रचनात्मक विद्रोह की आवाज़ बुलंद करनेवाले कवि शिव मंगल सिंह ‘सुमन’ की कविता ‘वरदान मांगूंगा नहीं’ स्वाभिमान से जीने और सुख-दुख में समभाव रखने तथा कर्तव्य पथ पर डटे रहने के लिए प्रेरित करती है.
यह हार एक विराम है
जीवन महा-संग्राम है
तिल-तिल मिटूंगा, पर दया की भीख मैं लूंगा नहीं
वरदान मांगूंगा नहीं
स्मृति सुखद प्रहरों के लिए
अपने खंडहरों के लिए
यह जान लो मैं विश्व की संपत्ति चाहूंगा नहीं
वरदान मांगूंगा नहीं
क्या हार में क्या जीत में
किंचित नहीं भयभीत मैं
संघर्ष पथ पर जो मिले, यह भी सही वह भी सही
वरदान मांगूंगा नहीं
लघुता न अब मेरी छुओ
तुम ही महान बने रहो
अपने हृदय की वेदना मैं व्यर्थ त्यागूंगा नहीं
वरदान मांगूंगा नहीं
चाहे हृदय को ताप दो
चाहे मुझे अभिशाप दो
कुछ भी करो कर्तव्य पथ से किंतु भागूंगा नहीं
वरदान मांगूंगा नहीं
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