यदि आप भी भारत के लोकप्रिय हिन्दी उपन्यासकार सुरेन्द्र मोहन पाठक की लेखनी के मुरीद हैं तो आपको जानकर ख़ुशी होगी कि उनकी आत्मकथा का तीसरा खंड- निंदक नियरे राखिए अब पाठकों के लिए बाज़ार में उपलब्ध हो गया है.
रहस्य-रोमांच से भरे अपने उपन्यासों के जरिये लाखों-लाख पाठकों को अपना मुरीद बना चुके पाठक की आत्मकथा के दो खंड न बैरी न कोई बेगाना और हम नहीं चंगे बुरा न कोय पहले ही छप चुके हैं और व्यापक रूप से प्रशंसित रहे हैं.
अपने शुरुआती जीवन की कथा उन्होंने न बैरी न कोई बेगाना में लिखी है और लेखकीय जीवन के हलचल भरे दिनों की कथा हम नहीं चंगे बुरा न कोई में बयान की है.
राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित उनकी आत्मकथा के इस तीसरे खंड निंदक नियरे राखिए में उन्होंने अपने उन दिनों की कहानी कही है, जब उपन्यासकार के रूप में उनकी ख्याति बढ़ती जा रही थी और वे दुनियादारी के नए चेहरों से परिचित हो रहे थे. इसमें एक ओर पाठकों और प्रशंसकों की दीवानगी के हैरान कर देने वाले क़िस्से हैं तो दूसरी ओर प्रकाशकों से बनते-बिगड़ते रिश्तों की बेबाक यादें हैं.
सुरेन्द्र मोहन पाठक के सबसे प्रसिद्ध उपन्यास थे: असफल अभियानऔर खाली वार. वर्ष 1977 में छपे उनके उपन्यास पैंसठ लाख की डकैती की अब तक ढाई लाख प्रतियां बिक चुकी हैं. पाठक जी के अब तक 300 से अधिक उपन्यास छप चुके हैं.
लेखक: सुरेन्द्र मोहन पाठक
पुस्तक: निंदक नियरे राखिए
सेगमेंट: आत्मकथा
प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन
बाइंडिंग: पेपरबैक
मूल्य: 299/-