महान रूसी लेखक लेव तॉलस्तॉय अपनी सरल और आध्यात्म का पुट ली हुई कहानियों के लिए जाने जाते थे. यहां पढ़ें उनकी एक ऐसी ही सरल और ज्ञानवर्धक कहानी द थ्री हेरमिट्स यानी तीन संत.
रूस के ऑर्थोडॉक्स चर्च के आर्चबिशप को यह पता चला कि उसके नियमित प्रवचन में भाग लेने वाले बहुत से लोग एक झील के पास जाने लगे हैं. उस झील के बीच में छोटा सा एक टापू था जहां एक पेड़ के नीचे तीन बूढ़े रहते थे. गांव वालों का यह कहना था कि वे तीनों संत हैं. आर्चबिशप को यह बात बहुत नागवार गुज़री क्योंकि ईसाई धर्म में संत केवल उन्हें ही माना जाता है जिन्हें वेटिकन द्वारा विधिवत संत घोषित किया गया हो.
आर्चबिशप क्रोधित हो गया,“वे तीनों संत कैसे हो सकते हैं? मैंने सालों से किसी को भी संतत्व की पदवी के लिए अनुशंसित नहीं किया है! वे कौन हैं और कहां से आए हैं?”
लेकिन आम लोग उन तीनों के दर्शनों के लिए जाते रहे और चर्च में आनेवालों की तादाद कम होती गई.
अंततः आर्चबिशप ने यह तय किया कि वह उन तीनों को देखने के लिए जाएगा. वह नाव में बैठकर टापू की ओर गया. वे तीनों वहां मिल गए. वे बेहद साधारण अनपढ़ और निष्कपट देहातियों जैसे थे. दूसरी ओर, आर्चबिशप बहुत शक्तिशाली व्यक्ति था. रूस के ज़ार के बाद उस क्षेत्र का सबसे महत्वपूर्ण आदमी था वह. उन तीनों को देखकर वह खीझ उठा. “तुमें संत किसने बनाया?” उसने पूछा.
वे तीनों एक दूसरे का मुंह ताकने लगे. उनमें से एक ने कहा,“किसी ने नहीं. हम लोग ख़ुद को संत नहीं मानते. हम तो केवल साधारण मनुष्य हैं.”
“तो फिर तुम लोगों को देखने के लिए इतने सारे लोग क्यों आ रहे हैं?”
वे बोले,“यह तो आप उन्हीं से पूछिए.”
“क्या तुम लोगों को चर्च की आधिकारिक प्रार्थना आती है?” आर्चबिशप ने पूछा.
“नहीं. हम तो अनपढ़ हैं और वह प्रार्थना बहुत लंबी है. हम उसे याद नहीं कर सके.”
“तो फिर तुम लोग कौन सी प्रार्थना पढ़ते हो?”
उन तीनों ने एक-दूसरे की ओर देखा. “तुम बता दो,’’ एक ने कहा.
“तुम ही बता दो ना,’’वे आपस में कहते रहे.
आर्चबिशप यह सब देखसुनकर अपना आप खो बैठा. ‘इन लोगों को प्रार्थना करना भी नहीं आता! कैसे संत हैं ये?’ उसने मन में सोचा. वह बोला,“तुम लोगों में से कोई भी बता सकता है. जल्दी बताओ!”
वे बोले,“दरअसल हम आपके सामने बहुत ही साधारण व्यक्ति हैं. हम लोगों ने ख़ुद ही एक प्रार्थना बनाई है पर हमें यह पता नहीं था कि इस प्रार्थना को चर्च की मंजूरी मिलना ज़रूरी है. हमारी प्रार्थना बहुत साधारण है. हमें माफ़ कर दीजिए कि हम आपकी मंजूरी नहीं ले पाए. हम इतने संकोची हैं कि हम आ ही न सके.”
“हमारी प्रार्थना है-ईश्वर तीन है और हम भी तीन हैं, इसलिए हम प्रार्थना करते हैं,‘तुम तीन हो और हम तीन हैं, हम पर दया करो’ यही हमारी प्रार्थना है.”
आर्चबिशप बहुत क्रोधित हो गया,“ये प्रार्थना नहीं है! मैंने ऐसी प्रार्थना कभी नहीं सुनी!” फिर वह ज़ोरों से हंसने लगा.
वे बोले,“आप हमें सच्ची प्रार्थना करना सिखा दें. हम तो अब तक यही समझते थे कि हमारी प्रार्थना में कोई कमी नहीं है. ‘ईश्वर तीन हैं, और हम तीन हैं’ और भला क्या चाहिए? बस ईश्वर की कृपा ही तो चाहिए?’’
उनके अनुरोध पर आर्चबिशप ने उन्हें चर्च की आधिकारिक प्रार्थना बताई और उसे पढ़ने का तरीक़ा भी बताया. प्रार्थना काफ़ी लंबी थी और उसके ख़तम होते-होते उनमें से एक ने कहा,“हम शुरू का भाग भूल गए हैं.” फिर आर्चबिशप ने उन्हें दोबारा बताया. फिर वे आख़िरी का भाग भूल गए.
आर्चबिशप बहुत झुंझला गया और बोला,“तुम लोग किस तरह के आदमी हो? तुम एक छोटी सी प्रार्थना भी याद नहीं कर सकते?”
वे बोले,“माफ़ करें लेकिन हम लोग अनपढ़ हैं और हमारे लिए इसे याद करना थोड़ा मुश्क़िल है, इसमें बहुत बड़े-बड़े शब्द हैं. कृपया थोड़ा धीरज रखें. यदि आप इसे दो-तीन बार सुना देंगे तो शायद हम इसे याद कर लेंगे.” आर्चबिशप ने उन्हें तीन बार प्रार्थना सुना दी. वे बोले,“ठीक है, अबसे हम यही प्रार्थना करेंगे, हालांकि हो सकता है कि हम इसका कुछ हिस्सा कहना भूल जाएं पर हम पूरी कोशिश करेंगे”.
आर्चबिशप संतुष्ट था कि अब वह लोगों को जाकर बताएगा कि उसका पाला कैसे बेवकूफ़ों से पड़ा था. उसने मन में सोचा,‘अब लोगों को जाकर बताऊंगा कि वे जिन्हें संत कहते हैं उन्हें तो धर्म का क-ख-ग भी नहीं पता. और वे ऐसे जाहिलों के दर्शन करने जाते हैं!’ यही सोचते हुए वह नाव में जाकर बैठ गया. नाव चलने लगी और वह अभी झील में आधे रास्ते पर ही था कि उसे पीछे से उन तीनों की पुकार सुनाई दी. उसने मुड़कर देखा, वे तीनों पानी पर भागते हुए नाव की तरफ़ आ रहे थे! उसे अपनी आंखों पर यक़ीन नहीं हुआ! वे लोग पानी पर भागते हुए आए और नाव के पास पानी में खड़े हुए बोले,“माफ़ कीजिए, हमने आपको कष्ट दिया, कृपया चर्च की प्रार्थना एक बार और दोहरा दें, हम कुछ भूल गए हैं.’’
आर्चबिशप ने कहा,“तुम लोग अपनी प्रार्थना ही पढ़ो. मैंने तुम्हें जो कुछ भी बताया उसपर ध्यान मत दो. मुझे माफ़ कर दो, मैं बहुत दंभी हूं. मैं तुम्हारी सरलता और पवित्रता को छू भी नहीं सकता. जाओ, लौट जाओ.”
लेकिन वे अड़े रहे,“नहीं, ऐसा मत कहिए, आप इतनी दूर से हमारे लिए आए. बस एक बार और दोहरा दें, हम लोग भूलने लगे हैं पर इस बार कोशिश करेंगे कि इसे अच्छे से याद कर लें.”
लेकिन आर्चबिशप ने कहा,“नहीं भाइयों, मैं ख़ुद सारी ज़िंदगी अपनी प्रार्थना को पढ़ता रहा पर ईश्वर ने उसे कभी नहीं सुना. हम तो बाइबिल में ही यह पढ़ते थे कि ईसा मसीह पानी पर चल सकते थे पर हम भी उसपर शंका करते रहे. आज तुम्हें पानी पर चलते देखकर मुझे अब ईसा मसीह पर विश्वास हो चला है. तुम लोग लौट जाओ. तुम्हारी प्रार्थना संपूर्ण है. तुम्हें कुछ भी सीखने की ज़रूरत नहीं है.’’
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