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Home ज़ायका

चलिए, आपको ले चलें चॉकलेट की ऐतिहासिक सैर पर

कनुप्रिया गुप्ता by कनुप्रिया गुप्ता
May 7, 2022
in ज़ायका, फ़ूड प्लस
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चलिए, आपको ले चलें चॉकलेट की ऐतिहासिक सैर पर
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ख़ुशी ज़ाहिर करनी हो या ग़म गलत करना हो ‘कुछ मीठा हो जाए’ वाली बात दिमाग़ में ज़रूर आ जाती है. हम भारतीय हैं तो देसी मिठाइयां खाना तो हमारी पहचान है ही, पर जब कभी अचानक मीठा खाने का मन हो और पास में मिठाई न हो तो चॉकलेट किसी तारणहार की तरह नज़र आती है. तो आज हम करेंगे चॉकलेट की बातें.

याद कीजिए जब फ़िल्म ‘हम आपके हैं कौन’ आई थी तो माधुरी दीक्षित जब ये गाती थीं- चॉकलेट, लाइमजूस, आइसक्रीम, टॉफ़ियां/पहले जैसे अब मेरे शौक़ हैं कहां, तो इस गाने को सुन कर कितनी ही बार चॉकलेट के लिए दिल मचल जाता था. या फिर पुरानी वाली ‘ख़ूबसूरत’ फ़िल्म, रेखा वाली में, जब रेखा गाती हैं- कायदा कायदा आख़िर फ़ायदा और फिर कहती हैं अच्छा सोचो, सोच कर देखो खेत में उगती टॉफ़ी… तो आपके मन में कौन-सी टॉफ़ी आती है? जब मैं छोटी थी तो मेरे मन में पारले जी की छोटी लाल रंग वाली टॉफ़ी आती थी या किसमी बार. फिर जैसे जैसे थोड़े बड़े होते गए तो ये टॉफ़ियां बदलती चली गईं. अब शायद सोचूं तो दिमाग़ में कोई नट्स वाली चॉकलेट आए या फिर ऐसा ही कुछ और… या फिर शायद कुछ न भी आए. बड़ा होना कल्पना शक्ति को कम जो कर देता है.

वैसे जब छोटे थे तो हमने ये भी तो सोचा था कि एक बड़ा सा चॉकलेट फ़ाउंटेन हो. और जब बड़े हुए तो मॉल्स में हमें सच में ऐसे फ़ाउंटेन देखने को मिले. तो सच ये भी है चॉकलेट सच में एक ऐसी चीज़ है, जिसके साथ न जाने कितने तरह की कल्पनाएं की गई हैं और फ़्लेवर, स्वाद सबको लेकर कई तरह के प्रयोग भी अलग समय पर किए गए.

वैसे बात जब भी चॉकलेट की होती है तो आमतौर पर लोग खाने वाली चॉकलेट के बारे में सोचते हैं, पर आपको जानकार आश्चर्य होगा की शुरुआती तौर पर चॉकलेट की बात होती थी तो चॉकलेट खाने की नहीं पीने की बात होती थी. और ये जो हम आप अपने बच्चों को कहते हैं ज़्यादा चॉकलेट मत खाओ दांत सड़ जाएंगे इस बात का कोई तुक ही नहीं बनती थी, क्योंकि चॉकलेट का शक्कर से भी कोई लेना देना नहीं था.

इतिहास के झरोखे से चॉकलेट: चॉकलेट शब्द का सम्बन्ध स्पेनिश भाषा से बताया जाता है. लगभग 4000 साल पुराने इतिहास में भी कोको का उल्लेख मिलता है. ये कोको वही मुख्य घटक है, जिससे चॉकलेट बनाई जाती है. माया सभ्यता में भी कोको के प्रयोग का उल्लेख मिलता है. ख़ुशियों में, उत्सवों में कोको से बने पेय के आदान-प्रदान का उल्लेख भी मिलता है .उस समय ये पेय मीठा नहीं, बल्कि थोड़ा तीखा और कड़वा हुआ करता था.

इसके बाद एजटेक सभ्यता में चॉकलेट का उल्लेख मिलता है. माना जाता है कि एजटेक सभ्यता में ही कोको को, चॉकलेट को मीठे रूप में परिवर्तित किया गया. माया और एजटेक दोनों सभ्यताओं के लोग यह मानते थे कि कोको पवित्र और आध्यात्मिक बीज है और इसका प्रयोग जन्म, शादी और मृत्यु जैसे सभी उत्सवों में किया जाता था.

कोको के पेय का प्रयोग मेक्सिको में किया जाता था. साल 1580 में स्पेन के राजा ने मेक्सिको पर हमला किया और इसे जीत लिया. अपनी वापसी के समय वो चॉकलेट बनाने की विभिन्न सामग्रियां और मशीनें अपने साथ स्पेन ले गया और इस तरह चॉकलेट स्पेन पहुंची. शुरू शुरू में जब स्पेन के लोगों ने कोको से बने कड़वे पेय को पिया तो उन्हें इसका स्वाद बिल्कुल अच्छा नहीं लगा, पर जब इसमें शक्कर या शहद मिलाया गया तो यह उनके मन को भा गई. ये अब भी तरल रूप में ही थी. सत्रहवीं शताब्दी के दौरान इसका चलन पूरे यूरोप में हो गया और लोग इसे फ़ैशनेबल ड्रिंक मानने लगे. अमीर लोगों में इसका प्रचलन बढ़ गया. यह आम लोगों का पेय तब बना, जब भाप के इंजन बनने शुरू हुए और कोको से बड़ी मात्रा में पेय बनाना संभव हो सका.

वर्ष 1827 में एक वैज्ञानिक ने कोको पाउडर में से वसा को अलग करना सीखी और वर्ष 1847 में आधुनिक चॉकलेट के प्रारंभिक रूप का जन्म हुआ. वर्ष 1850 में ये पूरी तरह से चॉकलेट के रूप में आई. वर्ष 1868 में एक छोटी सी कंपनी कैड्बरी ने चॉकलेट बार बनाना शुरू किया और इसके कुछ वर्षों बात नेस्ले नाम की कंपनी ने मिल्क चॉकलेट को बाज़ार में उतारा. बस फिर यह चॉकलेट अपने क़दम आगे बढ़ाती गई और अलग अलग रूप, रंग, स्वाद में ढलती चली गई. बीसवीं सदी में ये अपने परिष्कृत रूप में पूरी दुनिया में फैल गई.

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चॉकलेट कल आज और कल: हम जब छोटे थे तो कोको पाउडर के प्रयोग से बनी चॉकलेट मिलती ही नहीं थी. हालांकि चॉकलेट के नाम से कुछ टॉफ़ियां मिला करती थीं. लेकिन पूरे भारत में कैड्बरी आसानी से नहीं मिलती थी. कैड्बरी, फ़ाइव स्टार जैसी चॉकलेट्स आजकल की तरह रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा नहीं थीं. पर जैसे जैसे समय बदला चॉकलेट ज़िंदगी का हिस्सा बनती चली गई. बार से लेकर आइसक्रीम तक, ड्रिंक्स से लेकर केक तक, मिठाइयों से लेकर गुझिया तक और यहां तक कि दोसा और सैंडविच तक चॉकलेट ने अपनी पहुंच बना ली.

अब तो चॉकलेट आपको हर घर में, हर छोटी-बड़ी दुकान में, हर त्यौहार में और हर ख़ुशी के मौक़े पर मिल ही जाती है. ज़्यादा मीठी, कम मीठी, थोड़ी कड़वी, बिना शक्कर की नट्स पर चढ़ी हुई और यहां तक कि पानी पूरी की पूरी में भरी हुई चॉकलेट, चॉकलेट आपको अलग ही दुनिया की सैर करवाती है. और हां! इस मुग़ालते में न रहें कि चॉकलेट शरीर को नुक़सान पहुंचाती है, क्योंकि जो नुक़सान होता है वो तो शक्कर की वजह से होता है. चॉकलेट की सीमित मात्रा तो शरीर को स्वस्थ रखने में अपना योगदान देती है.

फ़ोटो: पिन्टरेस्ट

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कनुप्रिया गुप्ता

कनुप्रिया गुप्ता

ऐड्वर्टाइज़िंग में मास्टर्स और बैंकिंग में पोस्ट ग्रैजुएट डिप्लोमा लेने वाली कनुप्रिया बतौर पीआर मैनेजर, मार्केटिंग और डिजिटल मीडिया (सोशल मीडिया मैनेजमेंट) काम कर चुकी हैं. उन्होंने विज्ञापन एजेंसी में कॉपी राइटिंग भी की है और बैंकिंग सेक्टर में भी काम कर चुकी हैं. उनके कई आर्टिकल्स व कविताएं कई नामचीन पत्र-पत्रिकाओं में छप चुके हैं. फ़िलहाल वे एक होमस्कूलर बेटे की मां हैं और पैरेंटिंग पर लिखती हैं. इन दिनों खानपान पर लिखी उनकी फ़ेसबुक पोस्ट्स बहुत पसंद की जा रही हैं. Email: [email protected]

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