• होम पेज
  • टीम अफ़लातून
No Result
View All Result
डोनेट
ओए अफ़लातून
  • सुर्ख़ियों में
    • ख़बरें
    • चेहरे
    • नज़रिया
  • हेल्थ
    • डायट
    • फ़िटनेस
    • मेंटल हेल्थ
  • रिलेशनशिप
    • पैरेंटिंग
    • प्यार-परिवार
    • एक्सपर्ट सलाह
  • बुक क्लब
    • क्लासिक कहानियां
    • नई कहानियां
    • कविताएं
    • समीक्षा
  • लाइफ़स्टाइल
    • करियर-मनी
    • ट्रैवल
    • होम डेकोर-अप्लाएंसेस
    • धर्म
  • ज़ायका
    • रेसिपी
    • फ़ूड प्लस
    • न्यूज़-रिव्यूज़
  • ओए हीरो
    • मुलाक़ात
    • शख़्सियत
    • मेरी डायरी
  • ब्यूटी
    • हेयर-स्किन
    • मेकअप मंत्र
    • ब्यूटी न्यूज़
  • फ़ैशन
    • न्यू ट्रेंड्स
    • स्टाइल टिप्स
    • फ़ैशन न्यूज़
  • ओए एंटरटेन्मेंट
    • न्यूज़
    • रिव्यूज़
    • इंटरव्यूज़
    • फ़ीचर
  • वीडियो-पॉडकास्ट
  • लेखक
ओए अफ़लातून
Home ज़रूर पढ़ें

स्कूली पढ़ाई की छह समस्याएं, इसलिए हम बच्चों को पूरी तरह स्कूलों के भरोसे नहीं छोड़ सकते

डॉ अबरार मुल्तानी by डॉ अबरार मुल्तानी
March 21, 2021
in ज़रूर पढ़ें, नज़रिया, सुर्ख़ियों में
A A
स्कूली पढ़ाई की छह समस्याएं, इसलिए हम बच्चों को पूरी तरह स्कूलों के भरोसे नहीं छोड़ सकते
Share on FacebookShare on Twitter

आज के पैरेंट्स सबसे अधिक ख़र्च किस पर करते हैं? बेशक बच्चों की पढ़ाई, ख़ासकर उनकी स्कूली पढ़ाई पर. पर क्या बच्चों की शिक्षा को सिर्फ़ और सिर्फ़ स्कूलों के भरोसे छोड़ा जा सकता है? जानेमाने चिकित्सक, लेखक और विचारक डॉ अबरार मुल्तानी बता रहे हैं, क्यों हमें बच्चों के ऑलराउंड विकास के लिए पूरी तरह स्कूलों पर निर्भर नहीं होना चाहिए.

मुकेश अंबानी ने एक बार बताया था कि उनके पिता धीरूभाई अंबानी हमेशा से चाहते थे कि उनके बच्चे नए अनुभव, गतिविधियां और विचार सीखें. उन्हीं के शब्दों में,‘मुझे याद है कि मेरे पिता कभी भी हमारे स्कूल में नहीं आए, एक बार भी नहीं. यद्यपि वह हमारे ऑल राउंड विकास में ज़्यादा दिलचस्पी लेते थे. ज़रा सोचिए. साठ के दशक में उन्होंने अख़बार में शिक्षक के लिए एक विज्ञापन दिया था, जिसका मुख्य कार्य था गैर-अकादमिक शिक्षण प्रदान करना; उन्हें बच्चों को सामान्य ज्ञान देना था. उन्होंने अनेक लोगों का साक्षात्कार लिया और उनमें से महेंद्रभाई व्यास को चुना, जो न्यू एरा स्कूल में पढ़ाते थे.’ महेंद्रभाई हर शाम उनके घर आते और 6.30 या 7 बजे तक ठहरते. उन्हें बच्चों के सामान्य ज्ञान पर ध्यान देना था. वे हॉकी, फ़ुटबॉल और भिन्न प्रकार के खेल खेलते, कूपरेज में मैच देखते, बसों और रेलों में घूमकर बॉम्बे के विभिन्न भागों को देखा करते. वे हर साल 10-15 दिनों के लिए किसी गांव में कैंम्पिंग पर जाते.
देश के सबसे धनी व्यक्ति मुकेश अंबानी का उपरोक्त संस्मरण हमारी शिक्षा प्रणाली की पोल खोलता है. हमारे स्कूल वास्तव में भविष्य के कर्मचारी बना रहे हैं. यह बात धीरूभाई अंबानी अच्छे से जानते थे इसलिए उन्होंने बच्चों की शिक्षा के लिए स्कूलों पर ज़्यादा भरोसा नहीं किया और अपने बच्चों के ऑलराउंड विकास के लिए अलग से शिक्षक की नियुक्ति की और परिणाम हमारे सामने है-देश के सबसे धनी व्यक्ति उन्हीं के बेटे हैं-मुकेश और अनिल अंबानी.

पहली समस्या: स्कूल बच्चों को बेहतरीन कर्मचारी बनने के लिए ट्रेन करते हैं
एक बात यह भी स्पष्ट है कि अमीर या लीडर अपने बच्चों को अलग नज़रिए से शिक्षा देते हैं और आम व्यक्ति सबकुछ स्कूलों पर ही छोड़ देते हैं. वे ख़ुश होते हैं जब उनका बच्चा अपनी यूनिफ़ॉर्म साफ़ रखता है, समय पर स्कूल जाता है और आते ही अपना होम वर्क करता है और हमेशा अपने शिक्षकों को ख़ुश रखता है. रुकिए, ज़रा ग़ौर कीजिए क्या यही गुण एक अच्छे कर्मचारी के भी नहीं हैं? हां, एक अच्छे कर्मचारी को अनुशासित, वक़्त का पाबंद और अपने बॉस को ख़ुश रखने वाला होना चाहिए. लीडरशिप या महानता इन सब नियमों को कभी-कभी अवश्य तोड़ेगी. माफ़ कीजिए मैं उद्दण्डता का हिमायती नहीं हूं, लेकिन थोड़ा बाग़ी और लीक से हटकर चलना ही लीडरशिप का एक प्रमुख गुण है. तो हमारे स्कूलों का सबसे बड़ा दोष है कि वह हमारे बच्चों को भविष्य का कर्मचारी बनाने पर आमादा है.

इन्हें भीपढ़ें

Tebhaga-farmer-movement

महिला किसान (तीसरी कड़ी): तेभागा किसान आंदोलन, जिसमें महिलाओं ने जान फूंक दी थी

September 9, 2023
ये कैसा दौर है: शिल्पा शर्मा की कविता

ये कैसा दौर है: शिल्पा शर्मा की कविता

September 8, 2023
Safed-sadak

सफ़ेद सड़क: कहानी दो मुल्कों, दो नज़रियों की (लेखक: कमलेश्वर)

September 7, 2023
Dilip-Kumar_Poem

कभी-कभार: दिलीप कुमार की कविता

September 7, 2023

दूसरी समस्या: व्यावहारिक ज्ञान पढ़ाने के मामले में फिसड्डी हैं
मेरी बेटी को साइकिल चलाना सीखना था. उसने मुझसे पूछा कि पापा क्या साइकिल चलाना हमें स्कूल में सिखाएंगे? क्योंकि यह तो बहुत ज़रूरी है पापा, इससे मैं जल्दी से कहीं भी जा सकती हूं और इसी से मैं बड़ी होकर स्कूटी भी चलाना सीखूंगी. मैंने कहा हां बेटा, यह वाक़ई ज़रूरी है इसे तो स्कूलों को सिखाना ही चाहिए. मेरी पत्नी ने बात काटते हुए कहा कि रहने दो स्कूल साइकिल सिखाने में एक महीने तक तो साइकिल चलाने की थ्योरी बताएंगे, साइकिल के पार्ट्स के नाम और उसके पीछे लगने वाले कठिन फ़िज़िक्स के नियम भी पढ़ाने लगेंगे, मतलब 5 घण्टों में सीखी जा सकने वाली साइकिल को 50 दिन का उबाऊ कोर्स बना देगा स्कूल. बात सही है कि हमारे स्कूल ज़िंदगी के व्यावहारिक ज्ञान को नहीं सिखाते. वे नहीं बताते कि ज़िंदगी के छोटे-छोटे और महत्वपूर्ण कार्य कैसे किए जाएं. वे व्यावहारिक ज्ञान को भी बोझिल और उबाऊ तरीक़े से पढ़ाते हैं. तो हमारी स्कूलों का दूसरा बड़ा दोष है कि वे व्यावहारिक ज्ञान को नहीं पढ़ाते.

तीसरी समस्या: भविष्य के ट्रेंड को नहीं आंक पाते
हमारे बच्चों को शुरुआत में शिक्षक अच्छी हैंडराइटिंग के लिए दबाव बनाते हैं और इसमें उनके शुरुआती महत्वपूर्ण वर्ष बर्बाद हो जाते हैं, जबकि आज के समय में आपकी हैंड राइटिंग से आपके करियर पर कोई ख़ास प्रभाव नहीं पड़ता. पेन-पेपर लगभग ख़त्म होते जा रहे है. मोबाइल, कम्प्यूटर, लैपटॉप पर सबकी राइटिंग एक जैसी ही दिखती है. जब आप यह लेख पढ़ रहे होंगे तो आपको भी मेरी वास्तविक राइटिंग दिखाई नहीं दे रही होगी, जो वास्तव में बहुत ख़राब है लेकिन मेरे करियर में यह कभी रुकावट नहीं बनी तो इस उदाहरण से मेरा यह बताना लक्ष्य है कि हमारे स्कूल या हमारी शिक्षा प्रणाली भविष्य के अवसरों एवं ट्रेंड को आंकने में असफल है. हमारे स्कूलों की तीसरी बड़ी कमी यही है.

चौथी समस्या: अक्सर बच्चों की छुपी प्रतिभा को नहीं समझ पाते
थॉमस एल्वा एडिसन प्राइमरी स्कूल में पढ़ते थे. एक दिन स्कूल से घर आए और मां को एक काग़ज़ देकर कहा, टीचर ने दिया है. उस काग़ज़ को पढ़कर मां की आंखों में आंसू आ गए. एडिसन ने पूछा क्या लिखा है? आंसू पोंछकर मां ने कहा,‘इसमें लिखा है-आपका बच्चा जीनियस है. हमारा स्कूल छोटे स्तर का है और शिक्षक बहुत प्रशिक्षित नहीं हैं, इसे आप स्वयं शिक्षा दें.’
कई वर्षों बाद मां गुज़र गई. तब तक एडिसन प्रसिद्ध वैज्ञानिक बन चुके थे. एक दिन एडिसन को अलमारी के कोने में एक काग़ज़ का टुकड़ा मिला, उन्होंने उत्सुकतावश उसे खोलकर पढ़ा, ये वही काग़ज़ था, जो टीचर ने दिया था जिसमें लिखा था,‘आपका बच्चा बौद्धिक तौर पर कमज़ोर है, उसे स्कूल न भेजें.’
एडिसन घंटों रोते रहे….फिर अपनी डायरी में लिखा,‘एक महान मां ने बौद्धिक तौर पर कमज़ोर बच्चे को सदी का महान वैज्ञानिक बना दिया.’
महान थॉमस एल्वा का यह उदाहरण बताता है कि हमारे स्कूल हमारे अधिकांश बच्चों की महान छुपी हुई प्रतिभा को नहीं समझ पाते और जब समझेंगे ही नहीं तो उसे निखारेंगे कहां से. चौथी बड़ी कमी हमारे स्कूलों की यही है.

पांचवीं समस्या: रिश्ते निभाना नहीं सिखा पाते
हमारे स्कूल हमारे बच्चों को पारिवारिक रिश्ते निभाना बिल्कुल नहीं सिखाते. फौरी तौर पर मां-बाप का सम्मान सिखाकर अपने फ़र्ज़ की इतिश्री कर लेते है. जीवन में हमारे परिवार से रिश्ते अति महत्वपूर्ण हैं सफलतापूर्वक एवं ख़ुशहाल जीवन के लिए. पति-पत्नी के हमारे रिश्तों के बारे में हम विश्व इतिहास के शिखर पर हैं. हमारे स्कूल बच्चों को कुछ नहीं सिखाते शायद इसीलिए तलाक़ के मामले में हमारे रिश्ते ख़राब हो रहे हैं और हमारा जीवन नारकीय हो रहा है लेकिन स्कूल इन सब से बेफि़क्र हैं. पारिवारिक रिश्तों का महत्व सिखाए बग़ैर हमारी सारी शिक्षाएं व्यर्थ हैं.

छठी समस्या: बच्चों को नहीं बताते कि असफल होने पर उन्हें क्या करना है?
स्कूल असफलताओं या समस्याओं से लड़ना नहीं सिखाते. जब हमारे बच्चे जीवन में असफल होते हैं तो टूट जाते हैं क्योंकि उन्हें इस बारे में कुछ पता ही नहीं होता कि इससे कैसे निपटा जाए. उनका कोमल हृदय इस नाकामी से टूट जाता है और यही वजह है कि आत्महत्या आज के दौर की सबसे बड़ी क़ातिल बनकर उभरी है और इस क़त्ल में हमारे स्कूल बराबर के सहयोगी हैं. तो छठी मुख्य ग़लती हमारे स्कूलों की यह है कि ये बच्चों को जीवन की असफलताओं का सामना करना नहीं सिखाते हैं.

उपरोक्त प्रमुख छः समस्याएं हैं हमारे स्कूलों के साथ जो मैंने आपके सामने रखी हैं. अब आप क्या करें? इन छः समस्याओं के समाधान के लिए आप अब भी स्कूलों से उम्मीद लगाएं है तो शायद आप भी उन्हीं भोले-भाले करोड़ों में से हैं, जिन्होंने अपने बच्चों का पूरा भविष्य स्कूलों के भरोसे छोड़ दिया है. आप अपने बच्चों की इन छः समस्याओं से लड़ने के लिए अपने स्तर पर समाधान करें, इसके लिए आप पेशेवरों की मदद भी ले सकते हैं. यदि आप पॉलिसी मेकर हैं तो फिर इन समस्याओं के निराकरण के लिए नीतियां बनाएं ओर देश का भविष्य निखारें. शुरुआत ख़ुद से ही करें… अपने मासूम बच्चों से कहें बेटा तुम्हें कर्मचारी नहीं लीडर बनना है, महान बनना है, सबके लिए आदर्श बनना है. अगर आपने ऐसा अपने बच्चे से कह दिया है तो फिर आप लीक से हट चुके हैं, अब बस इस रास्ते पर चले पड़ें.

Photo Credit: Yogendra Singh/Unsplash.com
Note: Photograph is used for representation purpose only

Tags: Child’s developmentDr. Abrar MultaniImportance of SchoolsNazariyaNew perspectiveOye AflatoonParentingYour viewआपकी रायओए अफलातूनडॉ अबरार मुल्तानी के लेखनज़रियानया नज़रिया
डॉ अबरार मुल्तानी

डॉ अबरार मुल्तानी

डॉ. अबरार मुल्तानी एक प्रख्यात चिकित्सक और लेखक हैं. उन्हें हज़ारों जटिल एवं जीर्ण रोगियों के उपचार का अनुभव प्राप्त है. आयुर्वेद का प्रचार-प्रसार करने में वे विश्व में एक अग्रणी नाम हैं. वे हिजामा थैरेपी को प्रचलित करने में भी अग्रज हैं. वे ‘इंक्रेडिबल आयुर्वेदा’ के संस्थापक तथा ‘स्माइलिंग हार्ट्स’ नामक संस्था के प्रेसिडेंट हैं. वे देश के पहले आनंद मंत्रालय की गवर्निंग कमेटी के सदस्य भी रहे हैं. मन के लिए अमृत की बूंदें, बीमारियां हारेंगी, 5 पिल्स डिप्रेशन एवं स्ट्रेस से मुक्ति के लिए और क्यों अलग है स्त्री पुरुष का प्रेम? उनकी बेस्टसेलर पुस्तकें हैं. आयुर्वेद चिकित्सकों के लिए लिखी उनकी पुस्तकें प्रैक्टिकल प्रिस्क्राइबर और अल हिजामा भी अपनी श्रेणी की बेस्ट सेलर हैं. वे फ्रीलांसर कॉलमिस्ट भी हैं. उन्होंने पंडित खुशीलाल शर्मा आयुर्वेदिक महाविद्यालय से आयुर्वेद में ग्रैजुएशन किया है. वे भोपाल में अपनी मेडिकल प्रैक्टिस करते हैं. Contact: 9907001192/ 7869116098

Related Posts

महिला किसान (दूसरी कड़ी): कृषि का नारीवादी सिद्धांत, जो ला सकता महिला किसानों के अच्छे दिन
ज़रूर पढ़ें

महिला किसान (दूसरी कड़ी): कृषि का नारीवादी सिद्धांत, जो ला सकता महिला किसानों के अच्छे दिन

September 7, 2023
Women-farmers-of-India
ज़रूर पढ़ें

महिला किसान (पहली कड़ी): खेती-किसानी में कितना योगदान है अदृश्य किसानों का?

September 6, 2023
पुस्तक आलोचना के गुर सीखें
करियर-मनी

पुस्तक आलोचना के गुर सीखें

September 5, 2023

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Facebook Twitter Instagram Youtube
ओए अफ़लातून

हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.

संपर्क

ईमेल: [email protected]
फ़ोन: +91 9967974469
+91 9967638520
  • About
  • Privacy Policy
  • Terms

© 2022 Oyeaflatoon - Managed & Powered by Zwantum.

No Result
View All Result
  • सुर्ख़ियों में
    • ख़बरें
    • चेहरे
    • नज़रिया
  • हेल्थ
    • डायट
    • फ़िटनेस
    • मेंटल हेल्थ
  • रिलेशनशिप
    • पैरेंटिंग
    • प्यार-परिवार
    • एक्सपर्ट सलाह
  • बुक क्लब
    • क्लासिक कहानियां
    • नई कहानियां
    • कविताएं
    • समीक्षा
  • लाइफ़स्टाइल
    • करियर-मनी
    • ट्रैवल
    • होम डेकोर-अप्लाएंसेस
    • धर्म
  • ज़ायका
    • रेसिपी
    • फ़ूड प्लस
    • न्यूज़-रिव्यूज़
  • ओए हीरो
    • मुलाक़ात
    • शख़्सियत
    • मेरी डायरी
  • ब्यूटी
    • हेयर-स्किन
    • मेकअप मंत्र
    • ब्यूटी न्यूज़
  • फ़ैशन
    • न्यू ट्रेंड्स
    • स्टाइल टिप्स
    • फ़ैशन न्यूज़
  • ओए एंटरटेन्मेंट
    • न्यूज़
    • रिव्यूज़
    • इंटरव्यूज़
    • फ़ीचर
  • वीडियो-पॉडकास्ट
  • लेखक

© 2022 Oyeaflatoon - Managed & Powered by Zwantum.

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist