बतौर एक भाषा हिन्दी के समाप्त होने की चिंता में जो लोग डूबे जाते हैं, उनके लिए यह बात राहत देने वाली होगी कि इंटरनेट और स्मार्ट फ़ोन पर सिमटती इस दुनिया में हिन्दी बाज़ार की भाषा बन गई है. इसका इस्तेमाल करने वालों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है. यही नहीं, कई और बातें हैं, जो हिन्दी के लिए सकारात्मक हैं और यहां हम उन्हीं बातों को उजागर कर रहे हैं.
यदि आप हिन्दी भाषा के प्रति लगाव रखते हैं तो आपको यह जानकर अच्छा लगेगा कि इन दिनों कंपनियों की बाजार की रणनीति ‘नेक्स्ट बिलियन यूजर्स’ को ले कर बनती है. एक इंटरव्यू में गूगल के नेक्स्ट बिलियन यूजर्स ऐंड पेमेंट्स के वाइस प्रेसिडेंट सीजर सेनगुप्ता ने भारत में इंटरनेट यूजर्स बताया कि भारत में जो नया वर्ग अब इंटरनेट से रूबरू हो रहा है, वो डेस्कटॉप या लैपटॉप के ज़रिए नहीं, बल्कि मोबाइल यानी स्मार्ट फ़ोन के ज़रिए हो रहा है और वो इसके वॉइस फ़ीचर का इस्तेमाल ज़्यादा कर रहे हैं. वहीं इंटरनेट का इस्तेमाल बढ़ने से ई-कॉमर्स वेबसाइट्स की संख्या भी बढ़ी है.
यदि बात पेमेंट ऐप्स की की जाए तो अधिकतर ऐप्स जैसे-पेटीएम, गूगल पे आदि ने अपने निर्देशों को हिन्दी में भी रखा है, ताकि उनके ग्राहकों की संख्या बढ़े. ज़ाहिर है इन कंपनियों के मालिकों की नज़र हिन्दी बोलने-लिखने वाले अपने ग्राहकों के बड़े तबके की ओर है. वहीं ऐमज़ॉन डॉट कॉम, जो दुनिया का सबसे बड़ा और भारत का सबसे तेज़ उभरता हुआ ई-कॉमर्स पोर्टल है, ने भी अपना हिन्दी वर्शन लॉन्च कर दिया है. मनोरंजन की दुनिया में मौजूद नेटफ़्लिक्स और ऐमज़ॉन प्राइम भी हिन्दीभाषी दर्शकों के लिए अलग से कंटेट बना रहे हैं. सोशल मीडिया में फ़ेसबुक, वॉट्सऐप, ट्विटर, इन्स्टाग्राम और कू के ज़रिए भी हिन्दी ख़ूब फल-फूल रही है. फ़ेसबुक तो कई भारतीय भाषाओं में उपलब्ध है ही, पर गूगल इंडिक और फ़ोनेटिक्स पर आधारित ऐसे की-बोर्ड की उपलब्धता के चलते, जिनसे भारतीय भाषाओं में सहजता से टाइप किया जा सकता है, हिन्दी अब बाजार की भाषा बन रही है. और जिस भाषा को बाज़ार अपना लेता है, उस भाषा का फलना-फूलना जारी रहता है.
आम लोगों तक पहुंच रही हैं हिन्दी की रचनाएं भी
आज हर बड़ा मीडिया हाउस, जो हिन्दी का अख़बार या पत्रिका निकालता है, उसका डिजिटल यानी ई-संस्करण भी निकाल रहा है, क्योंकि स्मार्ट फ़ोन के ज़रिए उसके कंटेट की पहुंच दूर-दराज़ के हिन्दी बोलने-पढ़ने वालों तक बन रही है. हिन्दी की कई बड़ी पत्रिकाएं इन दिनों बंद हो रही हैं, जबकि उनके वेब पोर्टल्स अच्छा कर रहे हैं. बारह भारतीय भाषाओं के लेखकों और पाठकों को जोड़ने वाले देश के सबसे बड़े डिजिटल प्लैटफ़ॉर्म प्रतिलिपि पर अभी हिन्दी के 30,000 से अधिक लेखक हैं. हिन्दी में टाइप करने में जो अड़चनें आती थीं, उन्हें गूगल फ़ोनेटिक की बोर्ड या जीबोर्ड ने दूर कर दिया है. डिजिटल माध्यमों की वजह से अब लोगों को हिन्दी हर जगह दिखने लगी है. लोग सोशल मीडिया पर ख़ुद को हिन्दी में अभिव्यक्त करने लगे हैं. पहले लोग हिन्दी के लेखकों को पहचानते नहीं थे. सोशल मीडिया के कारण हिन्दी के लेखकों को नई पहचान मिली है.
प्रकाशकों, लेखकों, पाठकों की राह आसान हुई है
डिजिटल प्लैटफ़ॉर्म के चलते किताबों की लेखकों और पाठकों तक पहुंच आसान हो गई है. सूचना क्रांति जैसे-जैसे विकसित हुई, जैसे-ईमेल, ई-कॉमर्स, सोशल मीडिया और अन्य तकनीकें, वैसे-वैसे प्रकाशन के कार्यों में भी सुगमता आई. पाठक पहले किसी पुस्तक को पाने यहां-वहां भटकते थे, अब वो सोशल मीडिया के ज़रिए तुरंत प्रकाशकों से कनेक्ट हो कर पुस्तकें मंगा लेते हैं. इससे हिन्दी की किताबों की बिक्री भी बढ़ी है.
कई नए प्रकाशन संस्थान ऐसे हैं जिनका 90% से अधिक व्यापार इंटरनेट आधारित ही है. इस वजह से प्रकाशकों और लेखकों की आय में भी बहुत वृद्धि हुई है. पाठक इंटरनेट और ई-कॉमर्स के चलते किताबें देश-विदेश में कहीं से भी मंगा सकते हैं. इससे किताबों के रख-रखाव का, वितरण का ख़र्चा कम हुआ. प्रकाशकों की रिस्क कम हुई है. अब वे मांग के मुताबिक़ किताबों का प्रकाशन करते हैं. वहीं, यूनीकोड फ़ॉन्ट्स के आ जाने से लोग इंटरनेट पर हिन्दी का इस्तेमाल करने लगे, जिससे इंटरनेट पर हिन्दी का यूज़र जनरेटेड कंटेट बढ़ गया. इस सब से हिन्दी का एक ईको सिस्टम बना, जिससे हिन्दी के पेशे से जुड़े सभी लोगों को फ़ायदा हुआ. लोगों तक पहुंच बढ़ी तो कमर्शल फ़ायदा भी बढ़ा.
डिजिटल प्लैटफ़ॉर्म हिन्दी को समृद्ध बना रहा है
डिजिटल प्लैटफ़ॉर्म पर लेखकों को नए-नए पाठक भी मिल रहे हैं. ऐसे लोग भी पढ़ने लगे हैं, जो पहले नहीं पढ़ते थे. इससे कई तरह के नए रास्ते खुले हैं. पहले लेखक पत्रिकाओं में या प्रकाशकों के पास छपने की आस में इंतज़ार करते थे, पर अब ऐसा नहीं है. इस प्लैटफ़ॉर्म पर कई लेखकों को पढ़ा जा रहा है, उन्हें पसंद किया जा रहा है. हिन्दी साहित्य के कई लोगों का मत है कि ऐसा नहीं होना चाहिए, लेकिन जो लोग लिख रहे हैं, उन्हें पाठक मिल रहे हैं तो इसमें गलत क्या है? डिजिटल के आने से हिन्दी में जो नए प्रयोग हो रहे हैं, वो भाषा को समृद्ध कर रहे हैं और करते रहेंगे.
एक सच यह भी है कि सूचनाओं को प्रसारित करने में और लोगों तक पहुंचाने में ई-कॉमर्स और सोशल मीडिया ने सामन्य लोगों के अलावा लेखकों और प्रकाशकों की बहुत मदद की है. पुस्तक के प्रकाशन की सूचना को लोगों तक पहुंचाने में सोशल मीडिया का और उनकी ख़रीद को आसान बनाने में ई-कॉमर्स वेबसाइट्स का बहुत योगदान है. कई ऐसे लेखक हैं, जिन्हें प्रिंटिंग की दुनिया में पहचान नहीं मिली, लेकिन इंटरनेट पर उनका एक बड़ा पाठक वर्ग है. पर इसका एक ड्रॉ-बैक बस यही है कि आपको अपने पसंद का साहित्य खुद ढूंढ़ना होता है. कुल मिलाकर यह निश्चित तौर पर कहा जा सकता है कि इंटरनेट, स्मार्ट फ़ोन और डिजिटल प्लैटफ़ॉर्म ने हिन्दी भाषा सहित हिन्दी लेखक, प्रकाशक, पाठक और साहित्य का स्वरूप बदल दिया है.
कुछ आंकड़े, जो हिन्दी प्रेमियों को उत्साह से भर देंगे
* वर्ष 2018 के एक सर्वे के अनुसार, इंटरनेट पर हिन्दी कंटेट की खपत 94% की दर से बढ़ रही है.
* गूगल के अनुमान के मुताबिक़, वर्ष 2021 के आते-आते भारत में इंग्लिश की तुलना में हिन्दी के इंटरनेट इस्तेमालकर्ताओं की संख्या कहीं ज़्यादा हो जाएगी.
* इंटरनेट पर देखे जाने वाले वीडियोज़ में से 95% स्थानीय भाषाओं के होते हैं.
* इंटरनेट पर वॉइस सर्च हर वर्ष 270% की रफ़्तार से बढ़ रहे हैं.
ऑक्स्फ़ोर्ड डिक्शनरी में मौजूद हैं हिन्दी के कई शब्द
वर्ष 2017 तक भारतीय भाषाओं के लगभग 900 शब्द ऑक्स्फ़ोर्ड डिक्शनरी में मौजूद थे. वर्ष 2018 में 90 भारतीय शब्दों को इसमें शामिल किया गया. इसमें हिन्दी, तेलगू, तमिल और गुजराती के शब्द तो थे ही, पर भारतीय अंग्रेज़ी के शब्द भी थे. हिन्दी के वो शब्द, जिन्हें इस डिक्शनरी में जगह मिली वो हैं: जुगाड़, दादागिरी, अच्छा, बापू, चुप, सूर्य नमस्कार, नाटक, चुप वगैरह. यहां ग़ौर करने वाली बात यह है कि अग्रेज़ी भाषा, हिन्दी भाषा के अलावा कई और भाषाओं के शब्दों से समृद्ध हो रही है. ऐसे ही यदि अन्य भाषाओं से हिन्दी भाषा भी समृद्ध होती रहे तो इंटरनेट के इस युग में हिन्दी का बचे रहना, फलते रहना तय-सा दिखाई देता है.
फ़ोटो: फ्रीपिक