इस दौर में जब से महिलाओं ने लेखन के क्षेत्र में अपनी उपस्थिति को पुरज़ोर तरीक़े से दर्ज कराना शुरू किया है, महिलाओं की संवेदनाओं और सोच से जुड़े कई पहलू खुल कर सामने आ रहे हैं. इनमें उनकी भावनाएं, उनकी छोटी-छोटी ख़ुशियां और दुख-दर्द सभी शामिल हैं. यदि आप भी इन पहलुओं को समझने का प्रयास करना चाहते हैं तो आपको कहानी संग्रह कोई ख़ुशबू उदास करती है को अपने इस प्रयास में शामिल ज़रूर करना चाहिए.
पुस्तक: कोई ख़ुशबू उदास करती है
विधा: कहानी संग्रह
लेखिका: नीलिमा शर्मा
प्रकाशक: शिवना प्रकाशन
मूल्य: रु 150/-
नीलिमा शर्मा के लिखे कहानी संग्रह को पढ़ते हुए जो सोच सबसे पहले दिमाग़ में आती है, वो ये है कि इन दिनों जब से महिलाओं ने लेखन के मोर्चे पर अपनी ज़ोरदार उपस्थिति दर्ज कराना शुरू किया है, महिलाओं की सोच से जुड़े अनगिनत पहलू सामने आ रहे हैं. इस संग्रह की कहानियों को पढ़ते हुए लगता है, जैसे ये कहानियां हमने अपने आसपास घटती देखी हों, इनके किरदार हमारे बीच से ही निकल आए हों.
कोई ख़ुशबू उदास करती है, इस संग्रह में कुल 11 कहानियां हैं, जो आपको अतीत और वर्तमान की महिलाओं से मिलवाती हुई, उनकी ख़ुशबुओं से सराबोर करती हुई हमारी इसी दुनिया के उस छोर पर ले चलती हैं, जहां सबकी नज़रों से दूर महिलाएं अपनी उदासियों और ख़ुशियों को छुपाए रखती हैं.
ये कहनियां हमें हमारे समाज की स्त्रियों के उस यथार्थ से मिलवाती हैं, जिनकी उदासियों को महसूस करने के बावजूद, हम बदलते समाज की गति से ही उनमें बदलाव आता देख सकते हैं. चाह कर भी स्त्री के पक्ष में इन बदलावों की गति को तेज़ नहीं कर सकते. क्योंकि कोई भी समाज किसी के भी पक्ष में रातोंरात नहीं बदल सकता. उसके बदलाव की जो गति है, हमें उसे स्वीकार करना होता है. भले ही इसमें हमारी ज़िंदगी चुक जाए.
संग्रह की पहली कहानी है टुकड़ा-टुकड़ा ज़िंदगी. यह कहानी हाल में आई कोरोना महामारी की पृष्ठभूमि पर एक तरुणी की इच्छाओं का ऐसा दस्तावेज़ है, जो हमें सोचने के कई संजीदा दृष्टिकोण देता है.
संग्रह की कहानी उत्सव हमारे समाज में महिलाओं और बच्चियों की सुरक्षा पर उनके आसपास, जान-पहचान के ही लोगों से उपजने वाली असुरक्षा को बयान करती है. इसे पढ़ कर शायद अधिकांश स्त्रियों को अपने साथ हुए ऐसे हादसे याद हो आएं, जो उनके साथ भी घटे हों. कहानी में सच्चाई झलकती है, लेकिन आज के समय में हमें अपनी बच्चियों को इस पीड़ा से नहीं गुज़रने देना है तो उन्हें ऐसी ज़्यादतियों को तुरंत सामने लाने की सीख देनी होगी, कहानी को पढ़ने के बाद यह भावना मन पर तारी हो जाती है.
संग्रह का नाम जिस कहानी पर रखा गया है, वह कहानी यानी कोई ख़ुशबू उदास करती है, धीमे-धीमे उस सच्चाई से मिलवाती है, जिसके बारे में जान कर पाठक को लगता है कि काश… समय में पीछे जाया जा सकता और किसी ख़ुशबू को यूं उदास होने से बचाया जा सकता. कहानी मन को छूती भी है और उदास भी करती है कि हम सभी को मिले इस एक जीवन में हम कितनी महत्वपूर्ण बातों को भ्रम, कयास या फिर अहं की बलि चढ़ जाने देते हैं.
संग्रह की अंतिम कहानी उधार प्रेम की कैंची है, पुराने समय में लिए चलती है. न जाने कब से हम महिलाएं अपने जीवन के पुरुषों- पिता, भाई और आगे पति की इच्छाओं के चलते अपनी ख़ुशियों को क़ुर्बान कर देते हैं. यह कहानी, इस कहानी के प्रेमी-जोड़े के न मिल पाने की कसक और पाठक की आंखों में नमी के साथ ख़त्म होती है. लेकिन पाठक के ज़हन में ये कहानी लंबे समय तक बसी रहती है.
संग्रह की सभी कहानियां पठनीय हैं और उनमें बसी पंजाब की ख़ुशबू बार-बार महसूस होती है. इस कहानी संग्रह में कई आम सी महिलाओं की, जो अपने घर की सबसे ख़ास होने के बावजूद अकेलेपन और उदासी को अपने अंतस के एक कोने में महसूस करती ही रहती हैं, आवाज़ें दर्ज हैं. यूं तो शिवना प्रकाशन से प्रकाशित नीलिमा शर्मा का यह कहानी संग्रह महिलाओं के जीवन की कई ख़ुशबुओं को बयान करता है, पर इसमें अपने नाम के अनुरूप उनके मर्मों को छूते हुए उदास करने वाली ख़ुशबू ज़्यादा गहरी है.