रंगमंच यानी थिएटर को समाज का आईना कहा जाता है. पिछले दिनों 51वां विश्व रंगमंच दिवस मनाया गया. इस ख़ास दिवस के बारे में विस्तार से बता रहा है वरिष्ठ पत्रकार सर्जना चतुर्वेदी की यह लेख. उन्होंने न केवल इस दिन के इतिहास के बारे में बताया, बल्कि रंगमंच के फ़ायदे और भरत मुनी के पांचवें वेद ‘नाट्य वेद’ के बारे में भी रोचक जानकारी दी.
जीवन ऐसे जिओ कि वह अभिनय की तरह हो. अभिनय ऐसे करो जैसे वह जीवन हो: ओशो का यह कथन जीवन को सहज ढंग से समझने और जीवन के साथ-साथ अभिनय से जुड़ा भी सबसे बड़ा सबक देता है. साहित्यकार व नाटककार शेक्सपियर की प्रसिद्ध पंक्तियां हैं, ज़िंदगी एक रंगमंच है और हम सब उसकी कठपुतलियां हैं…इसी से ये समझा जा सकता है कि थिएटर का हमारे जीवन में क्या महत्व है और क्यों इसे समाज का दर्पण माना गया है.
27 मार्च को पूरे विश्व में वर्ल्ड थिएटर डे या विश्व रंगमंच दिवस मनाया जाता है. इस विधा के प्रति लोगों को जागरूक करने और इसे जीवन्त रखने के लिए यह दिन समर्पित है. इस दिन को वर्ल्ड थिएटर डे के रूप में मनाने की शुरुआत 1962 में इंटरनेशनल थिएटर इंस्टीट्यूट द्वारा की गई थी. इस कारण से आज के दिन थिएटर से संबंधित कई ग्रुप ख़ास पेशकश करते हैं. इसके साथ ही इस दिन विश्व के किसी जाने माने रंगकर्मी द्वारा रंगमंच तथा शांति की संस्कृति विषय पर उसके विचारों को व्यक्त करता है.
सन् 1961 में सबसे पहले हेलासिंकी और फिर वियना में अंतरराष्ट्रीय रंगमंच संस्थान (आगे आईटीआई, इंटरनैशनल थिएटर इंस्टीट्यूट) के नौवें विश्व सम्मेलन के दौरान संस्थान के तत्कालीन अध्यक्ष अर्वी किविमा ने ‘विश्व रंगमंच दिवस’ मनाए जाने का प्रस्ताव रखा था. आईटीआई के फिनलैंड स्थित केंद्र की ओर से रखे इस प्रस्ताव का स्कैन्डिनेवियाई केंद्रों ने समर्थन किया. विश्व के अन्य केंद्रों ने इसका ज़ोरदार समर्थन किया. 27 मार्च, 1962 को पहली बार औपचारिक तौर पर अंतरराष्ट्रीय रंगमंच दिवस मनाया गया. पेरिस में ‘थिएटर ऑफ़ नेशन्स’ सीज़न की शुरुआत का भी यह दिन है. तब से अब तक 100 से अधिक राष्ट्रों में स्थापित आईटीआई केंद्रों में इसे व्यापक और विविध रूपों में मनाया जाता है. भारत में इंटरनैशनल थिएटर इंस्टीट्यूट का सेंटर पुणे में स्थित है.
1948 में यूनेस्को और विश्व के ख्यातनाम रंगकर्मियों ने मिलकर अंतरराष्ट्रीय रंगमंच संस्थान (आई.टी.आई.) की स्थापना प्राग (चेक गणराज्य) में की. इसका मुख्यालय वर्तमान में पेरिस में है. आईटीआई परफ़ॉर्मिंग आर्ट के क्षेत्र में काम करने वाला एक महत्वपूर्ण अशासकीय संगठन है, जो औपचारिक रूप से यूनेस्को से सम्बद्ध है. यूनेस्को कला प्रदर्शन की बेहतरी और सुधार के लिए समर्पित संस्था है.
2023 का संदेश दिया समैया अयूब ने
विश्व रंगमंच दिवस पर हर वर्ष रंगकर्म से जुड़ी एक अंतरराष्ट्रीय शख्सियत संदेश देती है. इस वर्ष यह संदेश दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक मिस्त्र देश की अभिनेत्री और रंगकर्मी समिहा अयूब ने दिया है. 89 वर्षीय समिहा को रंगकर्म के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए कई महत्वपूर्ण सम्मानों से सम्मानित किया जा चुका है. अल बखील, कोब्री अल-नमोस, सिकत अल-सलम उनके प्रमुख नाटक हैं. समिहा ने अपने प्रसारित संदेश में इस बात का जिक्र किया है कि आज हम तक तकनीक और संचार के कारण एक-दूसरे के बहुत नज़दीक हैं, लेकिन दूसरी तरफ़ सरहद और वैचारिक संघर्ष पूरी दुनिया में बढ़ रहे हैं. ऐसे में हमें रंगकर्म की अपनी इस विधा के माध्यम से दुनिया को बेहतर बनाने के लिए अपना योगदान देना है.
विश्व रंगमंच दिवस की थीम
विश्व रंगमंच दिवस पर अन्य अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रमों की तरह हर वर्ष एक नई थीम नहीं मनाई जाती, बल्कि ‘रंगमंच तथा शांति की संस्कृति’ थीम को ही विश्व रंगमंच ने अपने अंदर निहित कर लिया है, और हर वर्ष यह दिवस विश्व शांति के लिए नए प्रयासों को लेकर ही मनाया जाता है. इस दिवस पर होने वाले विशिष्ट संबोधन में भी मुख्त्यतः इसी बात पर ज़ोर दिया जाता है कि कैसे हम रंगमंच से विश्व शांति का संदेश दे सकते हैं और विश्व में एक शांति की संस्कृति की नींव रख सकते हैं.
भारतीय भाषा में रंगमंच
रंगमंच वह स्थान है जहां नृत्य, नाटक, खेल आदि होते हैं. रंगमंच शब्द रंग और मंच दो शब्दों से मिलकर बना है. एक रंग जिसके तहत दृश्य को आकर्षक बनाने के लिए दीवारों, छतों और पर्दों पर विविध प्रकार की चित्रकारी की जाती है. साथ ही अभिनेताओं की वेशभूषा और सज्जा में भी विविध रंगों का प्रयोग होता है. दूसरा मंच-जिसके तहत दर्शकों की सुविधा के लिए रंगमंच का तल फ़र्श से कुछ ऊंचा रहता है. वहीं दर्शकों के बैठने के स्थान को प्रेक्षागार और रंगमंच सहित समूचे भवन को प्रेक्षागृह, रंगशाला या नाट्यशाला कहते हैं. पश्चिमी देशों में इसे थिएटर या ऑपेरा के नाम से जाना जाता है. माना जाता है कि नाट्यकला का विकास सर्वप्रथम भारत में ही हुआ.
भरतमुनी ने पांचवां वेद नाट्यवेद लिखा
प्राचीन भारत में नाटक करने वाले शूद्र माने जाते थे. भरतमुनि ने ‘नाट्यशास्त्र’ के लिए ‘नाट्यवेद’ लिखा यानी उसे वेद की संज्ञा दी. वेद शब्द का व्यवहार रामायण के लिए नहीं किया गया, महाभारत के लिए नहीं किया गया. लेकिन भरतमुनि ने अपने ग्रंथ के लिए नाट्यवेद शब्द का प्रयोग किया और उन्होंने बार-बार इस बात का उल्लेख किया कि शूद्रों के लिए मैंने पांचवां वेद बनाया है. नाटक में पुरोहितों व सामंतों का मज़ाक बनाया जाता था. शायद इसी से नाराज़ होकर सामंतों व पुरोहितों ने नटों को शूद्र कहा होगा.
लोकनाट्य की परंपरा
जर्मनी के महान नाटककार बर्तोल्त ब्रेख्त ने नाटकों द्वारा मार्क्सवादी विचारधारा का प्रचार प्रसार करने के लिए ‘एपिक थिएटर’ नाम से नाट्य मंडली का गठन किया था. हिंदी में एपिक थिएटर को लोक नाटक के रूप में जाना जाता है. बर्तोल्त ब्रेख्त एपिक थिएटर की अवधारणा एशियाई देशों के पारंपरिक रंगमंच से ही की थी. रंगमंच व अभिनय के क्षेत्र में उनके ‘एलियेनेशन इफ़ेक्ट’ यानी विरक्ति के प्रभाव का आधार ये पारंपरिक रंगमंच ही रहे हैं. ब्रेख्त कहा करते थे ‘नाटक को कुछ इस प्रकार प्रस्तुत किया जाए दर्शक को नाटक के चरित्र से तारतम्य स्थापित करने से रोका जाए. चरित्रों के क्रियाकलापों के प्रति स्वीकार या इंकार का भाव दर्शकों की चेतना के स्तर पर हो न कि अवचेतन स्तर पर हो, जैसा कि पहले सोचा जाता था.’ यानी पाठक चरित्र के साथ डूबे नहीं, मुग्ध न हों, बराबर नाटक से अपने को अलग रखें. ब्रेख्त की नाट्य अवधारणा को इरविन पिस्काटर ने थोड़े और स्पष्ट करते हुए कहा था ‘नाटक देखने वाला दर्शकों में संवेदना जगाने की क्षमता को उद्वेलित करना, इस नाट्य मंडली का काम नहीं है. ऐपिक थिएटर यानी नाट्य मंडली भावना जगाने की बजाए चकित करने पर ज़ोर देता है. यदि इसे दूसरे ढंग से कहा जाए तो दर्शक नायक से ख़ुद को जोड़ने या एकाकार करने की बजाय उन परिस्थितियों पर ध्यान दे, चकित हो, जिसमें नायक फंसा है.’
रूढ़िवादिता के विऱद्ध सशक्त अस्त्र है रंगकर्म: प्राचीन काल से, थिएटर न केवल कलाकारों के रूप में उनकी प्रतिभा का प्रदर्शन करने बल्कि कलाकारों के लिए एक मंच तैयार करने के रूप में काम कर रहा है, थिएटर सामाजिक बुराइयों को समाज के सामने लाने के लिए एक मंच तैयार कर रहा है जो आम जनता से संबंधित है और उन्हें उनके सामने मौजूद स्थितियों के बारे में जागरूक कर रहा है. इसने समाज में मौजूद रूढ़िवादी विचारों को चुनौती दी है और कुछ ऐतिहासिक अवसरों में रंगमंच (थिएटर) समाज में सदियों पुरानी प्रचलित कट्टरपंथियों के खिलाफ़ आक्रोश का एक मंच दिया है. विश्व रंगमंच दिवस एक ऐसा अवसर होता है जब दुनियाभर में लोगों को निकट लाने, अमन और भाईचारे को बढ़ावा देने तथा आपसी समझ को विस्तार देने के लिए रंगकर्मी अपने दर्शकों/श्रोताओं से रूबरू होते हैं तथा उन्हें कला में अन्तर्निहित शक्ति का परिचय कराते हैं. रंगमंच दिवस के अवसर पर दुनिया के हर कोने में अंतरंग और बहिरंग समारोहों के आयोजन जनभागीदारी के साथ किए जाते हैं. थिएटर की विभिन्न शैलियों, नव प्रयोगों, शहरी और लोक थिएटर के मिलाप और विश्वस्तरीय रंगमंचीय प्रयोगों को निकट लाने के ध्येय से इस अवसर का उपयोग किया जाता है. टीवी, रेडियो, थियेटरों में निःशुल्क और सशुल्क प्रदर्शनों के माध्यम से रंगकर्मी अपनी कला का विस्तार धुर थिएटर प्रेमियों से लेकर नव-दर्शकों तक करते हैं.
रंगमंच से हम यह सीखते हैं
नेतृत्व क्षमता और विश्लेषणात्मक सोच: हमारे जीवन में शिक्षा में कला का होना भी बहुत महत्वपूर्ण और उपयोगी है क्योंकि रंगमंच से विश्लेषणात्मक सोच, जीवन कौशल, टीम वर्क और बहुत कुछ नया करने को मिलता है, रंगमंच विधा में वह सब है जो आपको निजी और सार्वजनिक जीवन में जानना आवश्यक है क्योंकि शिक्षा में कला का प्रयोग बच्चों को अधिक रचनात्मक बनाता है.
शारीरिक रूप से मज़बूत बनाता है: रंगमंच में जब हम किरदारों को आकार देते हैं तब हमको सबसे निष्क्रिय प्रदर्शन, लंबे समय तक काम करने की आवश्यकता होती है. रंगकर्म के अभ्यास से शरीर में लचीलापन, समन्वय, संतुलन और नियंत्रण बनता है. इसी तरह रंगमंच हमारे मन, दिल, दिमाग के अलावा हमारे शरीर के लिए भी बेहद लाभदायक है.
याददाश्त बेहतर होती है: याददाश्त को बेहतर करने में भी रंगकर्म की भूमिका है, क्योंकि जब हम किसी भी नाटक की प्रस्तुति के पहले होने वाली प्रक्रिया यानी कि पूर्वाभ्यास करते हैं. संवाद को याद करते हैं तब हमारी याददाश्त में सुधार होता है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आपकी याददाश्त को मांसपेशियों की तरह ही व्यायाम की आवश्यकता होती है
पूरी दुनिया में रंगमंच की एक खास पहचान रही है कि वो मनोरंजन करने के साथ-साथ प्रतिरोध की भूमिका भी निभाता है. भारतीय रंगमंच के एक प्रमुख हस्ताक्षर रतन थियम कहते हैं ‘रंगमंच को लोगों के मनोविज्ञान में प्रवेश करने का प्रयास करना चाहिए. यह प्रतिरोध का संदेश लिए हुए रहती है. यह लोगों को सोचने पर मजबूर पर करेगा कि व्यवस्था में कुछ न कुछ गड़बड़ी है और इसमें बदलाव की आवश्यकता है. पिछले तीन हजार वर्षो में एक भी नाटक ऐसा नहीं लिखा गया है जिसमें प्रतिरोध न हो.’
देश में संचालित प्रमुख थिएटर के शैक्षणिक संस्थान :
नैशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा : नैशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा दुनिया के लीडिंग नाट्य प्रशिक्षण इंस्टीट्यूट में शामिल है. इसकी स्थापना संगीत नाटक अकादमी के रूप में 1959 में की गई था. साल 1975 इसे एक स्वतंत्र संस्था बना दिया गया. इसका रजिस्ट्रेशन साल 1860 के सोसायटी पंजीकरण धारा XXI के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्था के रूप में किया गया.
बैरी जॉन एक्टिंग स्टूडियो: इस स्टूडियो की शुरुआत 1999 में फ़िल्म सिटी, नोएडा से हुई थी. स्टूडियो में थिएटर से जुड़ी एजुकेशन दी जाती है. 2002 में यहां पढ़ने वाले कुछ स्टूडेंट्स, कास्टिंग डायरेक्टर्स और प्रोड्यूसर्स के कहने पर इस स्टूडियो को नोएडा से मुंबई में स्थापित कर दिया गया.
राज्य नाट्य विद्यालय : राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय एनएसडी के तर्ज पर मध्यप्रदेश में 2012 में राज्य नाट्य विद्यालय की स्थापना की गई थी. मध्यप्रदेश शासन के संस्कृति विभाग द्वारा संचालित इस संस्थान का उद्देश्य प्रदेश की रंगप्रतिभाओं को निखारना है.
Photos: Google and Pinterest