हार्ट अटैक का डर यानी कार्डियोफ़ोबिया आजकल के युवाओं के दिमाग़ में अपनी जगह बनाते जा रहा है. हमारे अपने लेखक व चिकित्सक डॉ अबरार मुल्तानी बता रहे हैं कि आख़िर क्या है इस डर का कारण? आप और हम जैसे लोग इस डर को कैसे हारा सकते हैं? क्योंकि हमें डरना छोड़कर, जीना शुरू करना ही जीने का सही तरीक़ा है.
तीस साल से लेकर पैंतालीस साल की उम्र के बीच के रोगी मेरे पास आते हैं और अपने सीने और उल्टे हाथ की तरफ़ कुछ दिनों या महीनों से हो रहे दर्द को कुछ डरते और झेंपते हुए बताते हैं, तो मैं समझ जाता हूं कि यह हार्ट अटैक से डरे हुए हैं. हार्ट अटैक का डर इस उम्र के लोगों को केवल इसलिए नहीं होता कि वह इस रोग से मर सकते हैं, बल्कि इसकी ज़्यादा बड़ी वजह यह होती है कि उन्हें लगता है उनके छोटे-छोटे बच्चों का उनके बाद क्या होगा? इस उम्र में अमूमन लोगों के बच्चे छोटे होते हैं, वह स्कूल जा रहे होते हैं या कॉलेज में जाने की तैयारी कर रहे होते हैं, उनका करियर सेट नहीं हुआ होता है और वे उन पर पूर्ण रूप से निर्भर होते हैं. ऐसे में यह डर उन्हें सताता है कि यदि हमारी अचानक मृत्यु हो गई तो हमारे बच्चों का क्या होगा?
यह है हार्ट अटैक फ़ोबिया
इस डर के चलते हुए वह एक फोबिया से ग्रस्त होते हैं: हार्ट अटैक फ़ोबिया. ऐसे में वे हर उस दर्द और लक्षण को हार्ट अटैक समझने लगते हैं, जिसके बारे में उन्होंने सुन रखा होता है कि हार्ट अटैक में ऐसा ऐसा दर्द होता है. जैसे सीने में दर्द, भारीपन, उल्टे हाथ की तरफ़ दर्द, जबड़े में दर्द, पेट के ऊपरी हिस्से के बीच या उल्टे हाथ की तरफ़ दर्द होने, पसीना आने, घबराहट होने पर वह ख़ुद को हार्ट अटैक से ग्रसित मान लेते हैं. उन्हें लगता है कि उन्हें हृदय रोग ही है. जब उन्हें किसी और समस्या की वजह से यह लक्षण आते हैं तो वे डरते हैं, उनका डरा हुआ मस्तिष्क उनके लक्षणों को और उभार देता है जिससे लक्षण और उभरते हैं फिर डर और बढ़ता है. ऐसे में एक घातक चक्र बन जाता है डर और लक्षणों का.
कैसे यह डर बन जाता है एक फंदा
अचानक मृत्यु से सबको डर लगता है और हार्ट अटैक इसीलिए डरावना है, क्योंकि यह अचानक होने वाली मृत्यु की एक सबसे बड़ी वजह है. लेकिन बेवजह डरना ग़लत है. ग़लत क्या यह अपने आप में ही एक रोग है. फ़ोबिया. कार्डियोफ़ोबिया. एक मानसिक रोग है.
सीने के दर्द का यह मरीज़ डरा हुआ होता है और साथ ही चिकित्सक भी कोई रिस्क लेना नहीं चाहता और ना ही परिजन. ऐसे में वह कुछ जांच करवा कर चाहे सामान्य आई हो तो भी उसे कुछ दवाइयां शुरू कर देता है जैसे कि एक ब्लडथिनर, एक कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने की दवाई और कुछ अन्य. यह दवाई फिर छोड़ना मुश्क़िल होता है क्योंकि जब दवाई दे दी जाती है तो आप ख़ुद को हृदय रोगी समझने लगते हैं और दवाइयों को छोड़ने से आप, आपके परिजन और आपका चिकित्सक तीनों बचना चाहते हैं. क्योंकि तीनों ही कोई रिस्क लेना नहीं चाह रहे होते हैं. फिर यह एक तरह का ट्रैप बन जाता है. जीवनभर के लिए.
डरना नहीं, तो करना क्या चाहिए?
मेरी सलाह ऐसे रोगियों को यह होती है कि वह अपने डर को और अपने रोग को अलग-अलग करके देखें. अमूमन सीने का दर्द, गर्दन का दर्द या उल्टे हाथ का दर्द नर्वाइन पेन (नसों) की वजह से या मस्कुलो स्केलेटल (मांसपेशियों और हड्डियों) पेन की वजह से होता है. जिसके कारण रोगी को कई कई दिनों तक यह पेन होते रहते हैं.
सीने में बीच की तरफ़ दर्द या पेट में ऊपर की तरफ़ दर्द की वजह गैस, एसिडिटी, टेंशन और एंज़ाइटी हो सकती है. ऐसे में हमें इन सब का एक अच्छे चिकित्सक से परीक्षण करवा लेना चाहिए. और अपने रोग को पहचान कर केवल उसी की दवाई लेना चाहिए. यदि आप आस्तिक हैं तो स्वीकार कीजिए कि वक़्त से पहले आपकी मृत्यु नहीं हो सकती. यदि आस्तिक नहीं हैं तो मेरी यह बात तर्क के आधार पर स्वीकार कर लीजिए कि हर सीने का दर्द हार्ट अटैक नहीं होता, उसकी बहुत सी दूसरी वजहें भी हो सकती हैं. डरना छोड़िए और जीना शुरू कीजिए.
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