो.’
तिब्बत में चीन के दमन के बाद दलाई लामा 1956 में शरणार्थी के रूप में भारत आए थे. 20 साल की उम्र में दलाई लामा राजघाट में बापू की समाधि पर दर्शन करने गए. दलाई लामा ने समाधि को छुआ और जीवन में कभी हिंसा का रास्ता न अपनाने का संकल्प लिया. 1989 में दलाई लामा को महात्मा गांधी गांधी के नाम पर स्थापित शांति पुरस्कार प्रदान किया गया. उन्होंने अपना शांति पुरस्कार महात्मा गांधी को समर्पित किया.
नोबेल शांति पुरस्कार विजेता और म्यांमार की नेता आंग सांग सू ची महात्मा गांधी से प्रभावित हैं. सू की पूरे विश्व में बच्चों को गांधी के बारे में पढ़ने को कहती हैं. म्यांमार में सेना के सत्ता हथियाने के लिए खिलाफ़ सू ची ने लंबा अहिंसक विरोध किया. उन्हें 15 साल तक नज़रबंद करके रखा गया था.

जब चर्चिल के ही बगल में लगी ब्रिटिश संसद में गांधी की प्रतिमा
गांधी के प्रति तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल की नफ़रत इतनी ज़्यादा थी कि बापू जब 1942 में अनशन पर थे तब वह गांधी की मृत्यु तक में अपना फ़ायदा देख रहे थे. जब चर्चिल को ये पता चला तो उन्होंने वायसराय को लिखा,‘अगर कुछ काले लोग इस्तीफ़ा दे भी दें तो इससे फ़र्क क्या पड़ता है. हम दुनिया को बता सकते हैं कि हम राज कर रहे हैं. अगर गांधी वास्तव में मर जाते हैं तो हमें एक बुरे आदमी और साम्राज्य के दुश्मन से छुटकारा मिल जाएगा. ऐसे समय जब सारी दुनिया में हमारी तूती बोल रही हो, एक छोटे बूढ़े आदमी के सामने जो हमेशा हमारा दुश्मन रहा हो, झुकना बुद्धिमानी नहीं है.’
महात्मा गांधी ने कहा था कि, पहले वह आपकी उपेक्षा करेंगे, उसके बाद आप पर हंसेंगे, उसके बाद आपसे लड़ाई करेंगे, उसके बाद आप जीत जाएंगे. यह बात गांधी के जीवन पर बिलकुल सटीक बैठती है क्योंकि गांधी को कभी अधनंगा फकीर कहने वाले ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री विंस्टन चर्चिल की प्रतिमा के बगल में 4 मार्च 2015 को लंदन के पार्लियामेंट स्क्वायर पर गांधी की 9 फुट ऊंची कांस्य प्रतिमा लगाई गई थी. महात्मा गांधी के सम्मान में ब्रिटिश पार्लियामेंट ने यह प्रतिमा लगवाई थी.

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सर्जना चतुर्वेदी

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