राजस्थान के रहनेवालों के मुंह से आपने कई बार सुना होगा, ख़ासकर रेतीले क्षेत्र के आसपास वालों से कि आज बाजरे का खिचड़ा बहुत याद आ रहा है. वैसे बात तो यह है कि घर से बाहर रहनेवालों को तो घर का पानी भी याद आता है! सुना होगा न कई लोगों को कहते हुए- मेरे गांव का तो पानी भी मीठा है, यहां के पानी में भी स्वाद नहीं… पर बाजरे का खिचड़ा याद करने वाले बहुत लोग हैं और आख़िर याद करें भी क्यों न? ये शरीर के लिए बहुत अच्छा भी होता है और राजस्थान में तो इसका ऐतिहासिक महत्व भी है!
बाजरे का खिचड़ा ऐसा व्यंजन है, जो ठंड और गर्मी दोनों में खाया जाता है, हालांकि ठंड में इसे ज़्यादा बनाया जाता है. और जब से बाजरा वापस से ट्रेंड में आया है, तब से इसकी बातें कुछ ज़्यादा ही सुनाई देने लगी हैं. अब आप कहेंगे बाजरा गया ही कब था? तो आपकी ये बात तो सही है गांवों में से ज्वार-बाजरा कभी गया ही नहीं, पर जैसे-जैसे शहरों में लोग सेहत को लेकर जागरूक होने लगे, तब सौ-सौ तरह के उपाय करने के बाद उन्हें पता लगा कि हमारे पुराने लोग जो चलता-फिरता अन्न या मोटा अन्न खाने के लिए कहते थे, वही स्वास्थ्य के लिए सबसे अच्छा था और फिर तो साहब बाज़ार ने जनता की नब्ज़ पकड़ ली… बाजरे के बिस्किट, बाजरे वाली ब्रेड, बाजरे की रोटी और अब तो बाजरे का केक, पिज़्ज़ा, नूडल्स तक आपको बाज़ार में मिलने लगे हैं. मतलब हर वो चीज़ जो मैदे या आटे से बनती थी, उसे बाजरे से बनाने की होड़-सी मचने लगी है. और कुछ न हो पर ये सब शरीर को फ़ायदा पहुंचाए या न पहुंचाए, पर कम से कम नुकसान नहीं पहुंचाएगा, ये मानकर लोग फ़ास्ट फ़ूड में भी बाजरे का प्रयोग बढ़ा रहे हैं.
आप कहेंगे भूमिका इतनी बड़ी, पर बाजरे के खिचड़ा की बात शुरू ही नहीं हुई. तो भई वो इसलिए की बाजरे का खिचड़ा एकदम बेसिक है. इसमें न आटा बनाना है न घोल. इसमें खड़े अनाज वाले सारे गुण हैं तो आप कह सकते हैं ये गुणों और स्वाद दोनों के मामले में बाजरे के अन्य व्यंजनों का सरदार है.
ऐतिहासिक रूप से बाजरे का महत्व: बाजरा और ज्वार का महत्व इसी बात से समझा जा सकता है कि पुराने समय में भारत में न मक्का था, न गेहूं और न ही चावल तो जो भी व्यंजन हम-आप आज चावल या गेहूं के आटे से बनाते हैं, वे सभी बाजरा या ज्वार से बनाए जाते थे. इसमें आप रोटी, घाट, इडली सबको शामिल समझिए. हां, पर जो व्यंजन आए ही बाद में, जैसे मुगलों या पुर्तगालियों के साथ तो वो अलग अन्न से तैयार हुए. पर हमारा मुख्य अन्न ज्वार-बाजरा ही रहा है, जो अब सारी दुनिया में लोहा मनवा रहा है.
अब यह मत सोचने लग जाइएगा कि भारत बाजरे के कारण महान है, क्योंकि दुनिया के हर देश में कोई स्थानीय अन्न हमेशा से मौजूद था, जो वहां की भौगोलिक परिस्थिति के हिसाब से वहां के लोगों के लिए अमृत के सामान था. और बाजरा केवल भारत के क्षेत्र में नहीं अफ्रीका में भी बहुतायत में प्रयोग में लिया जाता रहा है.
कैसे बनाया जाता है बाजरे का खिचड़ा: वैसे तो मैं यहां रेसिपी की बातें कम ही करती हूं, क्योंकि ज़रा-सा गूगल बाबा की मदद ली नहीं कि खिचड़ा हाज़िर हो जाएगा, पर ये बड़ी साधारण-सी, लेकिन बहुत पोष्टिक रेसिपी है इसलिए थोड़ी सी बात कर लेते हैं. एक कटोरी बाजरा लीजिए और उसपर पानी डालिए. बिल्कुल थोड़ा सा बस नम होने जितना, जैसे पानी के छींटे डाले हों (पानी में गलाना नहीं है) और इसे 15 मिनिट के लिए रख दीजिए. उसके बाद इस बाजरे को मिक्सर में डालिए और पल्स वाली सेटिंग पर 2-3 बार हल्का-हल्का चलाइए. इसे अब एक थाली में निकाल लीजिए और जैसे सूप से चावल फटके जाते हैं या मूंगफली दाने के छिलके छीलने के बाद फटक कर अलग किए जाते हैं, ठीक वैसे इसे फटकिए तो इसके छिलके अलग हो जाएंगे, जिन्हें अलग कर देना है और बचे हुए बाजरे को को कुकर में दोगुना पानी और स्वादानुसार नमक डालकर (कुछ लोग धुली हुई मूंग दाल भी मिलाते हैं, अगर आप वो करना चाहें तो एक मुट्ठी मूंग दाल धोकर मिला दीजिए) दो-तीन सीटी दें. फिर इसे खोलकर इसमें उबलता हुआ पानी डालना है और लगभग आधे और घंटे इसे खुला रखकर बार-बार हिलाते हुए पकाना है. बाद में अगर ज़रूरत लगे तो और गरम पानी मिलते जाएं और हाथ में बाजरे का कण लेकर चेक करें पूरी तरह नरम हो जाना चाहिए. बस जब ये पक जाए तो गुड़ और घी डालकर इसे खाइए. सर्दियों के मौसम में ये शरीर को गर्मी भी देता है और पोषण भी. और इसके स्वाद के दीवाने तो आपको कई मिल जाएंगे.
क़िस्से खिचड़े वाले: बाजरे के खिचड़े से कई कहानियां जुड़ी हुई हैं, पर जो कहानी सबसे ज़्यादा सुनाई जाती है, वो है कर्मा बाई की कहानी. ऐसा कहा जाता है कि एक बार कर्माबाई के पिताजी शहर से बाहर गए और अपनी बेटी को ठाकुर जी को भोग लगाने के लिए कह गए. कर्मा बाई ने बाजरे का खिचड़ा बनाया और भोग लगाया पर भगवन खाने नहीं आए. वो इंतज़ार करती रही. फिर उन्होंने कान्हा से कहा,‘आओ न कान्हा भोग लगाओ.’ तो भगवन ने कहा,‘तुमने कोई आड़ ही नहीं की मैं कैसे भोग लगाऊं?’ बस, कर्मा बाई ने अपने आंचल से आड़ की और भोग की थाली में से बाजरे का खिचड़ा ख़त्म हो गया .
दूसरा क़िस्सा ये बताया जाता है कि जगन्नाथपुरी में आज भी भगवन को पहला भोग बाजरे के खिचड़े का ही लगाया जाता है, क्योंकि जब कर्मा बाई जगन्नाथपुरी में बस गईं तो वो हर सुबह भगवान को इसी का भोग लगाती थीं. कहते हैं जब कर्मा बाई स्वर्ग सिधार गईं, तब भगवन जगन्नाथ की आंखों से आंसू बहते रहे और आवाज़ आती रही कि मेरी मान चली गई अब मुझे बाजरे का खिचड़ा कौन खिलाएगा? बस तभी से अब तक भगवन को पहला भोग खिचड़े का ही लगाया जाता है.
बाक़ी सारी बातें भावनाओं और श्रद्धा की हैं. मानो तो भगवान, नहीं तो पत्थर. पर ये सच है कि बाजरे का खिचड़ा सच में स्वादिष्ट और सुपाच्य भोजन है, जो शरीर को पोषण भी देता है और सर्द मौसम में शरीर को गर्म भी बनाए रखता है. तो देर किस बात की है? आप भी एक बार बनाइए और हमें बताइए कि आपको कैसा लगा बाजरे का खिचड़ा.
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट