देश के मेहनतकश वर्ग और गांधी का नाम लेकर नेतागिरी करनेवालों की ज़िंदगी में कितना फ़र्क़ है, अदम गोंडवी यह कविता बिना लाग-लपेट के बताती है.
वो जिसके हाथ में छाले हैं पैरों में बिवाई है
उसी के दम से रौनक आपके बंगले में आई है
इधर एक दिन की आमदनी का औसत है चवन्नी का
उधर लाखों में गांधी जी के चेलों की कमाई है
कोई भी सिरफिरा धमका के जब चाहे जिना कर ले
हमारा मुल्क इस माने में बुधुआ की लुगाई है
रोटी कितनी महंगी है ये वो औरत बताएगी
जिसने जिस्म गिरवी रख के ये क़ीमत चुकाई है
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