सेक्स का ज़्यादा आनंद कौन उठता है-महिलाएं या पुरुष? यह सेक्स से जुड़ा हुआ एक ऐसा सवाल है, जिसका जवाब प्राचीन समय से आज तक सभी पाना चाहते हैं, फिर चाहे वो दुनिया के किसी भी हिस्से के बाशिंदे हों. आज इस सवाल का जवाब आपको मिल ही जाएगा. वीवॉक्स के संस्थापक संगीत सेबैस्टियन बड़े ही क़ाबिल एक्स्पर्ट्स से पूछ रहे हैं इस सवाल का जवाब. तो चलिए जान लेते हैं…
शायद आपको मालूम होगा कि एक बार ग्रीक देवता ज़्यूस और उनकी पत्नी हेरा के बीच में इस बात पर विवाद हुआ कि कौन सेक्स का ज़्यादा आनंद उठाता है: महिलाएं या पुरुष? दोनों का अलग-अलग मत था. ज़्यूस का कहना था महिलाएं ज़्यादा आनंद लेती हैं और हेरा का मत था कि पुरुष सेक्स का ज़्यादा आनंद लेते हैं.
दोनों अपनी बात पर अड़े हुए थे तो मध्यस्थता के लिए उन्होंने टाइरीसियस को चुना, जो एक ऐसे पैगंबर थे, जिन्होंने सेक्स का अनुभव महिला और पुरुष दोनों के रूप में लिया था. टाइरीसियस ने इस सवाल के जवाब में ज़्यूस का पक्ष लेते हुए कहा कि महिलाएं ही सेक्स का ज़्यादा आनंद लेती हैं. हेरा नाराज़ हो गईं और उन्होंने टाइरीसिय को अंधे हो जाने का श्राप दे दिया.
बिल्कुल इसी तरह की एक कहानी महाभारत में भी मिलती है. यह प्राचीन राजा भंगस्वान की कथा है, जिसे देवराज इंद्र ने महिला बन जाने का श्राप दे दिया था. इस श्राप की वजह से उसने एक पुरुष और एक महिला दोनों की ही तरह सेक्स का अनुभव लिया था. इस कहानी के मुताबिक़, जब इंद्र ने भंगस्वान को दोबारा पुरुष बनाने का प्रस्ताव दिया तो उसने इनकार कर दिया. इसकी वजह उसने यह बताई कि बतौर एक महिला उसे पुरुष होने से कहीं ज़्यादा ज़्यादा सेक्शुअल आनंद मिला है.
जबकि इस कथा के बारे में कुछ विद्वान यह मानते हैं कि भंगस्वान ने स्त्री रूप से पुरुष रूप में आने से इसलिए इनकार कर दिया था कि स्त्री रूप से उसके कई बच्चे हुए. और मां होने की वजह से, अपने मातृत्व के चलते उसने पुरुष रूप लेने से इनकार कर दिया था.
भले ही इन पौराणिक कथाओं में यह बात कही गई हो कि ये महिलाएं ही हैं, जो सेक्स का ज़्यादा आनंद उठाती हैं, लेकिन सच्चाई ये है कि दुनियाभर में किए गए कई अध्ययनों के अनुसार यह बात भी सामने आई है कि पुरुषों के सेक्स पार्टनर्स महिलाओं की तुलना में कम से कम दोगुने होते हैं.
इसका सीधा मतलब यह है कि यदि आप सड़क पर चलती हुई किसी महिला से (ज़ाहिर तौर पर वह भारतीय महिला न हो) यह पूछें कि आपने जीवनभर में कितने पुरुषों के साथ सेक्शुअल संबंध बनाए हैं? तब वह जो भी उत्तर देगी वह संख्या, इसी सवाल के जवाब में वहां के किसी पुरुष द्वारा बताई गई संख्या से कम ही होगी.
गणितीय रूप से इस बात की कोई तुक नहीं बनती. क्योंकि यदि पुरुष वास्तव में महिलाओं के साथ ही (जैसा कि वे दावा करते हैं!) सेक्शुअल संबंध बनाते हैं तो फिर यह संख्या लगभग समान ही होनी चाहिए. तब भी किसी रहस्य की तरह यह अंतर कैसे आता है? और इसी विसंगति से यह लोकप्रिय धारणा बन गई है कि पुरुषों की कामेच्छा महिलाओं की तुलना में अधिक होती है.
इस विसंगति का एक कारण तमाम प्रगति के बाद भी लैंगिक रिश्तों और सेक्शुअल नज़रिए के प्रति महिलाओं का दृष्टिकोण भी हो सकता है. आज भी महिलाएं सेक्स के प्रति उस रूढ़िवादी नज़रिए का शिकार हैं, जो सदियों की सांस्कृतिक कंडिशनिंग और सेक्स के प्रति दोहरे मानदंड के चलते उनके भीतर कहीं गहरे मौजूद है. यही वजह है कि आज भी अधिकतर महिलाएं कैशुअल सेक्स या वन नाइट स्टैंड्स जैसी बातों (यदि वे इनमें संलिप्त रही हों) को सिरे से खारिज कर देती हैं. अत: उनके पार्टनर्स की संख्या कम रही आती है.
इस अंतर के बारे में और जानने के लिए मैंने डॉक्टर लॉरेंस आई सैंक से बात की, जो हार्वड से प्रशिक्षत हैं और अमेरिका के ग्रेट वॉशिंगटन में कॉग्निटिव थेरैपी सेंटंर के को-डायरेक्टर हैं. वे वीवॉक्स के फ़ाउंडिंग मेम्बर भी हैं.
हमारे एक्स्पर्ट डॉक्टर लॉरेंस आई सैंक का कहना है,‘‘सच्चाई यह है कि महिलाओं और पुरुषों के सेक्शुअल पार्टनर्स की संख्या में कोई ज़्यादा अंतर नहीं होता. यह विसंगति या यह अंतर सिर्फ़ इसलिए नज़र आता है, क्योंकि महिलाएं और पुरुष अपने सेक्शुअल पार्टनर्स का लेखा-जोखा अलग ढंग से रखते हैं. पुरुष जहां हर चीज़ की इंतहां को तवज्जो देते हैं, वहीं महिलाएं केवल संख्या पर ध्यान देती हैं. यह भी संभव है कि महिलाएं पेड सेक्स पार्टनर्स को अपने सेक्स पार्टनर्स की संख्या में जगह न देती हों, जिसकी वजह से यह अंतर आ जाता हो. हाल ही में जर्नल ऑफ़ सेक्स रिसर्च में प्रकाशित हुई एक स्टडी में इस बात का खुलासा किया गया है.
‘‘जहां तक बात कामेच्छा की है तो महिलाओं और पुरुषों में यह बराबर ही होती है. लोग पुरुषों की कामेच्छा की तुलना उनके किशोरवय यानी टीनएज के समय से करते हैं, जब टेस्टोस्टेरॉन का स्तर अपने उच्चतम स्तर पर होता है. दुर्भाग्य से यही छवि लोगों के बीच लोकप्रिय है और यह तब भी लोगों की कल्पना पर चस्पां रहती है, जबकि पुरुष उस उम्र से आगे निकल जाता है. और सच तो ये है कि पुरुषों की कामेच्छा में नौकरी, पारिवारिक ज़िम्मेदारियों और पिता बनने के बाद बहुत सारे परिवर्तन आते रहते हैं.
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट