यदि आपके, आपके पति और परिजनों के राजनीतिक विचार न मिलते हों तो घर को राजनीति का मैदान न बना लें, बल्कि इससे उबरने के लिए एक्सपर्ट्स की राय पर अमल करें.
क्यों होती है विचारधाराओं की लड़ाई?
राजनीति एक ऐसी चीज़ है, जो दोस्तों और परिवार के बीच झगड़े का कारण बनती है. किसी राजनीतिक दल या व्यक्ति से सीधा कोई लाभ न मिलने के बावजूद लोग किसी ख़ास पार्टी वा नेता के लिए लड़ने-कटने तक को तैयार हो जाते हैं. जहां दोस्तों में बुरी लड़ाई तक हो जाती है, वहीं पति-पत्नी के बीच अबोला वाली स्थिति तक बन जाती है. आज से एक-दो पीढ़ी पहले तक कम से कम घर-घर में राजनैतिक विचारधारा की लड़ाई उतनी तीव्र नहीं होती थी, क्योंकि तब घर के सभी वोट परिवार के मुखिया के फ़रमान के अनुसार डाले जाते थे. पर अब ही कोई अपना विचार खुलकर व्यक्त करता है, अपनी पसंद-नापसंद को ज़ाहिर करता है. यही कारण है कि विचारधारा की लड़ाई अब घरों तक पहुंच गई है. अगर आपके भी साथी के साथ राजनैतिक मतभेद हैं तो उससे यूं निपटें.
आपको असहमत होने के लिए सहमत होना पड़ेगा.
यदि आप पहले से ही जानती हैं कि आपके साथी का राजनैतिक झुकाव किस ओर है तो आपके रिश्ते में स्थिरता बनी रहेगी, लेकिन यदि वो अचानक आपके सामने अपनी विचारधारा का खुलासा करते हैं तो समस्या हो सकती है. मैं एक ऐसे व्यक्ति को जानता हूं, जिनका किसी राजनैतिक दल से संबंध नहीं था, पर उनकी पत्नी एक राजनैतिक दल के लिए काम करती थीं. सारी चीज़ें ठीक चल रही थीं. लेकिन जब उनकी पत्नी ने एक नए राजनैतिक दल के लिए काम करना शुरू किया तो समस्या आ गई, क्योंकि उनके पति उस पार्टी की कट्टर नीतियों के ख़िलाफ़ थे. फिर उन दोनों ने जल्द ही इस मुद्दे का हल निकाल लिया. ऐसे जोड़ों को कुछ मुद्दों पर असहमत रहने के लिए सहमति बना लेनी चाहिए और उन मुद्दों को वैसा ही छोड़ देना चाहिए.
राजनैतिक या धार्मिक बातें सार्वजनिक जगहों पर कभी न करें
किसी को स्वीकार करने का मतलब है, उसकी विचारधाराओं को स्वीकार करना. लेकिन कुछ ही जोड़े इस बात को समझ पाते हैं. अपने राजनैतिक विचारों पर चर्चा करते समय वे बहस में फंस जाते हैं. और वे ये महसूस ही नहीं कर पाते कि वे इस राजनैतिक चर्चा को व्यक्तिगत विचारधारा मान बैठते हैं. फिर स्थितियां बिगड़ने लगती हैं. इस विषय पर दृढ़ विचार रखना बुरा नहीं है, लेकिन अपने ही विचार की पुरज़ोर पैरवी करने से झगड़े की शुरुआत हो सकती है. हमारे देश में तो राजनीति धर्म के एक्स्टेंशन की तरह है. अत: इस पर हुई तीखी बहस भयावह हो सकती है.
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