समकालीन उर्दू के जाने-माने शायर हैं शकील जमाली. उनकी नज़्म ‘उलटे सीधे सपने पाले बैठे हैं’ समाज के विरोधाभासों और उसकी सच्चाई को बयां करती है.
उलटे सीधे सपने पाले बैठे हैं
सब पानी में कांटा डाले बैठे हैं
इक बीमार वसीयत करने वाला है
रिश्ते नाते जीभ निकाले बैठे हैं
साहबजादा पिछली रात से ग़ायब है
घर के अंदर रिश्तेवाले बैठे हैं
आज शिकारी की झोली भर जाएगी
आज परिंदे गर्दन डाले बैठे हैं
अभी न जाने कितना हंसना रोना है
अभी तो हमसे पहले वाले बैठे हैं
जिनको दावा था मेहमान-नवाज़ी का
दरवाज़े पर ताला डाले बैठे हैं
अंदर डोरी टूट रही है सांसों की
बाहर बीमा करने वाले बैठे हैं
धागे पर लटकी है इज़्ज़त लोगों की
सब अपनी दस्तार संभाले बैठे हैं
कवि: शकील जमाली
कविता संग्रह: काग़ज़ पर आसमान
प्रकाशक: एनीबुक
Illustration: Pinterest