साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता दिवंगत कवि वीरेन डंगवाल की कविताएं बहुत ही सहजता और सरलता से बड़ी बातें कह जाने के लिए जानी जाती हैं. उनकी कविता तोप से वे लोग सबक सीख ले सकते हैं, जिन्हें गुमान है कि उनके सामने किसी और की औकात नहीं है.
कंपनी बाग़ के मुहाने पर
धर रखी गई है यह 1857 की तोप
इसकी होती है बड़ी सम्हाल, विरासत में मिले
कंपनी बाग़ की तरह
साल में चमकाई जाती है दो बार
सुबह-शाम कंपनी बाग़ में आते हैं बहुत
उन्हें बताती है यह तोप
कि मैं बड़ी जबर
उड़ा दिए थे मैंने
अच्छे-अच्छे सूरमाओं के धज्जे
अपने ज़माने में
अब तो बहरहाल
छोटे लड़कों की घुड़सवारी से अगर यह फ़ारिग हो
तो उसके ऊपर बैठकर
चिड़ियां ही अकसर करती हैं गपशप
कभी-कभी शैतानी में वे इसके भीतर भी घुस जाती हैं
खास कर गौरैयें
वे बताती हैं कि दरअसल कितनी भी बड़ी हो तोप
एक दिन तो होना ही है उसका मुंह बंद
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