आपका वही बच्चा जो सालभर पहले तक आपकी सभी बातें आसानी से मान लेता था, इन दिनों सवाल-जवाब करता है, पलटकर जवाब देता है, बहस करता है? मुबारक हो… अब आप एक टीनएजर के माता-पिता हैं. इस दौरान पैरेंटिंग में आगे का रास्ता थोड़ा कठिनाई से भरा तो है, लेकिन यदि सही तरीक़े से प्रयास किया जाए तो इस राह की सभी चुनौतियों से आप और आपका बच्चा आसानी से निपट सकेंगे.
आप भी तो किशोर अवस्था यानी टीनएज से गुज़री हैं, ये बात आपने अपने बच्चे को बताई ही होगी और यह भी कहा होगा कि आप उसकी समस्याओं को समझती हैं. पर सच्चाई ये है कि आपकी और आपके बच्चे की टीनएज के बीच समय का जो बड़ा-सा अंतराल है ना, उसकी वजह से आप उसके समय की परेशानियों को बहुत कम या न के बराबर ही समझ पाती हैं. यदि आप इस बात को मन ही मन स्वीकारते हुए अपने टीनएजर के साथ बात करेंगी तो आप दोनों के बीच की बातचीत ज़्यादा प्रभावी होगी.
यदि आपका बच्चा आपको पलटकर जवाब देने लगा है तो समय आ गया है कि कुछ बातों को ज़हन में रखते हुए टीनएजर के साथ पेश आएं, ताकि आपके रिश्ते पहले की तरह ख़ुशनुमा बने रहें. हां, टीनएजर का अभिभावक होने के नाते आपके दिमाग़ में ये सूत्र-वाक्य भी हमेशा चलते रहना चाहिए-मुझे आपा नहीं खोना है, मुझे आपा नहीं खोना है… और आप पाएंगी टीनएजर की पैरेंटिंग उतनी भी कठिन नहीं है, जितना आप सोचती थीं.
अपने बच्चे का सम्मान करें: भले ही वे बड़े ही नहीं हुए हैं, उनकी सोच में अपरिपक्वता है, लेकिन ये तो आप मानेंगी कि हम जैसा व्यवहार दूसरों से चाहते हैं, वैसा ही व्यवहार हमें उनके साथ करना चाहिए. यह पहला मूलमंत्र है, जिसे अपने टीनएजर बच्चे की पैरेंटिंग के लिए आपको हमेशा ध्यान में रखना होगा. उन्हें सम्मान दीजिए और उनसे सम्मान पाइए.
उनपर कोई लेबल चस्पां न करें: अपने बच्चे पर कोई लेबल लगा देना, जैसे- तुम तो आलसी हो; तुम झूठ बोलती/बोलते हो; तुम बात ही नहीं सुनती/सुनते, बहुत ख़राब आइडिया है. लेबल लगा देने का सीधा मतलब यह होता है कि आपने मान लिया है कि वे ऐसे हैं और इससे बदलाव की गुंजाइश ही ख़त्म हो जाती है. बजाय इसके, उनसे यह कहें कि इस बार तुमने ऐसा किया है, लेकिन मुझे उम्मीद है कि अगली बार तुम ऐसा नहीं करोगी/करोगे.
जब वे नाराज़ हों तो बात न करें: यदि आपका टीनएजर नाराज़ है तो उससे किसी तरह की बात न करें. समझाने की कोशिश तो क़तई न करें. कुछ देर के लिए उन्हें उसी स्थित में छोड़ दें. जब उनकी नाराज़गी शांत हो जाए, तब बात करें. ज़रूरी नहीं कि बात उसी दिन की जाए, अगले दिन भी की जा सकती है या फिर कोई माकूल मौक़ा देखकर की जा सकती है.
उन्हें बड़बड़ाने दें: यदि वे ग़ुस्से में कुछ बड़बड़ा रहे हैं तो उन्हें ऐसा करने दें. टीनएज में उनके भीतर बहुत से बदलाव हो रहे होते हैं, जिनमें हॉर्मोनल बदलाव भी शामिल हैं. वे जीवन को समझना सीख रहे होते हैं. ऐसे में अपने भीतर का ग़ुबार निकालने के लिए यदि वे कुछ बड़बड़ाते रहते हैं तो आप उस पर ध्यान न दें और रिऐक्ट तो बल्कुल न करें. इस तरह वे अपने भीतर के तनाव से राहत पाने की कोशिश करते हैं तो उन्हें ऐसा करने दिया जाना चाहिए.
कम्यूनिकेशन स्किल सुधारें: उनकी नहीं, आपकी अपनी. टीनएजर को ज़्यादा बोलने दें, ताकि उनके मन के भीतर क्या चल रहा है, वह बाहर आ सके. यदि आप उन्हें ध्यान से सुनेंगी तो वे राहतभरा महसूस करेंगे. जब भी उनसे प्रभावी बातचीत करना चाहती हों तो अपनी बातचीत को बिल्कुल उस मुद्दे तक ही सीमित रखें और इस बात को बहुत संक्षिप्त रखें. जब वे नाराज़ हों तो आप अपना आपा न खोएं, बल्कि शांत रहें. धीरज से उनकी बात सुनें.
नियम बनाएं, लेकिन बदलाव की गुंजाइश रखें: आपको क्या स्वीकार्य है और क्या नहीं, इसके नियम बनाएं. अपने टीनएजर को इससे अवगत कराएं और कुछ बुनियादी नियमों में कभी समझौता न करें. लेकिन समय और परिस्थिति के अनुसार कुछ एक नियमों में हल्का-सा बदलाव कर आप उन्हें ढील दे सकती हैं, जैसे- यदि शाम को घर लौटने का समय सात बजे का है तो किसी दिन इसे रात आठ बजे में तब्दील करने की ढील तो दी ही जा सकती है.