फ़ॉर्मूला इंडस्ट्री के नाम से मशहूर बॉलिवुड में आमिर ख़ान उन चुनिंदा कलाकारों-फ़िल्मकारों में हैं, जिन्होंने उम्र के साथ-साथ अपने कंटेंट में भी मैच्योरिटी और विविधता दिखाई है. आइए, उनकी ऐसी ही 15 अनूठी फ़िल्मों के बारे में जानते हैं, जिन्हें हर भारतीय सिनेमाप्रेमी को ढूंढ़कर देखनी चाहिए.
हिंदी फ़िल्म इंडस्ट्री यानी बॉलिवुड को फ़ॉर्मूला इंडस्ट्री भी कह सकते हैं. यहां के ज़्यादातर ऐक्टर हों या डायरेक्टर उनकी सफलता का एक सेट फ़ॉर्मूला होता है. जहां निर्देशक जाने-अनजाने वे अपनी हिट फ़िल्मों की विधा यानी जॉनर को दोहराते हैं, वहीं अभिनेता-अभिनेत्रियां एक ही तरह की भूमिकाएं निभाते-निभाते टाइपकास्ट हो जाते हैं. बॉलिवुड में बहुत कम लोग हैं, जो सफलता के बावजूद अपने नए प्रोजेक्ट्स में नए एक्सपेरिमेंट्स करते हैं. उनमें से सबसे प्रमुख नाम है आमिर ख़ान का. आप उनकी फ़िल्म यात्रा पर नज़र डालेंगे तो पाएंगे कि अपने तीन दशक लंबे करियर में किरदारों में मामले में जितनी विविधता इस अभिनेता ने दिखाई है, शायद ही कोई दूसरा दिग्गज अभिनेता उसके आसपास भी खड़ा होगा. यही बात फ़िल्मों के उनके चुनाव पर भी नज़र आती है. उनके फ़िल्में अलग-अलग विषयों पर आधारित होती हैं. बेशक, उन्होंने कई मसाला फ़िल्में भी की हैं, पर सरसरी तौर पर देखने पर आप पाएंगे कि उनकी फ़िल्मों में भी विविधता है. आइए, आज हम आमिर की 15 ऐसी ही फ़िल्मों की बात करते हैं.
फ़िल्म #1: क़यामत से क़यामत तक
यह बतौर लीड ऐक्टर आमिर ख़ान की पहली फ़िल्म थी. नफ़रत के वारिस नाम से बन रही इस फ़िल्म का नाम बदलकर क़यामत से क़यामत तक कर दिया गया था. इसे रोमियो-जूलिएट के इंडियन एडॉप्शन के तौर पर देख सकते हैं. इस फ़िल्म में आमिर के किरदार का नाम था राज. फ़िल्म की सफलता ने आमिर को रातों-रात बॉलिवुड का चमकता सितारा बना दिया. लवर बॉय की उनकी इमेज को आगे की कुछ फ़िल्मों में भुनाने की कोशिश की गई, जो नाकाम हो गई और उसके बात आमिर ने अपने दिल को पसंद आनेवाली स्क्रिप्ट्स को ‘हां’ कहनी शुरू की. आगे की फ़िल्में कुछ ऐसी ही हैं.
फ़िल्म #2: जो जीता वही सिकंदर
क़यामत से क़यामत तक के बाद अगले तीन सालों में रिलीज़ हुई आमिर ख़ान की ज़्यादातर फ़िल्में बॉक्स ऑफ़िस पर बुरी तरह फ़्लॉप रहीं. इस बीच केवल ‘दिल’ ही उनकी एकमात्र हिट फ़िल्म रही. लवर बॉय की इमेज से बाहर निकालने में अगली बड़ी फ़िल्म थी जो जीता वही सिकंदर. यह एक स्पोर्ट्स फ़िल्म थी. संजय लाल शर्मा उर्फ़ संजू नामक बेपरवाह लड़के की भूमिका में आमिर ने दर्शकों का दिल जीत लिया. भाई के अधूरे सपने को पूरा करने के लिए वह जिस तरह ज़िंदगी को लेकर गंभीर होता है, देखने लायक था.
फ़िल्म #3: अंदाज़ अपना-अपना
निर्देशक राजकुमार संतोषी की यह फ़िल्म बॉक्स ऑफ़िस फ़ेलियर थी, बावजूद इसके कि इसमें नब्बे के दशक के दो बड़े सितारे सलमान ख़ान और आमिर ख़ान पहली बार स्क्रीन शेयर कर रहे थे. हालांकि टीवी पर प्रदर्शित होने के बाद इस फ़िल्म को दर्शकों ने इतना प्यार दिया कि इसे कल्ट कॉमेडी का रुतबा हासिल हो गया है. इस फ़िल्म में क्रमश: अमर मनोहर और प्रेम भोपाली नामक किरदार निभा रहे आमिर और सलमान दोनों ही ओवरऐक्टिंग करते नज़र आते हैं, पर गुदगुदाने में कहीं से कोई कमी नहीं छोड़ते.
फ़िल्म #4: रंगीला
नब्बे के दशक की सबसे चर्चित फ़िल्मों में रंगीला का नाम हमेशा लिया जाएगा. इसका निर्देशन सत्या फ़ेम डायरेक्टर रामगोपाल वर्मा ने किया था. लोकल टपोरी मुन्ना की भूमिका में आमिर ने प्रभावित किया था. हालांकि इस फ़िल्म को रामगोपाल वर्मा और उर्मिला मातोंडकर की फ़िल्म बताया जाता है, पर लव ट्रैंगल वाली इस फ़िल्म में आमिर ख़ान और जैकी श्रॉफ के किरदार भी बेहद अहम थे. आमिर ख़ान अपने फ़िल्मी सफ़र के उस दौर में पहुंच गए थे, जहां वे भारतीय सिनेमा के बेहद इम्पैक्टफ़ुल अभिनेता बनने जा रहे थे.
फ़िल्म #5: ग़ुलाम
आमिर ख़ान और रानी मुखर्जी की मुख्य भूमिका वाली यह फ़िल्म उन शुरुआती फ़िल्मों में गिनी जाती है, जब आमिर सुपरस्टार बनने लगे थे. उनकी हर अगली फ़िल्म सब्जेक्ट के मामले में पिछली से अलग होने लगी थी. इस फ़िल्म की दो बातें सिने प्रेमियों को अब भी याद है. पहली बात-आमिर का ज़बर्दस्त स्टंट, जिसमें वे सामने से आ रही लोकल ट्रेन के सामने से जम्प करते हैं और दूसरी बात-अपनी प्रेमिका को लुभाने के लिए टपोरी अंदाज़ में ‘आती क्या खंडाला’ गाना गाना.
फ़िल्म #6: सरफ़रोश
इस फ़िल्म में आमिर ख़ान पुलिस ऑफ़िसर एसीपी अजय सिंह राठौड़ बने थे. एक ईमानदार पुलिस अधिकारी, जो सीमा पार से जारी आतंकवाद और तस्करी को रोकने के लिए अपनी ज़िंदगी तक दांव पर लगाने से नहीं डरता. फ़िल्मी करियर के इस पड़ाव तक आते-आते लोगों ने आमिर ख़ान की परफ़ेक्शन वाली ख़ूबी को लोगों ने नोटिस करना शुरू कर दिया था.
फ़िल्म #7: लगान
इस फ़िल्म के साथ आमिर ख़ान ने बतौर कलाकार और फ़िल्मकार बॉलिवुड के दो और बड़े ख़ान्स सलमान और शाह रुख़ को काफ़ी पीछे छोड़ दिया. क्रिकेट के खेल में अंग्रेज़ों को चुनौती देनवाले ज़िद्दी और जुझारू देहाती युवक भुवन की भूमिका आमिर ख़ान की सबसे दमदार भूमिकाओं में एक थी. फ़िल्म ने न केवल रिकॉर्ड तोड़ सफलता अर्जित की, बल्कि ऑस्कर की साल की पांच सर्वश्रेष्ठ विदेशी फ़िल्मों की सूची में जगह बनाने में सफल रही.
फ़िल्म #8: दिल चाहता है
जहां आमिर की पिछली ब्लॉकबस्टर लगान ग्रामीण भारत की कहानी कहती थी, वहीं अगली फ़िल्म दिल चाहता है अर्बन यानी शहर सेटअप पर केंद्रित थी. तीन कॉलेज फ्रेंड्स की ज़िंदगी में आगे चलकर आए बदलावों को बयां करती यह फ़िल्म लगभग हर शहरी युवा को अपनी-सी लगती है. फ़रहान अख़्तर ने इस फ़िल्म के साथ बतौर निर्देशक डेब्यू किया था. फ़िल्म के गाने, मुख्य किरदारों के लुक उस दौर में ट्रेंड बन गए थे.
फ़िल्म #9: रंग दे बसंती
राकेश ओम प्रकाश मेहरा के निर्देशन में बनी यह फ़िल्म ट्रीटमेंट के लिहाज़ से एक बेहद अनूठी और उम्दा फ़िल्म थी. एक ब्रिटिश स्टूडेंट भारत आकर आज़ादी की लड़ाई पर एक डॉक्यूमेंट्री बनाना शुरू करती है. इस डॉक्यूमेंट्री में काम कर रहे मस्तमौला भारतीय युवा, अपने ऑनस्क्रीन किरदारों से इतने प्रभावित हो जाते हैं कि वे मौजूदा दौर के भ्रष्टाचार से लड़ने का फ़ैसला करते हैं. आमिर ख़ान ने इस फ़िल्म में दलजीत ‘डीजे’ सिंह की भूमिका निभाते हैं. डीजे ब्रिटिश स्टूडेंट सुइ मैकेन्ले की डॉक्यूमेंट्री में चंद्रशेखर आज़ाद की भूमिका निभाता है.
फ़िल्म #10: तारे ज़मीन पर
डिस्लेक्सिया जैसे डिस्ऑर्डर पर बनी इस बेहद संवेदनशील फ़िल्म में आमिर ख़ान ने न केवल अभिनय किया था, बल्कि बतौर निर्देशक अपनी पारी शुरू की थी. ईशान अवस्थी (दर्शील सफारी) नामक एक बच्चा डिस्लेक्सिया नामक लर्निंग डिस्ऑर्डर का सामना कर रहा है. उसके पैरेंट्स इस बात को नहीं समझ पाते हैं. उस बच्चे की इस बीमारी से जारी संघर्ष में उसकी मदद करता है उसका आर्ट टीचर राम शंकर निकुंभ (आमिर ख़ान). इस फ़िल्म को बच्चों और बड़ों सभी ने काफ़ी पसंद किया.
फ़िल्म #11: गजनी
आमिर ख़ान की इस फ़िल्म को बॉक्स ऑफ़िस पर 100 करोड़ प्लस बिज़नेस करनेवाली बॉलिवुड की पहली फ़िल्म होने का रुतबा हासिल है. फ़िल्म में आमिर के किरदार बिज़नेसमैन संजय सिंघानिया के दो रूप हैं. पहला रूप है अपनी प्रेमिका कल्पना (असिन) के प्यार में डूबे हुए बिज़नेसमैन का. दूसरा रूप है प्रेमिका की मौत का बदला लेने के लिए बेचैन व्यक्ति का, जिसके साथ समस्या यह है कि वह महज़ 15 मिनट बाद बीती सारी बातों को भूल जाता है. बदला लेने के लिए शॉर्ट टर्म मेमरी लॉस से जूझ रहा संजय अपने पूरे शरीर पर टैटूज़ बनवा लेता है, ताकि जब वह आईने में ख़ुद को देखे तो उसे अपना लक्ष्य दोबारा याद आ जाए. फ़िल्म क्रिटिक्स की मानें तो इस किरदार को बॉलिवुड में केवल आमिर ख़ान ही इतने परफ़ेक्शन से निभा सकते थे.
फ़िल्म #12: थ्री ईडियट्स
मुन्ना भाई सिरीज़ फ़ेम निर्देशक राजकुमार हीरानी की इस फ़िल्म ने पैरेंट्स और बच्चों के रिलेशन को बेहतर करने में अहम भूमिका निभाई. नंबर लाने के लिए की जानेवाली पढ़ाई और सही मायने में एन्जॉय करने के लिए की जानेवाली पढ़ाई का फ़र्क़ बताया. लाखों बच्चों को प्रेशर से निकलकर अपने पैशन को तलाशने की प्रेरणा दी. चेतन भगत के उपन्यास ‘फ़ाइव पॉइंट समवन’ से प्रेरित इस फ़िल्म का हर किरदार अनूठा था. आईआईटी में साथ पढ़ाई करनेवाली तीन दोस्तों की यह कहानी दर्शकों द्वारा ख़ूब सराही गई. ख़ासकर आमिर ख़ान का किरदार रैंचो, जो हर चीज़ को अलग और पॉज़िटिव नज़रिए से देखने की प्रेरणा देता था.
फ़िल्म #13: पीके
दूसरे गोले यानी ग्रह से आए एक एलियन ‘पीके’ की भूमिका में आमिर ख़ान ने न केवल ख़ूब गुदगुदाया बल्कि अपनी मासूमियत से दर्शकों का दिल जीत लिया. धरती पर आकर अपना कम्यूनिकेशन डिवाइस खो देनेवाला पीके हमारे समाज की तमाम विसंगतियों पर सवाल उठाता है. अंधविश्वासों पर करारा प्रहार करता है. हालांकि फ़िल्म पर हिंदू देवी-देवताओं का अपमान करने का आरोप लगा था, पर फ़िल्म का संदेश इतना ख़ास था कि दर्शकों ने इस तरह के आरोपों पर कान न देते हुए, फ़िल्म को ख़ूब प्यार दिया.
फ़िल्म #14: दंगल
महिला कुश्ती में भारत का नाम रौशन करनेवाली फोगाट सिस्टर्स गीता और बबीता की इस बायोपिक में आमिर ख़ान ने उनके पिता महावीर सिंह फोगाट की भूमिका निभाई थी. देश के लिए कुश्ती न खेल पाने, मेडल न जीत पाने की कसक को महावीर अपनी बेटियों के माध्यम से पूरा करना चाहते थे. अंतत: उन्होंने अपना यह सपना पूरा भी किया. अपने सपने को बेटियों का सपना बनाने और उसे पूरा कराने के लिए की गई महावीर सिंह फोगाट की प्रेरणदायक यात्रा को सिनेमा के पर्दे पर आमिर ख़ान ने क्या ख़ूब पेश किया. उनकी इस परफ़ॉर्मेंस को दर्शकों समेत क्रिटिक्स का भी प्यार मिला.
फ़िल्म #15: सीक्रेट सुपरस्टार
तारे ज़मीन के बाद यह दूसरी ऐसी फ़िल्म थी, जिसमें आमिर ख़ान फ़िल्म का अहम हिस्सा तो थे, पर स्पॉटलाइट ख़ुद पर रखने की कोशिश नहीं की. एक उत्पीड़क पिता फ़ारूख़ मलिक (राज अर्जुन) के साए में रह रही टैलेंटेड लड़की इंसिया मलिक (ज़ायरा वसीम) की ज़िंदगी के संघर्षों को बयां करती इस फ़िल्म ने दर्शकों की आंखें नम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. दंगल के बाद यह आमिर ख़ान की दूसरी फ़िल्म थी, जिसे भारत के पड़ोसी देश चीन में भी ख़ूब पसंद किया गया. वहां फ़िल्म ने इतनी ज़्यादा कमाई की, जिसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था. आमिर ने फ़िल्म में इंसिया के मार्गदर्शक म्यूज़िक डायरेक्टर शक्ति कुमार नामक किरदार निभाया था.