वैसे तो हमें पढ़ना किताबों से चाहिए, क्योंकि फ़िल्में सिर्फ़ मनोरंजन के लिए होती हैं. पर किताबें ही कहती हैं कि हमें जहां से भी कुछ सीखने मिले, सीख लेना चाहिए. जब बात देशभक्ति या देशप्रेम की हो तो देर बिल्कुल भी नहीं करनी चाहिए. इस गणतंत्र दिवस हम इक्कीसवीं सदी यानी साल 2000 के बाद बनी बॉलिवुड फ़िल्मों से देशभक्ति के अलग-अलग पाठ सीखने की कोशिश करेंगे.
वैसे तो बॉलिवुड अपनी प्रेम कहानियों के लिए दुनियाभर में मशहूर है. पर बॉलिवुड समय-समय पर अलग-अलग सब्जेक्ट्स पर फ़िल्में भी बनाता रहा है. अपने शुरुआती दौर से अब तक बॉलिवुड देशभक्ति वाली फ़िल्में बनाता रहा है. उदाहरण के तौर पर आनंद मठ, शहीद, हकीकत, पूरब पश्चिम, उपकार, क्रांति, क्रांतिवीर, बॉर्डर…यह सूची बहुत लंबी है. पर आज हम ट्वेंटी फ़र्स्ट सेंचुरी में बनी बॉलिवुड की 10 देशभक्ति पर आधारित फ़िल्मों की बात करने जा रहे हैं. इनकी ख़ासियत यह है कि यह आपको हार्डकोर पैट्रियोटिक फ़िल्म जैसी नहीं लगेगी. हर फ़िल्म में देशभक्ति की अलग-अलग फ़िलॉसफ़ी दिखाई गई है.
राज़ी (2018)
हमारी सूची की पहली फ़िल्म है वर्ष 2018 में आई राज़ी. मेघना गुलज़ार के निर्देशन में बनी इस फ़िल्म में आलिया भट्ट और विकी कौशल ने कमाल का काम किया था. यह फ़िल्म एक भारतीय जासूस की कहानी बयां करती है. फ़िल्म में देशभक्ति और अंधदेशभक्ति जिसे ज़िंगोइज़म भी कहते हैं, में बारीक़ फ़र्क़ बताया गया है. बॉर्डर के दोनों तरफ़ के लोगों के जीवन को छूती यह बेहद संवेदनशील फ़िल्म है. फ़िल्म में देशभक्ति के साथ-साथ मानवता वाला ऐंगल भी है. फ़िल्म में गुलज़ार साहब का लिखा गाना ‘ऐ वतन वतन मेरे आबाद रहे तू’ अद्भुत है. यह दुनिया के हर देश के लिए उतना ही सुटेबल है, जितना भारत या पाकिस्तान के लिए.
स्वदेस (2004)
इस सूची की दूसरी फ़िल्म है वर्ष 2004 की स्वदेस. रोमांस के बादशाह कहलानेवाले शाहरुख़ ख़ान की देशभक्ति वाली फ़िल्मों की बात की जाए तो उसमें सबसे पहला नाम आता है स्वदेस का. फ़िल्म लगान के निर्देशक आशुतोष गोवारिकर की यह फ़िल्म नासा के एक वैज्ञानिक की कहानी है, जो अपने देश लौटता है. कुछ दिनों के लिए भारत आया यह वैज्ञानिक महसूस करता है कि उसकी ज़रूरत अमेरिका से कहीं ज़्यादा भारत को है. उस ग्रामीण भारत को है, जहां उसकी जड़ें हैं. वह गांव के लोगों को बताता है कि भारत दुनिया में सबसे बेहतर देश नहीं है, पर उसमें पूरी क्षमता है कि वह दुनिया का सबसे अच्छा देश बन सके.
लक्ष्य (2004)
पैट्रियॉटिक फ़िल्मों की हमारी लिस्ट में शामिल है वर्ष 2004 में आई लक्ष्य. रितिक रोशन की मुख्य भूमिका वाली और फ़रहान अख़्तर के निर्देशन में बनी यह वॉर ड्रामा भले ही बॉक्स ऑफ़िस पर फ़्लॉप रही, पर आनेवाले वर्षों में इसे ख़ूब पसंद किया गया. यह एक युवा की कहानी है, जो अपने लक्ष्य को लेकर कन्फ्यूज़ है. जीवन को लेकर बिल्कुल भी सीरियस नहीं रहनेवाले इस युवा को तब अपनी ज़िंदगी का मक़सद यानी लक्ष्य मिल जाता है, जब वह भारतीय सेना जॉइन करता है. देशभक्ति के नाम पर अनाप-शनाप सोशल मीडिया पोस्ट करने के बजाय हर युवा को यह फ़िल्म ज़रूर देखनी चाहिए.
लगान (2001)
इस सूची की हमारी चौथी फ़िल्म है लगान. साल 2001 की ऑस्कर की टॉप फ़ाइव फ़ॉरेन लैंग्वेज फ़िल्मों में पहुंची लगान निर्देशक आशुतोष गोवारिकर और अभिनेता आमिर ख़ान की सबसे मशहूर फ़िल्म है. इस फ़िल्म में देशभक्ति को खेल के जज़्बे के साथ जोड़ा गया था. आज़ादी के पहले की इस काल्पनिक कहानी में एक गांव के आम से नायक ने न केवल अंग्रेज़ी खेल क्रिकेट को लेकर ब्रिटिश अधिकारियों को चुनौती दी थी, बल्कि क्रिकेट में अनाड़ी गांव वालों की मदद से अंग्रेज़ों को रोमांचक मुक़ाबले में हराकर लगान भी माफ़ करवाया था. फ़िल्म के डायलॉग्स, क्रिकेट मैदान के सीन और गाने अब भी भारतीय फ़िल्म इतिहास में लेजेंडरी स्टेटस रखते हैं.
रंग दे बसंती (2006)
साल 2006 में आई फ़िल्म रंग दे बसंती के बिना पैट्रियोटिक फ़िल्मों की कोई सूची पूरी नहीं हो सकती. डायरेक्टर राकेश ओम प्रकाश मेहरा की यह फ़िल्म भारत में कल्ट क्लासिक का स्टेटस रखती है. पांच मस्तमौला दोस्तों की यह कहानी युवा भारत की देशभक्तिवाली कहानी है. भगत सिंह और उनके साथी क्रांतिकारियों पर बन रही डॉक्टूमेंट्री में काम करते-करते ये मनमौजी युवा कब और कैसे ख़ुद देशभक्ति के रंग में रंग गए और लोगों के लिए मिसाल बन गए, उन्हें ख़ुद भी पता नहीं चला. दो पैरलल कहानियों को लेकर चलनेवाली रंग दे बसंती सिनेमैटिक पैरामीटर्स पर भी कमाल की फ़िल्म है.
चक दे! इंडिया (2007)
पैट्रियोटिक फ़िल्मों की सूची में साल 2007 में आई स्पोर्ट्स ड्रामा चक दे इंडिया ख़ास जगह रखती है. फ़िल्म महिला हॉकी टीम के उस कोच की कहानी है, जिसपर उसके प्लेइंग डेज़ में मैच फ़िक्सिंग का धब्बा लगा था. वह अपने ऊपर लगे उस दाग़ को धोना चाहता है और राजनीति और गुटबंदी का शिकार खिलाड़ियों को एक टीम की तरह खेलना सिखाना चाहता है. कोच कबीर ख़ान की भूमिका में शाहरुख़ ख़ान ने कमाल का अभिनय किया था. शमित अमीन के निर्देशन में बनी यह फ़िल्म अपने जोश जगानेवाले डायलॉग्स और टाइटल सॉन्ग के चलते ख़ूब पसंद की गई. चक दे इंडिया ने भारत के नैशनल गेम हॉकी को एक बार दोबारा चर्चा में ला दिया था. देश के लिए खेलनेवाले हर खिलाड़ी में फ़िल्म चक दे इंडिया, देश के लिए कुछ कर गुज़रने और अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने का जज़्बा जगाती है.
अ वेडनेसडे (2008)
एक कॉमनमैन के लिए देशभक्ति और उसके मायने क्या हो सकते हैं, इसे आप साल 2008 की अ वेडनेसडे को देखकर समझ सकते हैं. डायरेक्टर नीरज पांडे की यह फ़िल्म चीखने, चिल्लाने और बड़े-बड़े डायलॉग्स के ओवरडोज़ के बिना भी आपके अंदर के देशभक्त को जगा जाती है. वैसे तो यह ऐक्शन-थ्रिलर जॉनर की फ़िल्म है, पर इसकी कहानी की जड़ें कहीं न कहीं पैट्रियोटिज़्म से जुड़ी हैं. एक आम आदमी के तौर पर नसीरुद्दीन शाह का अभिनय आपको लंबे समय तक नहीं भूलेगा.
मिशन मंगल (2019)
हमारे देश के वैज्ञानिक भले ही सीमा पर जाकर दुश्मनों के दांत खट्टे नहीं करते या अपने भाषणों से देशक्ति की भावना नहीं जगाते, पर विज्ञान के क्षेत्र में उनकी अनूठी उपलब्धियां उन्हें पक्का देशभक्त बनाती हैं. इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइज़ेशन यानी इसरो के वैज्ञानिकों की एक हालिया और बड़ी उपलब्धि थी मार्स ऑर्बिटर मिशन जिसे मंगलयान भी कहा जाता है, को रिकॉर्ड कम बजट में मंगल ग्रह के ऑर्बिट तक पहुंचाना. इतना ही नहीं भारत का मंगलयान मंगल ग्रह के ऑर्बिट में पहली कोशिश में ही पहुंच गया था. देशभक्ति वाली हमारी फ़िल्मों की सूची में आठवां नाम है साल 2019 में रिलीज़ हुई मिशन मंगल. यह फ़िल्म इस अनूठी वैज्ञानिक उपलब्धि के साथ-साथ नारी शक्ति को भी समर्पित है. मंगलयान के इस मिशन में पांच महिला वैज्ञानिकों ने अहम् भूमिका निभाई थी.
आर्टिकल 15 (2019)
देशभक्ति वाली फ़िल्मों की इस लिस्ट में साल 2019 में आई अनुभव सिन्हा की फ़िल्म आर्टिकल 15 को देखकर आपको झटका लग सकता है. आप सोचेंगे कि भला इस क्राइम ड्रामा का देशभक्ति से क्या नाता! पर यह फ़िल्म पैट्रियोटिक फ़िल्मों की सूची में इसलिए है क्योंकि इसमें भारत के संविधान के अनुच्छेद यानी आर्टिकल 15 का सही मतलब बताया है. भले ही हम शहरों में रहनेवालों को लगता हो कि भारत में समानता और भाईचारे वाला माहौल हो, पर ग्रामीण भारत में अब भी जातिगत भेदभाव किसी न किसी रूप में प्रचलित है. फ़िल्म आर्टिकल 15 इसी भेदभाव की ख़िलाफ़त करती है. जब हम आज़ादी का अमृत महोत्सव मना चुके हों और देश अपने अमृतकाल में हो, तब जातिभेद के विष के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाना देशभक्ति ही है.
न्यूटन (2017)
पैट्रियोटिक फ़िल्मों की हमारी सूची की आख़िरी यानी दसवीं फ़िल्म है साल 2017 की न्यूटन. अमित वी मसूरकर के निर्देशन में बनी और राजकुमार राव तथा पंकज त्रिपाठी जैसे कलाकारों के अभिनय से सजी यह फ़िल्म भारतीय राजनीति पर शानदार सटायर थी. एक सरकारी क्लर्क को माओवाद से प्रभावित क्षेत्र में चुनावी ड्यूटी पर भेजा जाता है. वहां उसे सुरक्षा बलों के साथ मिलकर निष्पक्ष चुनाव करवाना है, पर उसे वहां पग-पग पर अपने काम करने से रोकने की कोशिश की जाती है. वह तमाम बाधाओं के बावजूद अपने इरादे पर टिका रहता है. यह फ़िल्म देशभक्ति की कैटेगरी में इसलिए रखी जा सकती है, क्योंकि हमारा देश ऐसे ही ईमानदार लोगों के दम पर चलता है. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के इलेक्शन की प्रक्रिया को दिखानेवाली यह डार्क कॉमेडी मॉडर्न क्लासिक्स में एक है.