आख़िर जिस विकास की बात हम करते हैं, वह क्या है? क्या वह देश में चमचमाती हुई चीज़ों का जमावड़ा सजा देने में है या फिर देश के सभी नागरिकों का सही मायने में शिक्षित और सभ्य होने में है? उन्हें समान अवसर देकर उनके जीवनस्तर को सुधारने में है? इस बात को अपने इस सुंदर नज़रिए से समझा रही हैं भावना प्रकाश.
बहुत पुरानी बात है. एक राज्य में एक सुंदर, विशाल और समृद्ध घर था. घर का मुखिया सही मायनों में शिक्षित अर्थात सुलझी हुई मनोवृत्ति का था. उसके घर के सभी सदस्य, परिश्रमी, सुगढ़ और समय नियोजन में कुशल थे. सबके पास समान अधिकार थे तथा सब अपने कर्तव्यों को बखूबी समझते थे. कलात्मकता भी उनमें कूट-कूट कर भरी थी. इसीलिए उनका घर इतना सुंदर लगता था जैसे घर न होकर कोई प्रदर्शनी हो.
पास ही एक किराए के घर में रहने वाले उनके एक अशिक्षित गरीब पड़ोसी उनके घर को देख-देखकर बहुत ललचाते थे. वे सोचते रहते थे कि किसी प्रकार उनका घर भी वैसा ही हो जाए. वो पडोसी के घर की चमचमाती ख़ूबसूरत कलात्मक चीज़ो को देख कर अक्सर ठंडी सांसे भरते और उनके जैसा ‘सुख’ पाने के लिए मेहनत में जुट जाते. उनके बुज़ुर्ग भी उन्हें प्रोत्साहित करते. अपने बच्चों को खुश देखने और उनकी इच्छा पूरी करने के लिए वे भी दिन-रात मेहनत करते. पर पिता और पुत्र की चाहत में एक फर्क था. पिता उस जीवन शैली को अपनाना चाहता था जो ‘सुख’ लाती है. इसीलिए वह प्रायः बच्चों को प्रोत्साहन तथा शिक्षा देते रहते. बुज़ुर्गों ने बचपन से ही उस घर की समृद्धि के कारणों के उदाहरण नई पीढ़ी को प्रोत्साहित करने के लिए दिए थे पर नई पीढ़ी का आकर्षण समृद्धि पर गहराता गया था.
नियति के खेल निराले होते हैं. एक समय ऐसा आया जब वो समृद्ध पड़ोसी अपना घर सामान समेत बेचकर किसी दूर देश जाने को हुए. गरीब पड़ोसियों को पता चला तो वो बौखला गए. अपनी सारी जमा पूंजी, कितना उधार मिल सकता है, सब टटोलने लगे. पिता की पीढ़ी जानती थी कि वह घर यदि मिल जाए तो भावी पीढ़ी के लिए बहुत उपयोगी होगा. एक खुला हवादार घर, हर सदस्य के लिए पर्याप्त स्थान वाला घर सच में समृद्धि तथा सुख लाने में उपयोगी होता है, ये वे जानते थे.
उनके पास एक ख़ज़ाना था जिसे धरती से बाहर लाने के लिए कुछ बलिदान ज़रूरी थे. पुरानी पीढ़ी ने बच्चों का तनाव देखा, उनका चाव देखा और एक-दूसरे की आँखों में देखकर कुछ कहा. अगले दिन से घर में एक के बाद एक त्रासदियां होने लगीं. अपने बुज़ुर्गों की मौत पर भावी पीढ़ी चीत्कार कर उठती पर कुछ समझ न पाती. और एक दिन ऐसा आया जब अंतिम बुज़ुर्ग मरणासन्न अवस्था में दिखे. बच्चे उन्हें घेर कर बैठ गए. रोने चिल्लाने और ईश्वर से प्रार्थना करने लगे. तब बुज़ुर्ग ने अपनी पीढ़ी के इस कठिन निर्णय का कारण बताया, उस यातना के बारे में बताया जो ख़ज़ाना बाहर निकालने के लिए सही गई और सबसे बड़े बच्चे के हाथ में चाबी दी. वो और उसकी पीढ़ी के सभी बच्चे तड़प उठे.
शोकाकुल तथा आत्मग्लानि से युक्त बेटे ने चाबी फेंक दी कि इस कीमत पर उन्हें कुछ भी नहीं चाहिए. पर अंतिम सांसें गिनते अंतिम बुज़ुर्ग ने उन्हें अंतिम उपदेश दिया. उन्होंने बताया कि ये बलिदान उस घर की चमक-दमक तुम्हें दिलाने लिए नहीं हैं, बल्कि इसलिए हैं कि ‘अपना’ घर, एक बड़ा और स्वस्थ भौगोलिक स्थिति वाला घर व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक है. फिर राजा के द्वारा बहुत सी सुविधाएं और समाज से आत्मसम्मान उसी परिवार को मिलता है, जिसका घर ‘अपना’ हो. तुम लोग अपने घर को पाकर ही उस जीवन शैली को अपना सकते थे, जिससे आत्मसम्मान, आत्मसम्मान से आत्मविश्वास और उसमें मेहनत के जुड़ने से समृद्धि मिलती है. हमारे जाने का दुःख न करना, शिक्षा प्राप्त करना और मिलजुल कर अपना अधिक विकास करना.
बुज़ुर्ग चले गए पर आगे की त्रासदी अधिक करुणादाई है. कुछ साल तो बड़े बेटे ने कोशिश की पर उसके निधन के बाद स्थितियां बिल्कुल बदल गईं. नई पीढ़ी ने बुज़ुर्गों के बलिदान का मर्म न जाना और घर की सुंदरता के उपभोग में लग गए. कुछ ही समय में वो घर उनके किराए वाले घर की भांति कांतिहीन और तनावग्रस्त हो गया.
हमारे राष्ट्र की कहानी भी कुछ ऐसी ही है, जिसके आगे हमें कुछ सुखदाई लिखना चाहिए.
हम सब जानते हैं कि चमचमाती ख़ूबसूरत कलाकृतियां और मंहगे फ़र्नीचर सुख और समृद्धि नहीं हैं, वे सुख और समृद्धि का परिणाम हैं. सुख है परिवार के सदस्यों को मिलने वाला आपसी प्रेम और भावनात्मक सुरक्षा जो पारिवारिक सदस्यों को समृद्धि अर्जित करने की प्रेरणा देती है और समृद्धि है परिवार के सभी सदस्यों का नियोजित एवं सकारात्मक विकास. यदि किसी परिवार में ये हो जाए तो चमकती सुंदर कृतियाँ तो स्वतः ही खिंची चली आएंगी.
इसी प्रकार चमचमाते पुल, जगमगाती इमारतें, लपलपाती बिजलियों से सज्जित शॉपिंग मॉल और महंगी गाड़ियों की दौड़ से चकाचौंध कर देने वाली सड़कें विकास नहीं हैं. जो पाश्चात्य देशों में दिखाई पड़ता है वो तो विकास का परिणाम है. विकास है समाज में एकता, समानता और शुचिता. विकास है शिक्षा, स्वास्थ्य और न्याय के अधिकारों का सबके लिए समान होना. विकास है एक भयमुक्त माहौल, जिसमें व्यक्तित्क विकास पाते हैं. विकास है देश में आर्थिक और सामाजिक वैष्म्य का न्यूनतम होना. विकास है देश के सभी नागरिकों का सही मायने में शिक्षित और सभ्य होना. सबको शिक्षा, तथा विकास के समान अवसर प्राप्त होना. अगर हमने ये पा लिया तो बाकी सभी रौनके तो स्वयं खिंची चली आएंगी. और आज दुर्भाग्य से विकास की सही परिभाषा ही बदल गई है. विकास यात्रा के आरंभ के लिए ज़रूरी है कि हम विकास की सही परिभाषा समझें और तब उस दिशा में कदम आगे बढ़ाएं और सरकारों पर भी उसी विकास का दबाव बनाएं.
फ़ोटो: पिन्टरेस्ट, फ्रीपिक