पुरानी दिल्ली की शान आज भी वैसी ही बरक़रार है जैसी कि मुग़लों के समय में हुआ करती थी, जब शहजहां की बेटी जहांनारा ने चांदनी चौक की गलियों को बाज़ार का रूप दिया था और लोग टाउन हॉल के सामने बने चौक पर, जिसे मून लाइट स्क्वैर भी कहा जाता है, चांद की रोशनी को देखने जमा हुआ करते थे. अपनी संकरी गलियों, कूचों और हर तरह के सामान के लिए लोकप्रिय पुरानी दिल्ली अपने खाने के लिए भारतीय लोगों की ही नहीं, बल्कि विदेशियों को भी लुभाती है. तभी तो इतनी भीड़भाड़ और शोर-गुल के बावजूद खाने की छोटी-छोटी बेतरतीब दुकानों पर हमेशा भीड़ लगी रहती है. सुमन बाजपेयी ने जब यहां होने वाली स्ट्रीट फ़ूड यात्रा के बारे में सुना तो उन्होंने इसकी बुकिंग कराने में देर नहीं की. आइए, उनके साथ पुरानी दिल्ली की स्ट्रीट फ़ूड यात्रा पर चलें.
पिछले दिनों जब चीज़ें सामान्य चल रही थीं, स्ट्रीट फ़ूड यात्रा के बारे में सुनकर मैं काफ़ी उत्साहित थी और जल्दी ही मैंने उसकी ऑनलाइन बुकिंग करा ली. एक गाइड मुझे कुछ चुनिंदा जगहों पर ले जाने वाली थी. ऐसी जगहें, जिनके बारे में अक्सर चर्चा नहीं होती. हमारा मीटिंग पॉइंट था दिगंबर जैन लाल मंदिर. सबसे पहले हम पहुंचे मोती सिनेमा के सामने लाजपत राय मार्केट में बने मनोहर ढाबे में. चूंकि आजकल चांदनी चौक के सौंदर्यीकरण का काम चल रहा है इसलिए रास्ते थोड़े अजीबो-ग़रीब ढंग से पार करने पड़ते हैं.
कुरकुरा जापानी समोसा
सड़क किनारे बनी यह दुकान देखकर नहीं लगेगा कि यहां कुछ ख़ास मिल सकता है. तक़रीबन 80 साल पुरानी यह दुकान अपने जापानी समोसे के लिए प्रसिद्ध है. यह समोसा बाक़ी सारे समोसों से एकदम अलग था, स्वाद में भी और दिखने में भी. इसमें 60 परतें यानी लेयर्स थीं. यह एकदम वेफ़र्स जैसा था इसीलिए बहुत क्रिस्पी था. बीच के हिस्से में मसालों के मिश्रण वाला आलू था. इस समोसे के साथ पिंडी छोले व लौकी का आचार दिया गया, जिससे इससे ज़ायका दोगुना हो गया था. एक समोसा ही इतना बड़ा था कि आप दूसरा नहीं खा सकते. इसकी एक प्लेट में दो समोसे होते हैं, जिनकी क़ीमत है 40 रुपए. इसका नाम जापानी समोसा क्यों पड़ा? यह बात किसी को नहीं पता, बस पीढ़ियों से इसे बनाया जा रहा है. मुझे लगता है कि शायद जापानी पंखे की लेयर्स से प्रभावत होकर, उसकी परतें समोसे में उतारने की कोशिश का नतीजा भी हो सकता है इसका नाम.
मन को तृप्त करती गोल्डन चाय
समोसा खाकर हम चांदनी चौक की ओर बढ़ने लगे. कोई एक किलोमीटर से कम दूरी पर हमारा अगला पड़ाव था-कैलाशचंद जैन चाय वाले की दुकान. गाइड से मैंने पूछा कि चाय क्यों? तो उसने बताया कि यहां की गोल्डन चाय बेमिसाल है, इसे टेस्ट ज़रूर कीजिए. कुल्हड़ में जो चाय मैंने पी उसका स्वाद वाक़ई लाजवाब था! 25 मसाले, जिनका नाम बताने से वहां के मालिक ने साफ़ इनकार कर दिया, के अलावा उसमें केसर के लच्छे व कतरे हुए बादाम भी डले थे. यह दुकान भी क़रीब 80 साल पुरानी है. चौथी पीढ़ी इस समय दुकान को चली रही है. ख़ूब सारे दूध वाली 30 रुपए की यह चाय पीकर मन तृप्त हो गया.
लाजवाब मटर की भरवां कचौड़ी
अब हम सड़क पार कर नई सड़क की ओर बढ़े. किताबों और कपड़ों की दुकानों, यहां-वहां लटकते केबल्स और शोर मचाते दुकानदारों के बीच से राह बनाते हम चावड़ी बाजार के कोने में बनी दुकान श्याम स्वीट्स पर पहुंचे. जामा मस्ज़िद से नई सड़क की ओर जाने पर जो तिराहा चावड़ी बाजार और नई सड़क की ओर जाता है, वहीं बाईं ओर देहाती पुस्तक भंडार के पास श्याम स्वीट्स की दुकान है. लगभग सौ साल पुरानी इस दुकान पर मिठाइयां, बेड़मी, सब्ज़ी, कचौड़ी और समोसे बेचे जाते हैं. लेकिन असली जलवा मटर की भरवां कचौड़ी का है. वर्ष 1910 से चल रही यह दुकान मिठाइयों के लिए तो प्रसिद्ध है ही, साथ ही इसकी मटर व दाल की कचौड़ी इतनी प्रसिद्ध है कि इसे खाने विदेशी भी यहां आते हैं. यह 40 रुपए क़ीमत वाली मटर की कचौड़ी इतनी करारी थी कि मिर्च लगने के बावजूद मैं खाती रही. इसके साथ में थी आलू की सब्ज़ी और मेथीदाने की चटनी.
यहां आएं तो अपना वाहन न लाएं. पैदल या रिक्शे से जाना ही बेहतर है. यह दुकान सातों दिन खुली रहती है. सुबह अगर इस दुकान पर पहुंच जाएं तो नाश्ते के रूप में बेड़मी, आलू की सब्जी, कचालू की चटनी और सीताफल की सब्जी का मजा लिया जा सकता है.
स्वादिष्ट सैंडविच
मुझे मिर्च लग रही थी इसलिए मेरी गाइड सीधे उस रास्ते पर ले गई, जहां चावड़ी बाजार की कार्ड्स की दुकानें हैं. यहां शादी के कार्ड से लेकर हर तरह के कार्ड की दुकानों का अपना जलवा है. काफ़ी अंदर जाकर जहां रुके तो पल भर को मुझे लगा कि इस कम रोशनी वाली जगह पर भी भला कोई दुकान हो सकती है? वहां बहुत ही साधारण-सी दुकान है-जैन कॉफ़ी हाउस. मेज पर ब्रेड के स्लाइस बिछे थे और उन पर करीने से कटे टमाटर, खीरा आदि के स्लाइस सजे थे. बैठने के लिए यहां-वहां रखीं कुर्सियां और कुछ मेज. अपने फ्रूट सैंडविच के लिए लोकप्रिय यह दुकान वर्ष 1948 से यहां चल रही है. भूलभुलैया की तरह गलियों को पार कर यहां पहुंचना पड़ता है. दुकान का पलस्तर उखड़ा हुआ था, रोशनी भी कम थी… पर तेज़ गति से सैंडविच बन रहे थे. पुरानी दिल्ली की यादों को समेटे इस दुकान पर बैठना एक अलग ही अनुभव था. आधुनिकीकरण को मुंह चिढ़ाती इस दुकान तक हर कोई नहीं पहुंच सकता, पर फिर भी यहां भीड़ लगी रहती है. स्ट्रॉबेरी, चीकू, केला, आम, अंगूर, सेब, साथ में पनीर की स्लाइस… कई तरह के सैंडविच मिलते हैं यहां. चाहें तो मिक्स्ड फ्रूट सैंडविच ले सकते हैं. वही खाया मैंने. क़ीमत है 100 रुपए. चार स्लाइस का सैंडविच खाना मुमक़िन ही नहीं था इसलिए थोड़ा-सा टेस्ट कर बाक़ी मैंने पैक करवा लिया.
चांदनी चौक की चाट
चांदनी चौक आएं और चाट न खाएं, ऐसा तो असंभव है! पर चाट का मतलब केवल गोलगप्पे या दही-भल्ले खाना ही नहीं होता, मेरी गाइड ने मुझसे यह बात कही और वह मुझे ले गई हीरा चाट कॉर्नर पर, जो जाना जाता है अपनी कुल्ले या कुलिया की चाट के लिए. यह दुकान चावड़ी बाजार की लोहे वाली गली में है. चाट की कीमत 50 रुपए से 100 रुपए तक है. संतरा, सेब, खीरा, टमाटर जैसे फ्रूट या सलाद का बीच में से गुदा निकालकर इसमें कुछ और मसालेदार चटपटी, तीखी, मीठी चीज़ों को मिलाकर इसमें भरा जाता है फिर जिस तरह से आप गोलगप्पा एक ही बार में मुंह में डालकर खाते हैं और उसका स्वाद लेते हैं, ठीक उसी तरह से कुलिया की चाट का मज़ा लिया जाता है.
अलग-अलग फलों व सब्जियों को स्कूप कर उसमें उबला चना, अनार, मसाले और नींबू निचोड़ कर यह चाट बनती है. खीरा, टमाटर, आलू, संतरा, आम, तरबूज़, पाइनैप्पल- इसका स्वाद बेहद निराला है. फल-सब्ज़ियां और तीखे मसाले का स्वाद लेने के बाद मन कर रहा था अब कुछ मीठा होना चाहिए.
सफ़ी मियां की खीर की दुकान
चावड़ी बाजार मेट्रो स्टेशन, थाना हौज काजी पार करते हुए हम जिस दुकान में पहुंचे, उसका माहौल भी ठेठ पुरानी दिल्ली वाला था. सफ़ी मियां की 129 साल पुरानी खीर की दुकान उनके दादा जी ने वर्ष 1880 में शुरू की थी.आज उनके पोते इस दुकान को चला रहे हैं, लेकिन दुकान में बदलाव या नया रंग-रूप देने का ख़्याल उन्हें कभी नहीं आया. यहां खीर अभी भी पुरानी विधि से ही बनाई जाती है, जिसमें काफ़ी मेहनत लगती है. इसे बनाने में छह घंटे से ज़्यादा लगते हैं. चूल्हे पर लकड़ी की धीमी आंच पर खीर पकाई जाती है. इससे उसका रंग हल्का गुलाबी दिखता है और खीर पर मोटी मलाई की परत भी चढ़ जाती है. परात भरकर खीर दुकान में आती है और फिर स्टील की कटोरी में 100 ग्राम के वजन के हिसाब से डालकर उसे आइस बॉक्स में ठंडा होने के लिए रख दिया जाता है. इस खीर का लुत्फ़ महज़ 30 रुपए में उठाया जा सकता है.
मेरा पेट तो पूरी तरह भर गया था, पर पुरानी दिल्ली के ज़ायके कहां ख़त्म होने वाले थे? अगली बार एक और ऐसी ही स्ट्रीट फ़ूड यात्रा पर वापस आने का फ़ैसला किए मैं लौट आई. और मैं आप सब से भी यही कहना चाहूंगी कि यदि आप दिल्ली में हैं या दिल्ली घूमने आ रहे हैं और भोजनप्रेमी हैं तो पुरानी दिल्ली की स्ट्रीट फ़ूड यात्रा का पूरा आनंद उठाएं. आपका पेट भर जाएगा, मन तृप्त हो जाएगा, लेकिन यहां दोबारा आने की इच्छा बनी ही रहेगी.
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