हमारे देश में सेक्स को लेकर कई तरह की भ्रांतियां हैं. खुलकर सेक्स के बारे में बात नहीं करने की वजह से कई सामान्य बातें भी असामान्य और किसी प्रकार की बीमारी की तरह लगने लगती हैं. पुरुषों को आनेवाले वेट ड्रीम्स या कहें स्वप्नदोष, जिसे नाइट फ़ॉल भी कहा जाता है, इसी कैटेगरी में शामिल है. शरीर की इस सामान्य प्रक्रिया को इतिहास और विज्ञान के तथ्यों के साथ समझा रहे हैं संगीत सेबैस्टियन.
वेट ड्रीम्स या कहें स्वप्नदोष के बारे में हम प्राचीन इतिहास में न जाते हुए, मॉडर्न इतिहास तक ही जाएं तो यह एक सर्वविदित फ़ैक्ट है कि 70 की उम्र में महात्मा गांधी को भी स्वप्नदोष होता था. हम इस तथ्य को इसलिए जानते हैं, क्योंकि गांधीजी इतने ईमानदार थे कि उन्होंने इसे स्वीकार किया. अब इसका यह मतलब न समझें कि महात्मा गांधी किसी तरह के यौनरोग से पीड़ित थे. वेटड्रीम्स या सेक्स ड्रीम्स जिनके चलते नींद में ही ऑर्गैज़्म का अनुभव होता है और वीर्य पतन हो जाता है, बुज़ुर्गों में तो नहीं, पर युवाओं में बेहद आम है. पर गांधीजी के अनुभव से ज़ाहिर होता है कि वेट ड्रीम्स किसी भी उम्र में आ सकते हैं. अब अगला सवाल उठता है, आख़िर वेट ड्रीम्स आते क्यों हैं?
यदि आपने यह सवाल आचार्य रजनीश से पूछा होता, जिन्हें ओशो नाम से भी जाना जाता था, भारतीय रहस्यवादी और रजनीश मूवमेंट के संस्थापक ओशो कहते, वेट ड्रीम्स का कारण हमारी सेक्शुऐलिटी है. खाने और सांस लेने की तरह यह हमारे हाथ में नहीं है, इसलिए इसपर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है.
ओशो के जाने जाने के दशकों बाद विज्ञान इतनी तरक़्क़ी कर चुका है. कई गूढ़ रहस्यों को सुलझा चुका है, पर अब तक विज्ञान के पास स्वप्नदोष से जुड़ा कोई पुख़्ता जवाब नहीं है. इस तरह के उत्तेजक सपनों का रहस्य सुलझाना क्रिस्टोफ़र नोलान (सस्पेंस फ़िल्में बनाने के लिए मशहूर निर्देशक-निर्माता) की फ़िल्मों की उलझी हुई गुत्थी सुलझाने से भी कहीं ज़्यादा मुश्क़िल है. इसका एक कारण यह भी है कि सपनों को प्रयोगशाला के पैमाने पर परख पाना संभव नहीं है. दूसरी बात यह भी कि ज़्यादातर लोग सपनों को पूरी तरह भूल जाते हैं या नींद खुलने पर यह याद कर पाने में असमर्थता ज़ाहिर करते हैं कि वे दरअसल सपने में देख क्या रहे थे. हालांकि सपनों पर रिसर्च करनेवाले शोधकर्ताओं ने यह ज़रूर पता लगा लिया है कि लोग हर रात को कम से कम दो रंगीन सपने ज़रूर देखते हैं. नींद के अंतिम घंटों में फ़िल्मी सीन की तरह के सपने आते हैं.
हमारे द्वारा देखा जानेवाला हर पांच में से एक सपना सेक्स से संबंधित होता है. ऐसा इसलिए हो सकता है, क्योंकि सेक्शुअल ड्रीम्स हमारे रूटीन के सपनों के बीच अलग से अपनी छाप छोड़ जाते हैं. हो सकता है हम और भी ज़्यादा सपने देखते हों, आख़िर सपनों को भूल जाना इंसानी फ़ितरत जो है.
इस तरह का एक शोध अमेरिकी साइकोलॉजिकल असोसिएशन ने वर्ष 2013 में प्रकाशित किया था. ‘लस्ट, पॉर्नोग्राफ़ी ऐंड इरोटिक ड्रीम्स’ नाम के इस शोध में लोगों द्वारा देखेजाने वाले सेक्स ड्रीम्स और उनके द्वारा देखी जानेवाली पॉर्न फ़िल्मों का कनेक्शन स्पष्ट किया गया था. इसे शोधकर्ताओं ने ‘कैरी ऑन इफ़ेक्ट’ नाम दिया था. कैरी ऑन इसलिए, क्योंकि असल ज़िंदगी में चीज़ों को हम जहां छोड़ते हैं, सपने में उन्हें पूरा करने का प्रयास करते हैं. उदाहरण के लिए, शोधकर्ताओं ने पाया कि रिसर्च में भाग लेनेवाले जिन प्रतिभागियों को वेजाइनल इंटरकोर्स, ओरल सेक्स, एनल सेक्स, मैमरी इंटरकोर्स (जिसमें पुरुष महिलाओं के ब्रेस्ट्स के बीच अपना पीनस रगड़ते हैं) जैसी क्रियाओं वाले वेट ड्रीम्स आते थे, असल ज़िंदगी में वे उसी तरह की पॉर्न फ़िल्में देखते थे. तो हुई ना यह कैरी ऑन वाली बात.
वेट ड्रीम्स के बारे में और अधिक जानने और उनके कारणों की पड़ताल के लिए मैंने डॉ लॉरेंस आई सैंक से बात की, जो कि एक प्रभावशाली सेक्स थेरैपिस्ट, सेक्स रिसर्चर और हार्वर्ड से प्रशिक्षित क्लीनीशियन हैं. यूएस के डॉ लॉरेंस आई सैंक वीवॉक्स के एक फ़ाउंडिंग मेंबर भी हैं.
डॉ लॉरेंस आई सैंक कहते हैं,‘‘सेक्स ड्रीम्स या यौन सपनों के लिए दो तर्क दिए जाते हैं. पहला यह कि सेक्स ड्रीम्स हमारी अंदरूनी इच्छाओं का प्रतीक है और दूसरा तर्क यह कि इसमें कोई बड़ी बात नहीं है, इसलिए इस ओर ख़ास ध्यान देने या ज़रूरत से ज़्यादा सोचने की आवश्यकता नहीं है. जब हम सोते हैं, तब हमारा दिमाग़ दिनभर की घटी घटनाओं का हिसाब-किताब लगाता है. दिनभर में घटी घटनाओं से जुड़ी बातें, चीज़ें अक्सर सपनों के रूप में प्रकट होती हैं. आपने दिनभर में चाहे जो कुछ किया हो, मसलन-बाइक चलाई हो, ट्रेकिंग पर गए हों या यहां तक कि पॉर्न देखा हो, सबका असर हमारे दिमाग़ के अवचेतन हिस्से और सपनों पर पड़ता ही है.
‘‘यहां तक कि हमारे सोने की पोज़िशन से भी हमारे सपनों पर असर पड़ता है. जो लोग पेट के बल सोते हैं, उन्हें पीठ के बल या करवट लेकर सोनेवालों की तुलना में ज़्यादा सेक्स ड्रीम्स आते हैं. क्योंकि इस तरह सोने से हमारे जेनाइटल एरिया पर दबाव पड़ता है, परिणामस्वरूप हमें ज़्यादा यौन स्वप्न आते हैं. पेट के बल सोनेवालों को बीडीएसएम (बॉन्डेज, डिसिप्लिन ऐंड सैडोमैस्किज़म) यानी परपीड़न वाले सेक्स ड्रीम्स ज़्यादा आते हैं.’’
चलते-चलते हम बस इतना कहना चाहेंगे कि वेट ड्रीम्स का इतिहास हो या विज्ञान इसमें कोई दोष नहीं है. यह हमारे शरीर की एक नॉर्मल प्रक्रिया है. तो वेट ड्रीम्स या जैसा कि इसे हिंदी में स्वप्न दोष कहते हैं, को कोई दोष न मानें और बिना किसी चिंता के सपनों में खो जाएं.
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