बिना सोचे-समझे बोलनेवालों और ख़ुद को बहुत कुछ समझनेवालों के लिए अपनी आज़माइश करने के पैमाने तय करती दिवंगत राहत इंदौरी की यह ग़ज़ल बेहद लोकप्रिय है.
उंगलियां यूं न सब पर उठाया करो
ख़र्च करने से पहले कमाया करो
ज़िन्दगी क्या है ख़ुद ही समझ जाओगे
बारिशों में पतंगें उड़ाया करो
दोस्तों से मुलाक़ात के नाम पर
नीम की पत्तियों को चबाया करो
शाम के बाद जब तुम सहर देख लो
कुछ फ़क़ीरों को खाना खिलाया करो
अपने सीने में दो गज़ ज़मीं बांधकर
आसमानों का ज़र्फ़ आज़माया करो
चांद सूरज कहां, अपनी मंज़िल कहां
ऐसे वैसों को मुंह मत लगाया करो
Illustration: Pinterest