• होम पेज
  • टीम अफ़लातून
No Result
View All Result
डोनेट
ओए अफ़लातून
  • सुर्ख़ियों में
    • ख़बरें
    • चेहरे
    • नज़रिया
  • हेल्थ
    • डायट
    • फ़िटनेस
    • मेंटल हेल्थ
  • रिलेशनशिप
    • पैरेंटिंग
    • प्यार-परिवार
    • एक्सपर्ट सलाह
  • बुक क्लब
    • क्लासिक कहानियां
    • नई कहानियां
    • कविताएं
    • समीक्षा
  • लाइफ़स्टाइल
    • करियर-मनी
    • ट्रैवल
    • होम डेकोर-अप्लाएंसेस
    • धर्म
  • ज़ायका
    • रेसिपी
    • फ़ूड प्लस
    • न्यूज़-रिव्यूज़
  • ओए हीरो
    • मुलाक़ात
    • शख़्सियत
    • मेरी डायरी
  • ब्यूटी
    • हेयर-स्किन
    • मेकअप मंत्र
    • ब्यूटी न्यूज़
  • फ़ैशन
    • न्यू ट्रेंड्स
    • स्टाइल टिप्स
    • फ़ैशन न्यूज़
  • ओए एंटरटेन्मेंट
    • न्यूज़
    • रिव्यूज़
    • इंटरव्यूज़
    • फ़ीचर
  • वीडियो-पॉडकास्ट
  • लेखक
ओए अफ़लातून
Home सुर्ख़ियों में चेहरे

यूं ही कोई सिंधुताई ‘माई’ नहीं बन जाती…

प्रमोद कुमार by प्रमोद कुमार
January 5, 2022
in चेहरे, ज़रूर पढ़ें, सुर्ख़ियों में
A A
यूं ही कोई सिंधुताई ‘माई’ नहीं बन जाती…
Share on FacebookShare on Twitter

सामाजिक कार्यकर्ता और पद्मश्री अवॉर्ड से सम्मानित सिंधुताई सकपाल का 74 वर्ष की उम्र में हार्ट अटैक से पुणे के गैलेक्सी केयर अस्पताल में निधन हो गया. माई के नाम से जानी जानेवाली सिंधुताई ने 1,500 से अधिक अनाथ बच्चों को गोद ले रखा था. हम उस साहसी महिला की ज़िंदगी के सफ़र पर एक नज़र डालकर जानने की कोशिश करेंगे, आख़िर कैसे एक अनाथ, अकेली और बेसहारा युवती आगे चलकर हज़ारों की ‘माई ’ यानी मां बन जाती है.

सिंधुताई सपकाल ने अपने जीवन में बहुत उतार-चढ़ाव देखे थे. नौ वर्ष की कच्ची उम्र में विवाह और 20 वर्ष की उम्र में पति द्वारा छोड़ दिए जाने पर भी उन्होंने जीने की उम्मीद नहीं छोड़ी थी. फिर एक दिन अचानक उन्होंने माइक संभाला और अपना भाग्य बदल डाला. आज दुनिया को अलविदा कहते समय उनके पास 1,500 से अधिक गोद लिए हुए बच्चे थे. उनकी ज़िंदगी पर एक अवॉर्ड विजेता फ़िल्म बन चुकी है. वाक़ई सिंधुताई की जीवनयात्रा अविश्वसनीय रही थी.

इन्हें भीपढ़ें

कल चौदहवीं की रात थी: इब्न ए इंशा की ग़ज़ल

कल चौदहवीं की रात थी: इब्न ए इंशा की ग़ज़ल

June 4, 2025
abul-kalam-azad

मौलाना अबुल कलाम आज़ाद: वैज्ञानिक दृष्टिकोण के पक्षधर

June 3, 2025
dil-ka-deep

दिल में और तो क्या रक्खा है: नासिर काज़मी की ग़ज़ल

June 3, 2025
badruddin-taiyabji

बदरुद्दीन तैयबजी: बॉम्बे हाई कोर्ट के पहले भारतीय बैरिस्टर

June 2, 2025

महाराष्ट्र के एक छोटे-से गांव से लंदन फ़िल्म फ़ेस्टिवल तक का सफ़र
यूं तो सिंधुताई को महाराष्ट्र के लोग अस्सी के दशक से ही जानने लगे थे. कभी ख़ुद बेसहारा रहीं सिंधुताई सकपाल ने वर्ष 1980 में अनाथ बच्चों को गोद लेने का काम शुरू किया. उन्होंने इसी वर्ष दिलीप नामक अपने पहले बच्चे को गोद लिया था. इसी वर्ष प्रतिष्ठित मराठी अख़बार लोकसत्ता ने उन्हें ‘वर्ष की महिला’ पुरस्कार से सम्मानित किया था. जल्द ही वे राष्ट्रीय स्तर पर भी सुर्खियों में आ गईं. पर उन्हें सही मायने में अंतर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि मिली वर्ष 2010 में रिलीज़ हुई उनके जीवन पर आधारित फ़िल्म ‘मी सिंधुताई सकपाल’ से. इस फ़िल्म का प्रीमियर लंदन फ़िल्म फ़ेस्टिवल में रखा गया था. तब अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में भारत की इस ज़मीनी हीरो की काफ़ी चर्चा हुई.
स्वभाव से काफ़ी ज़िद्दी रही सिंधुताई ने इसी स्वभावगत ज़िद के चलते अपने जीवन में आनवाली सभी परेशानियों का सामना किया. मुश्क़िलों को हराया. वे लोगों को एक मां की तरह प्यार करती थीं और ख़ुद से मिलनेवालों पर एक मां की तरह हुक़ुम भी चलाती थीं. चाहे पत्रकार हों, अभिनेता या राजनेता, उन्होंने मां की तरह उनपर हुक़ुम चलाया. उनकी मृत्यु के बाद वायरल हो रहे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के साथ उनकी फ़ोन पर हुई बातचीत का ऑडियो इसकी तस्दीक करता है. वे लोगों को ‘बेटा’ कहकर बुलाती थीं और लोगों से कहती थीं कि वे उन्हें सिंधुताई नहीं, बल्कि ‘माई’ कहकर संबोधित करें. यह उनकी सहजता और सरलता ही थी कि जितनी आसानी से आम लोगों को अपना बना लेती थीं, उतनी ही आसानी से वे बौद्धिक वर्ग को अपना मुरीद बना लेती थीं.

हमेशा कहती थीं,‘पति ने मुझे मशहूर हस्ती बना दिया’
सिंधुताई कहती थीं कि उनके जीवन का एक सुनहरा नियम है,‘कभी पीछे मुड़कर नहीं देखना चाहिए.’ यह सबक उन्होंने अपने सार्वजनिक जीवन के शुरुआती दौर में ही सीख लिया था, जब उनके पति ने उन्हें घर से बाहर निकाल दिया था. उस समय माई गर्भवती थीं. पर बाद में माई उस घटना के बारे में बहुत ज़्यादा नहीं सोचती थीं. उस बारे में पूछे जाने पर वे हंसते हुए कहतीं,‘मेरे पति ने मुझे एक मशहूर हस्ती बना दिया. यदि उन्होंने मुझे नहीं छोड़ा होता तो आज मैं किसी आम चौथी पास बुज़ुर्ग महिला की तरह होती.’
अनंत महादेवन द्वारा निर्देशित, माई के जीवन पर आधारित फ़िल्म देखने पर आपको अंदाज़ा होगा कि माई की इस प्रसिद्घि के पीछे एक दुख भरी कहानी है. चिंदी, जिस नाम से माई अपनी आधी जि़ंदगी तक जानीं गईं की शादी नौ वर्ष की उम्र में हो गई थी. वह 14 वर्ष की उम्र में पहली बार मां बनी. अपने जीवन के बारे में बताते हुए माई कहा करती थीं,‘‘नौ वर्ष उम्र तक मैं अपनी भैसों को चराने ले जाती थी और कभी-कभी स्कूल चली जाती थी. मैंने चौथी कक्षा तक पढ़ाई की. उसके बाद, मेरा विवाह हो गया.’’
वह विवाह कम, उनका शारीरिक उत्पीड़न अधिक था. चिंदी की शादी एक 35 वर्षीय व्यक्ति के साथ कराई गई थी, जो अगले 10 वर्षों तक लगभग हर रात उसे डराता और उसके साथ बलात्कार करता रहा. पर आगे चलकर माई के दिल में उन सबके लिए कोई कड़वाहट नहीं रही. उन्होंने एक साक्षात्कार में कहा था,‘‘वैसा सिर्फ़ मेरे साथ ही नहीं हो रहा था, बल्कि मेरी ज़्यादातर सहेलियों का विवाह बूढ़े और बदसूरत पुरुषों के साथ हुआ था. उस समय ऐसा ही होता था. हममें से जिन लोगों की पिटाई नहीं होती थी वे ख़ुद को भाग्यशाली समझते थे. पर मैं भाग्यशाली लोगों में नहीं थी.’’
शारीरिक अत्याचार और बलात्कार से कुछ समय के लिए चिंदी को तब राहत मिली थी, जब उनके पहले दो बच्चे गर्भ में थे. जब वे तीसरी बार गर्भवती थीं तो उनके पति और सास ने उन्हें घर से निकाल दिया.

अनाथों की माई को जब ख़ुद कब्रिस्तान में पनाह लेनी पड़ी
हज़ारों अनाथ बच्चों को गोद लेनेवाली सिंधुताई ने ख़ुद भी अनाथों की ज़िंदगी बिताई थी. जब पति और सास ने उन्हें घर से निकाल दिया तो वे मायके पहुंचीं. उनके पिताजी गुज़र चुके थे. उनकी सगी मां तक ने उन्हें घर में पनाह नहीं दी. उनके पास सिर छुपाने की कोई जगह नहीं थी. वे चलते-चलते अमरावती पहुंच गईं.
जो भी उनसे मिलता था, वह उनकी ज़िंदादिली का मुरीद बन जाता था. उनकी डायरी हर दिन के अपॉइंटमेंट्स से भरी रहती थी. उनके बेड के बगल की टेबल पर इस बात की सूची टाइप करके रखी होती थी, कि उन्हें कहां-कहां जाना है. वे जब बोलती थीं तो किसी अनुभवी वक्ता की तरह शेरो-शायरी कहती थीं. इसलिए जब वे यह बताया करती थीं कि एक समय वे आत्महत्या करने के बिल्कुल क़रीब पहुंच गई थीं तो यक़ीन नहीं होता था. इसपर वे हंसते हुए कहती थीं,”हां, ऐसा भी समय था, जब मेरे पास कुछ भी नहीं था. न पैसा, न खाना और न ही रहने का कोई ठिकाना. मेरे पास पालने के लिए छोटी बच्ची भी थी. मुझे नहीं मालूम था कि मैं क्या करने जा रही थी. मैं चिखलदरा (अमरावती) में, एक पहाड़ की चट्टान पर से कूदने ही वाली थी कि मुझे लगा कि यह तो जीवन से हार मानना हुआ. तो फिर मैंने मरने का प्लान कैंसल कर दिया. उसके बाद मैंने भीख मांगना शुरू कर दिया. वह अनुभव भी काफ़ी अनूठा रहा. मैंने अगले तीन साल भीख मांगते हुए बिताए. मैं ट्रेनों में गाया करती थी. लेकिन टीसी मेरे लिए बड़े सिरदर्द की तरह होते थे. वे मुझे ट्रेनों से बाहर निकाल देते थे, पर मैं एक ट्रेन से उतरकर दूसरी ट्रेन पकड़ लेती थी. मैं दिनभर भीख मांगती थी और रात में पास के किसी कब्रिस्तान में सो जाती थी. कब्रिस्तान में मुझे सुकून मिलता था, क्योंकि मुर्दों की बजाय जि़ंदा व्यक्ति अधिक डरावने होते हैं.’’

चिंदी इस तरह बनी सिंधुताई
चिंदी जिस दिन पुणे पहुंची, वो सिंधुताई बन गई. उसी साक्षात्कार में सिंधुताई ने बताया था,‘‘मुझे नहीं मालूम, क्यों और कैसे, पर मैंने पुणे जाने का निश्चय किया. मैं भूखी और थकी हुई थी. जब स्टेशन के बाहर निकली तो मैंने देखा कि पास के एक मैदान में कोई सम्मेलन चल रहा था. मैंने सोचा, अरे वाह, मिल गया आज का खाना. यह बहाना बनाते हुए कि मेरे पति अंदर हैं, मैं अंदर चली गई. वहां काफ़ी भीड़ थी, जिसका फ़ायदा उठाते हुए मैं स्टेज के पास पहुंच गई. वहां एक माइक था और मैं थी एक कलाकार हूं, सो मैंने मार दिया दो शेर! इससे श्रोतागण ख़ासे प्रभावित हुए और तालियां बजाने लगे. मुझे खाना दिया गया और दूसरे सम्मेलनों में आने का न्यौता भी. पहले मैं गाना गाकर, पैसे कमाती थी और अब लोगों को भाषण देकर.’’
एक चौथी पास महिला में सैकड़ों लोगों के सामने खड़े होकर भाषण देने का आत्मविश्वास कैसे आया? पूछे जानेपर सिंधुताई बिल्कुल दार्शनिकों के अंदाज़ में कहती थीं,”हर व्यक्ति के जीवन में अपना भाग्य बदलने का एक मौक़ा ज़रूर आता है. उस समय मेरे पास खोने के लिए कुछ भी नहीं था. वैसे भी मैं एक अनजान इंसान की तरह नहीं मरना चाहती थी. इसलिए मैंने माइक उठाया और वही किया जो मुझे करना आता था.’’
सिंधुताई की लोकप्रियता बढ़ती गई और उसके साथ ही दान की राशि भी. चूंकि सिंधुताई ख़ुद एक अनाथ जैसा महसूस कर रही थी, इसलिए उन्होंने अनाथ लोगों को गोद लेने का निश्चय किया. इस बात को ध्यान में रखकर माई ने सबसे पहले अपनी बेटी को पुणे के दगड़ूशेठ हलवाई गणपति ट्रस्ट के हवाले कर दिया. क्योंकि उन्हें लगता था कि यदि उनकी बेटी साथ रहेगी तो वे गोद लिए बच्चों के साथ अपनी ममता बिना पक्षपात किए नहीं बांट सकेंगी. उसके कुछ दिनों के बाद वे अपने पहले गोद लिए बेटे दिलीप से मिलीं. वे सड़क पर कहीं जा रही थीं और दिलीप उनका पल्लू पकड़कर खींच रहा था. उस समय वे सिंधुतई बिना बच्चे की मां थीं और वह एक बिन मां का बच्चा था.
जैसे ही पैसा आने लगा, माई ने महाराष्ट्र में चार और केंद्र खोल दिए, जहां अनाथ बच्चों की देखभाल के साथ-साथ उन्हें शिक्षा देने की भी व्यवस्था की गई थी. माई के आज 1,500 से अधिक बच्चे हैं.
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि वह व्यक्ति भी इस विशाल परिवार का हिस्सा बना, जिसने माई को क़रीब-क़रीब आत्महत्या करने के लिए बाध्य किया था. इस बारे में वे बताती थीं,‘‘मेरी सास गुज़र गई हैं, लेकिन मेरी संस्था द्वारा चलाए जा रहे एक केंद्र में मेरे पति रहते हैं. वे मेरे लिए सबसे बुज़ुर्ग और जि़द्दी बच्चा हैं.’’ सीधी सी दिखनेवाली माई को समझ पाना बेहद मुश्क़िल था. पति को माफ़ करने के सवाल पर वे कंधे उचकाते हुए कहती थीं,‘‘किसी के प्रति मन में दुर्भावना रखने से क्या फ़ायदा?’’

Tags: Sindhutai SapkalSindhutai Sapkal Passes awaysocial worker Sindhutai Sapkalकौन थीं सिंधुताई सपकालसामाजिक कार्यकर्ता सिंधुताई सपकालसिंधुताई सपकालसिंधुताई सपकाल का निधनसिंधुताई सपकाल माई
प्रमोद कुमार

प्रमोद कुमार

Related Posts

economy
ज़रूर पढ़ें

क्या विश्व की चौथी बड़ी अर्थ व्यवस्था का सच जानते हैं आप?

May 26, 2025
स्वीट सिक्सटी: डॉ संगीता झा की कहानी
ज़रूर पढ़ें

स्वीट सिक्सटी: डॉ संगीता झा की कहानी

May 12, 2025
kid-reading-news-paper
कविताएं

ख़ज़ाना कौन सा उस पार होगा: राजेश रेड्डी की ग़ज़ल

April 21, 2025
Facebook Twitter Instagram Youtube
Oye Aflatoon Logo

हर वह शख़्स फिर चाहे वह महिला हो या पुरुष ‘अफ़लातून’ ही है, जो जीवन को अपने शर्तों पर जीने का ख़्वाब देखता है, उसे पूरा करने का जज़्बा रखता है और इसके लिए प्रयास करता है. जीवन की शर्तें आपकी और उन शर्तों पर चलने का हुनर सिखाने वालों की कहानियां ओए अफ़लातून की. जीवन के अलग-अलग पहलुओं पर, लाइफ़स्टाइल पर हमारी स्टोरीज़ आपको नया नज़रिया और उम्मीद तब तक देती रहेंगी, जब तक कि आप अपने जीवन के ‘अफ़लातून’ न बन जाएं.

संपर्क

ईमेल: oye.aflatoon@gmail.com
फ़ोन: +91 9967974469
+91 9967638520
  • About
  • Privacy Policy
  • Terms

© 2022 Oyeaflatoon - Managed & Powered by Zwantum.

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

- Select Visibility -

    No Result
    View All Result
    • सुर्ख़ियों में
      • ख़बरें
      • चेहरे
      • नज़रिया
    • हेल्थ
      • डायट
      • फ़िटनेस
      • मेंटल हेल्थ
    • रिलेशनशिप
      • पैरेंटिंग
      • प्यार-परिवार
      • एक्सपर्ट सलाह
    • बुक क्लब
      • क्लासिक कहानियां
      • नई कहानियां
      • कविताएं
      • समीक्षा
    • लाइफ़स्टाइल
      • करियर-मनी
      • ट्रैवल
      • होम डेकोर-अप्लाएंसेस
      • धर्म
    • ज़ायका
      • रेसिपी
      • फ़ूड प्लस
      • न्यूज़-रिव्यूज़
    • ओए हीरो
      • मुलाक़ात
      • शख़्सियत
      • मेरी डायरी
    • ब्यूटी
      • हेयर-स्किन
      • मेकअप मंत्र
      • ब्यूटी न्यूज़
    • फ़ैशन
      • न्यू ट्रेंड्स
      • स्टाइल टिप्स
      • फ़ैशन न्यूज़
    • ओए एंटरटेन्मेंट
      • न्यूज़
      • रिव्यूज़
      • इंटरव्यूज़
      • फ़ीचर
    • वीडियो-पॉडकास्ट
    • लेखक

    © 2022 Oyeaflatoon - Managed & Powered by Zwantum.